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मुबारकां : फिल्म समीक्षा

मुबारकां : फिल्म समीक्षा | Mubarakan Film Review
च्युइंगम की तरह है 'मुबारकां'। पहले थोड़ी स्वादिष्ट लगती है, फिर बेस्वाद हो जाती है। फिर जब तक आपको चबाने की क्रिया खींचना है खींचते रहिए। निर्देशक अनीस बज्मी 157 मिनट तक फिल्म को च्युइंगम की तरह खींचते रहे जबकि यह बेमजा बहुत पहले ही हो गई थी। 
 
अनीस बज्मी को मसाला फिल्ममेकर माना जाता है जिसमें हर वर्ग और उम्र के दर्शकों को खुश करने की कोशिश की जाती है। नो एंट्री, वेलकम, सिंह इज़ किंग जैसी सफल फिल्म उन्होंने दी है, लेकिन अब वे इसी जाल में उलझ गए हैं और बजाय कुछ नया करने के दोहराव का शिकार हो रहे हैं। 
 
जुड़वां भाई, एक जैसी शक्ल, इसको लेकर होने वाला कन्फ्यूजन बहुत पुराना हिंदी फिल्मों का फॉर्मूला है। 'मुबारकां' में भी यही सब होता है। सारे रटे-रटाये फॉर्मूले डाले गए हैं, लेकिन फिर भी फिल्म मनोरंजन नहीं कर पाती तो दोष लेखक और निर्देशक को जाता है। 
 
करण और चरण (दोनों अर्जुन कपूर) जुड़वां भाई हैं। एक चंडीगढ़ में पलता-बढ़ता है और दूसरा लंदन में। स्वीटी (इलियाना डीक्रूज) को करण चाहता है और नफीसा (नेहा शर्मा) से चरण को प्यार हो जाता है। दोनों अपने माता-पिता से डरते हैं और यह बात बता नहीं पाते। हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि चरण की शादी स्वीटी से और करण की शादी बिंदल (अथिया शेट्टी) से तय हो जाती है। इधर चरण अब बिंदल को चाहने लगता है। दोनों उलझ जाते हैं और अपने चाचू करतार (अनिल कपूर) की मदद लेते हैं। करतार नए-नए आइडिया पेश करता है, लेकिन सारे बेअसर। आखिरकार वह किस तरह से दोनों को इस उलझन से बाहर निकलता है यह फिल्म में कॉमेडी के जरिये पेश किया गया है। 
 
कहानी बहुत आम है और सैकड़ों बार हिंदी फिल्मों में दिखाई गई है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं है कि इस कहानी पर कॉमेडी फिल्म बनाने की पूरी गुंजाइश है। लेकिन स्क्रीनप्ले इतना मजेदार नहीं है कि फिल्म में मनोरंजन की धारा बहती रहे। परदे पर जो घटनाक्रम चलते रहते हैं वे हंसी तो दूर मुस्कान भी नहीं ला पाते। 
 
फिल्म थोड़ी देर चलने के बाद ठहर जाती है। करतार नए-नए आइडिया बताता है, लेकिन ये ऐसे नहीं है कि दर्शक रूटीन कहानी को भूल जाएं और ठहाके लगाए। आइडियों को बहुत ज्यादा खींचा गया है और फिल्म देखते समय लगता है कि फिल्मकार अपनी फिल्म को खत्म करने के मूड में नहीं है। 
 
करण को तो लंदन का आधुनिक लड़का बताया गया है, लेकिन वह अपनी मां को यह बात बताने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाता कि वह स्वीटी से प्यार करता है यह समझ के परे है। इसी तरह नफीसा को चरण चाहता है, लेकिन बाद में वह बिंदल की तरफ क्यों आकर्षित हो जाता है, यह बात ठीक से दर्शाई नहीं गई है, जबकि चरण को बेहत शरीफ और संस्कारी बताया गया है। यह बात पूरी फिल्म देखते समय अखरती रहती है। 
 
निर्देशक के रूप में अनीस बज्मी ने अपने प्रस्तुतिकरण के जरिये दर्शकों को कन्फ्यूज करने की, चौंकाने की और हंसाने की कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट दमदार न होने के कारण उनके सारे प्रयास निरर्थक साबित होते हैं। उन्होंने फिल्म को भव्यता दी है और साफ-सुथरा रखा है, लेकिन यह काफी नहीं है। 
 
अर्जुन कपूर फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुए हैं। वे गोविंदा या अक्षय कुमार तो हैं नहीं कि स्क्रिप्ट के कमजोर होने की दशा में अपने अभिनय के बल पर दर्शकों को हंसा दे। कॉमेडी करना उनके बस की बात नहीं लगी। उनके अतिरिक्त प्रयास साफ नजर आते हैं। वे कई बार करण को चरण के जैसे निभाते लगे और डबल रोल में भिन्नता नहीं ला पाए। उन्हें अपने डांस पर मेहनत की जरूरत है। 
 
अनिल कपूर ने जरूर दर्शकों को करतार के रूप में हंसाया है और अर्जुन कपूर को अपने चाचा से सीखना चाहिए कि किस तरह कॉमेडी सीन करना चाहिए। अनिल ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया है। 
 
हीरोइन के रूप में इलियाना डीक्रूज का अभिनय अच्‍छा रहा। अथिया शेट्टी को ज्यादा सीन नहीं दिए गए, लेकिन जितने भी सीन उन्हें मिले वे प्रभावित नहीं कर पाईं। पवन मल्होत्रा, रत्ना पाठक शाह, नेहा शर्मा का अभिनय बेहतर रहा। 
 
फिल्म में एक भी ऐसा गाना नहीं है जो याद रहे। गाने फिल्म की लंबाई बढ़ाते हैं और फिजूल लगते हैं। संवाद कुछ जगह गुदगुदाते हैं। 
 
कुल मिलाकर 'मुबारकां' मुबारक के लायक नहीं है।  
 
निर्माता : सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स प्रोडक्शन्स, मुराद खेतानी, अश्विनी वर्दे 
निर्देशक : अनीस बज़्मी 
संगीत : अमाल मलिक, ऋषि रिच, यश आनंद
कलाकार : अर्जुन कपूर, इलियाना डीक्रूज, अथिया शेट्टी, अनिल कपूर, नेहा शर्मा, रत्ना पाठक, पवन मल्होत्रा, राहुल देव  
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए *  2 घंटे 36 मिनट 19 सेकंड 
रेटिंग : 2/5
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