फिल्म निर्देशक संजय गुप्ता को एक्शन फिल्म बनाना हमेशा से पसंद रहा है। 1994 में आतिश से शुरू हुआ सफर 2021 में मुंबई सागा तक आ पहुंचा है। इस सफर में कई फिल्में संजय ने बनाई जिनमें भरपूर एक्शन रहा है। मुंबई के अंडरवर्ल्ड और भाईगिरी पर संजय ने शूटआउट एट लोखंडवाला बनाई थी जिसे काफी सराहना मिली थी। इस सफलता को उन्होंने शूटआउट एट वडाला (2013) और मुंबई सागा (2021) में भुनाने की कोशिश की और बुरी तरह मार खाई।
मुंबई सागा देख लगता है कि संजय की सुई अटक गई है। भाईगिरी पर उनके द्वारा बनाई गई 'मुंबई सागा' आउटडेटेट लगती है। फिल्म में कुछ भी नया नहीं है। ऐसी कई फिल्में देख दर्शक थक चुके हैं और इस तरह की फिल्में बीते दिनों की बात हो गई है, लेकिन संजय को अभी भी लगता है कि इस गन्ने (विषय) में अभी भी भरपूर रस (संभावना) है। आखिर एक ही गन्ने से वे कितनी बार रस निकालेंगे?
पुराना दौर जब मुंबई 'बंबई' था। हफ्ता वसूली का बोलबाला था। कुछ नेता थे जो गुंडों को पनाह देकर उनसे अवैध काम कराकर अपना साम्राज्य खड़ा करते थे। पुलिस निकम्मी थी, लेकिन एक-दो पुलिस वाले ऐसे भी थे जो इस तरह के साम्राज्य में सेंध लगाना चाहते थे भले ही इसके पीछे उनका अलग उद्देश्य हो।
इस तरह के जाने -पहचाने माहौल पर संजय ने 'चोर-पुलिस' के ड्रामे से दर्शकों को लुभाने की कोशिश की है। पूरा फोकस इस बात पर है कि दर्शकों को 'जॉन-इमरान' की टक्कर में मजा आ जाए। डायलॉगबाजी रखी गई है। दोनों के महिमामंडन वाले सीन रखे गए हैं। मारा-मारी दिखाई गई है। स्क्रिप्ट में कुछ उतार-चढ़ाव देकर दर्शकों को चौंकाया गया है, लेकिन इनकी संख्या कम है। इमरान हाशमी की एंट्री के बाद ही फिल्म में थोड़ी रूचि पैदा होती है।
माना कि अभी भी इस तरह के कुछ दर्शक मौजूद हैं जो 'मुंबई सागा' जैसी फिल्में पसंद करते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है और दिनों-दिन यह संख्या कम होती जा रही है। 'मास' के नाम पर कुछ भी परोसा नहीं जा सकता। यदि मसाला फिल्म भी बनाना है या ज्यादा दर्शकों का मनोरंजन करना है तो कुछ नया तो करना पड़ेगा। संजय गुप्ता को मसाला फिल्म बनाना है तो साउथ का सिनेमा देखना चाहिए कि वे किस तरह मसालेदार/मनोरंजक फिल्में बनाते हैं। कमर्शियल फॉर्मेट में भी कुछ नया देने की कोशिश करते हैं।
लेखक नया देने में असफल रहे। संजय गुप्ता भी अपने निर्देशन के दम पर दर्शकों को बांध नहीं पाए। एक्टिंग की बात की जाए तो जॉन अब्राहम में कोई सुधार नहीं है। मारा-मारी में एक्सप्रेशनलेस चेहरा तो चल जाता है, लेकिन जहां संवाद बोलना पड़ते हैं वहां जॉन की कमजोरियां सामने आ जाती हैं।
इमरान हाशमी ने अपनी एक्टिंग के दम पर फिल्म में थोड़ी हलचल मचाई है। लेकिन जॉन के साथ फाइट सीन में वे कमजोर नजर आएं। काजल अग्रवाल का रोल छोटा है। महेश मांजरेकर इस तरह के रोल अनेक बार कर चुके हैं। अमोल गुप्ते खास असर नहीं छोड़ते। निर्देशक की दोस्ती की खातिर सुनील शेट्टी भी एकाध सीन में नजर आते हैं।
कुल मिलाकर 'मुंबई सागा' एक आउटडेटेट मूवी है जो आज के दौर का सिनेमा पसंद करने वालों के लिए बिलकुल भी नहीं है।
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, अनुराधा गुप्ता, संगीता अहिर
निर्देशक : संजय गुप्ता
कलाकार : जॉन अब्राहम, इमरान हाशमी, महेश मांजरेकर, सुनील शेट्टी, काजल अग्रवाल
रेटिंग : 1.5/5