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Written By समय ताम्रकर

दिल धड़कने दो : फिल्म समीक्षा

दिल धड़कने दो : फिल्म समीक्षा - Dil Dhadakne Do Movie Review
दिल धड़कने दो उन लोगों की शिकायत दूर करती है जो कहते हैं पारिवारिक फिल्में बनना बंद हो गई हैं। यह 2015 की पारिवारिक फिल्म है जिसमें एक हाई सोसायटी फैमिली के जरिये रिश्ते-नाते और सामाजिक विसंगतियों की पड़ताल की गई है। फिल्म को मेहरा फैमिली के प्लूटो नामक कुत्ते की आंखों से दिखाया गया है जिसे आमिर खान ने अपनी आवाज दी है। कुत्ते की मन की बात का आमिर खान वाइस ओवर करते हैं। कई बार यह कुत्ता मनुष्य और इंसान के बीच के फर्क को भी बारीकी से समझाता है। 
 
कमल मेहरा (अनिल कपूर) की कंपनी आइका घाटे में है। अपनी कंपनी को उबारने के लिए वह एक क्रूज पर अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाने की योजना बनाता है। इसमें वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाता है। कमल चाहता है कि उसका बेटा कबीर (रणवीर सिंह) एक अमीर उद्योगपति ललित सूद की बेटी नूरी से शादी कर ले ताकि ललित उसकी कंपनी को आर्थिक सहायता देकर उबार ले। 
 
कमल की बेटी आयशा (प्रियंका चोपड़ा) भी इस सेलिब्रेशन में शामिल होती है जो अपने पति मानव (राहुल बोस) से अलग होना चाहती है। आयशा का अपना व्यवसाय है जिसमें वह सफल है, लेकिन उसके पिता चाहते हैं कि आयशा के बजाय उनका बेटा कबीर उनकी कंपनी को आगे बढ़ाए जबकि कबीर इसके लायक नहीं है। 
 
मेहरा परिवार के आपसी संबंध भी ठीक नहीं है। कमल और उसकी पत्नी नीलम (शैफाली शाह) सिर्फ रहने के लिए साथ हैं। क्रूज पर फराह अली (अनुष्का शर्मा) को कबीर दिल दे बैठता है और इस रिश्ते के बारे में सुन कर मेहरा परिवार में खलबली मच जाती है। क्रूज पर मेहरा के मैनेजर के बेटे सनी (फरहान अख्तर) की भी एंट्री होती है जिसे आयशा चाहती थी और इस वजह से कमल मेहरा ने सनी को पढ़ने के लिए अमेरिका भेज दिया था। सब इकट्ठा होते हैं और परिस्थितियां ऐसी निर्मित होती हैं कि सारे गिले-शिकवे दूर होते हैं। 
जोया अख्तर और रीमा कागती द्वारा लिखी गई कहानी में ऐसी कोई बात नहीं है जो पहले कभी परदे पर नहीं आई हो। उन्होंने हाई सोसायटी ड्रामा बना कर फिल्म का लुक रिच कर दिया है। क्रूज, समुंदर, महंगी शराब, डिजाइनर ड्रेसेस, अंग्रेजी बोलते लोग, और फाइव स्टार लाइफस्टाइल के जरिये दर्शकों को लुभाने का प्रयास किया गया है। वैसे इस कहानी पर टीवी सीरियल बनाना ज्यादा बेहतर होता। 
 
कहानी के जरिये महिला समानता, पैरेंट्स का बच्चों पर अपने निर्णय थोपना, 'क्या कहेंगे लोग' से ग्रसित समाज, शादी को बिजनेस डील मानना, तलाक को लेकर हौव्वा बनाना जैसी बातों को परिष्कृत (सोफिस्टिकेटेड) तरीके से दर्शाया गया है।

फिल्म में बताया गया है कि कुछ लोग पहनावे, बोलचाल और रहन-सहन के जरिये अपने आपको हाई क्लास सोसायटी का नुमाइंदा भले ही मानते हों, लेकिन वैचारिक धरातल पर उनकी सोच दकियानुसी है।

