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Written By समय ताम्रकर
Last Updated : शनिवार, 21 फ़रवरी 2015 (16:14 IST)

बदलापुर : फिल्म समीक्षा

बदलापुर : फिल्म समीक्षा - Badlapur
बदलापुर में नवाजुद्दीन सिद्दकी ने इतना उम्दा अभिनय किया है कि वे फिल्म को नुकसान पहुंचा गए। हीरो, स्क्रिप्ट, निर्देशक पर तो वे भारी पड़े ही हैं, साथ ही खलनायक होने के बावजूद वे दर्शकों की सहानुभूति हीरो के साथ नहीं होने देते। दर्शक नवाजुद्दीन की अदायगी का कायल हो जाता है और फिल्म के हीरो के गम को वह महसूस नहीं करता जिसके बीवी और बच्चे को खलनायक ने मौत के घाट उतार दिया है। 
 
दृश्यों को चुराना क्या होता है वो नवाजुद्दीन के अभिनय से महसूस होता है। साधारण संवादों को भी उन्होंने इतना पैना बना दिया कि तालियां सुनने को मिलती हैं। काया उनकी ऐसी है कि जोर की हवा चले तो वे गिर पड़े, लेकिन उनके तेवर को देख डर लगता है। इन सबके बीच वे हंसाते भी हैं। 
 
बात की जाए 'बदलापुर' की, तो यह बदले पर आधारित मूवी है। बदले पर बनी फिल्मों की संख्या हजारों में है, लेकिन यह फिल्म इस विषय को नए अंदाज में पेश करती है। उम्दा प्रस्तुतिकरण की वजह से यह डार्क मूवी दर्शक को बांध कर रखती है। 
 
रघु (वरुण धवन) की पत्नी (यामी गौतम) और बेटा एक बैंक डकैती के दौरान मारे जाते हैं। रघु इस घटना से उबर नहीं पाता। इस डकैती में पुलिस लायक (नवाजुद्दीन सिद्दकी) को पकड़ लेती है और वह इस अपराध में अपने पार्टनर (विनय पाठक) का नाम पुलिस को नहीं बताता। लायक को 20 वर्ष की सजा होती है। बीमारी के कारण वह 15 वर्ष की सजा काट बाहर आ जाता है और रघु को बदला लेने का मौका मिलता है। 
श्रीराम राघवन ने साधारण कहानी को अपने निर्देशकीय कौशल से देखने लायक बनाया है। उन्होंने एक हसीना थी और जॉनी गद्दार जैसी उम्दा फिल्में बनाई हैं, लेकिन अब तक बड़ी सफलता उनसे दूर है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वे प्रतिभाशाली निर्देशक हैं।
 

 
'बदलापुर' के किरदारों की यह खूबी है कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है इसे पढ़ना आसान नहीं है। राघवन ने दर्शकों के सामने सारे कार्ड्स खोल दिए और इन कार्ड्स को किरदार कैसे खेलते हैं इसके जरिये रोमांच पैदा किया है। दर्शक को फिल्म से जोड़ने में निर्देशक ने सफलता पाई है और दर्शकों के दिमाग को उन्होंने व्यस्त रखता है। फिल्म देखते समय कई सवाल खड़े होते हैं और ज्यादातर के जवाब मिलते हैं। 

फिल्म में कुछ कमियां भी हैं। खासतौर पर सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ी बिखरती है और क्लाइमैक्स में फिल्म के विलेन के रूख में आया परिवर्तन हैरान करता है। दिव्या दत्ता का किरदार भी फिल्म में मिसफिट लगता है, लेकिन ये कमियां फिल्म देखने में बाधक नहीं बनती है। 
 
वरुण धवन ने लवर बॉय का चोला उतार फेंकने का साहस दिखाया है। एक बच्चे के पिता और फोर्टी प्लस का किरदार निभाने में उन्होंने हिचक नहीं दिखाई है। कुछ दृश्यों में उनका अभिनय कमजोर भी रहा है, लेकिन उनके प्रयास में गंभीरता नजर आती है।
 
यामी गौतम के लिए ज्यादा करने को नहीं था। हुमा कुरैशी का अभिनय अच्छा है। दिव्या दत्ता असर नहीं छोड़ पाती। 
 
पुलिस ऑफिसर के रूप में कुमुद मिश्रा प्रभावित करते हैं और उनका रोल फिल्म की अंतिम रीलों में कहानी में नया एंगल बनाता है। राधिका आप्टे का अभिनय जबरदस्त है। एक सीन में रघु उसे कपड़े उतारने को कहता है और इस सीन में उनके चेहरे के भाव देखने लायक है। 
 
सचिन जिगर का संगीत बेहतरीन है। निर्देशक की तारीफ करना होगी कि उन्होंने गानों को फिल्म में बाधा नहीं बनने दिया। 
 
'बदलापुर' की कहानी जरूर साधारण है, लेकिन बेहतरीन अभिनय और उम्दा निर्देशन फिल्म को देखने लायक बनाता है।  
 
बैनर : मैडॉक फिल्म्स, इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : दिनेश विजान, सुनील ए. लुल्ला
निर्देशक : श्रीराम राघवन
संगीत : सचिन-जिगर 
कलाकार : वरुण धवन, यामी गौतम, हुमा कुरैशी, नवाजुद्दीन सिद्दकी, दिव्या दत्ता, राधिका आप्टे
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 3/5