इन सब बातों को हल्के-फुल्के तरीके से पेश किया है और रिश्तों की जटिलता में ये बातें परत-दर-परत सामने आती हैं। मानव-आयशा के रिश्ते के जरिये दिखाया गया है कि तलाक लेने की एक वजह यह भी हो सकती है कि आप जिसके साथ रिश्ते में हैं उसके प्रति प्यार की कोई भावना न हो।

 
'दिल धड़कने दो' जोया अख्तर के स्तर से नीचे की फिल्म है। 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' में एक ट्रिप के जरिये मन का मैल साफ किया गया था और यही बात इस फिल्म में भी नजर आती है। लगता है कि जोया कुछ नया नहीं सोच पा रही हैं। हाई सोसायटी फैमिली पर आधारित इसी तरह की फिल्म 'आयशा' भी थी जिसमें भी इन सब बातों का उल्लेख किया गया था। 
 
लंबाई और मनोरंजन के अभाव से भी फिल्म ग्रस्त है। बात कहने में लंबा समय लिया गया है, फिर भी कहने को बहुत कुछ बाकी रह गया। टी-20 के दौर में 170 मिनट बहुत होते हैं और फिल्म कई जगह खींची हुई महसूस होती है। फिल्म की सुस्त गति कई बार उबाती है, खासतौर पर फिल्म का पहला हाफ बहुत स्लो है। किरदारों के परिचय में ही 15 मिनट खर्च किए गए हैं। वाइस ओवर का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी फिल्म को कमजोर बनाता है।
 
निर्देशक के रूप में जोया का काम ठीक है। उन्होंने हर किरदार को जरूरत के मुताबिक महत्व दिया है। ढेर सारे किरदार और क्रूज ट्रिप को समेटना आसान नहीं होता, लेकिन स्क्रिप्ट से परे जाकर जोया ने कोशिश की है। उन्हें इस बार बेहतरीन संगीत का साथ नहीं मिला और गाने सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाने के ही काम आए। उम्दा अभिनय का साथ उन्हें जरूर मिला है। हर कलाकार ने अपनी भूमिका संजीदगी के साथ निभाई है।
 
स्वार्थी बिजनेसमैन और पति के रूप में अनिल कपूर प्रभावित करते हैं। रणवीर सिंह फिल्म के सरप्राइज हैं। उन्होंने दर्शकों को हंसने का मौका मुहैया कराया है और कुछ दृश्यों में उनकी टाइमिंग जोरदार है। खासतौर पर जब वे उनकी अपने मॉम-डैड के सामने क्लास लगती है।

प्रियंका चोपड़ा भी फॉर्म में नजर आईं। एक कुंठित, पति से छुटकारा पाने को झटपटाती लड़की के रूप में उनका अभिनय देखने लायक है। अनिल कपूर की पत्नी का रोल शैफाली शाह ने दमदार तरीके से निभाया है। अनुष्का शर्मा के लिए ज्यादा कुछ करने को नहीं था। यही हाल फरहान अख्तर का है। यदि जोया उनकी बहन नहीं होती तो वे शायद ही यह रोल करना पसंद करते। उनके फैंस उनके इतने छोटे रोल को देख निराश होंगे। 
 
दिल धड़कने दो को देखना उस फाइव स्टार होटल में खाना खाने के समान है जहां से निकलने के बाद महसूस होता है कि मधुर संगीत और खुशनुमा माहौल ने खाने से ज्यादा सुकून दिया।
 
 
 
बैनर : एक्सेल एंटरटेनमेंट, जंगली पिक्चर्स, मिर्ची मूवीज़ लिमिटेड
निर्माता : रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर
निर्देशक : जोया अख्तर
संगीत : शंकर-एहसान-लॉय
कलाकार : प्रियंका चोपड़ा, रणवीर सिंह, अनुष्का शर्मा, फरहान अख्तर, अनिल कपूर, शैफाली शाह, राहुल बोस 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 50 मिनट 8 सेकंड 
रेटिंग : 2.5/5