अनीस बज्मी के फिल्म मेकिंग का तरीका अस्सी और नब्बे के दशक में बनने वाली फिल्मों के जैसा है, जब हर दर्शक का ख्याल रख दृश्य गढ़े जाते थे। फ्रंट बेंचर्स के लिए एक फड़कता गीत, महिलाओं के लिए आँसू बहाऊ दृश्य, रोमांस और कॉमेडी के बीच एक्शन दृश्य। ऐसा लगता है कि असेम्बलिंग की गई हो।
अनीस को इस तरह की फिल्म बनाकर कई बार सफलता भी मिली और असफलता भी हाथ लगी। ‘रेडी’ देखकर भी लगता है कि अनीस अपने सीमित दायरे से बाहर नहीं निकलना चाहते हैं। उन्होंने इस फिल्म में चिर-परिचित फॉर्मूलों को अपनाया है, कई जगह इन फॉर्मूलों ने काम किया है तो कई जगह ये औंधे मुँह गिरे हैं।
दरअसल सलमान को लेकर अनीस सफलता के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने सभी चीजों को सलमान के सुपरस्टारडम के आगे बौना माना और ये कुछ हद तक सही भी है, वर्तमान में सलमान सफलता के रथ पर सवार हैं और लोग स्क्रीन पर केवल उन्हें ही देखना चाहते हैं।
कहानी है प्रेम (सलमान खान) और संजना (असिन) की। संजना के माँ-बाप नहीं है और उसके लिए दो सौ करोड़ रुपये की दौलत छोड़ गए हैं। संजना के दो मामा अपनी-अपनी पसंद के लड़कों से उसकी शादी करवाना चाहते हैं ताकि उसकी दौलत हड़प सके।
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इसी बीच प्रेम और संजना को इश्क हो जाता है। किस तरह से तमाम बाधाओं को दोनों प्रेमी पार करते हैं, कैसे प्रेम दोनों मामाओं के बीच एकता कायम करता है, यह फिल्म का सार है।
फिल्म पहले हाफ में सुस्त रफ्तार से चलती है। हास्य दृश्य हँसाते नहीं बल्कि खीझ पैदा करते हैं। सलमान और असिन के बीच की नोकझोंक प्रभावित नहीं करती। सलमान भी इस हिस्से में आउट ऑफ फॉर्म नजर आते हैं।
फिल्म रफ्तार पकड़ती है दूसरे हाफ में, जब परेश रावल से मिलकर सलमान, असिन के मामाओं को लगातार बेवकूफ बनाता है। यहाँ पर कई मजेदार दृश्य हैं, जिन्हें देख सलमान के फैंस सीटी और तालियाँ बजाएँगे।
राजीव कौल, राजन अग्रवेल और इकराम अख्तर द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट में पूरा ध्यान लॉजिक के बजाय मनोरंजन पर दिया गया है। दृश्य इस तरह से लिखे और फिल्माए गए हैं ताकि सल्लू के फैंस संतुष्ट हो, लेकिन इसमें कामयाबी दूसरे हाफ में ही मिलती है।
सलमान के ढेर सारे चाचा-चाची, असिन के ढेर सारे मामा-मामी, उनके बच्चों के किरदारों पर कोई मेहनत नहीं की गई है। सब टाइप्ड लगते हैं। विलेन वाला ट्रेक बोर करता है।
इन कमियों पर कुछ हद तक सलमान भारी पड़े हैं। उन्होंने कई बोझिल दृश्यों को अपनी स्टाइल, संवाद बोलने का अंदाज, लुक और अभिनय के कारण मनोरंजक बनाया है, लेकिन अब उन्हें अपने अभिनय में नयापन लाना चाहिए वरना जल्दी ही वे अक्षय कुमार की तरह टाइप्ड हो जाएँगे।
असिन सुंदर लगी हैं और अभिनय में उनके लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। परेश रावल हँसाने में कामयाब रहे हैं। अखिलेन्द्र मिश्रा पता नहीं कब तक लाउड एक्टिंग करते रहेंगे? शरत सक्सेना, मनोज जोशी, अनुराधा पटेल, मनोज पाहवा को ज्यादा दृश्य नहीं मिले हैं।
अखिलेन्द्र मिश्रा के बेटे के रूप में मोहित बघेल प्रभावित करते हैं और उनका ट्रेक मजेदार है। संजय दत्त, अजय देवगन, चंकी पांडे, अरबाज खान, कंगना भी चंद सेकण्ड्स के लिए फिल्म में नजर आते हैं।
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प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध किए गीतों में ‘कैरेक्टर ढीला’ और ’ढिंका चिंका’ इस समय सभी की जुबां पर है और इनका फिल्मांकन उम्दा है। सलमान के मूवमेंट्स दर्शकों को अच्छे लगेंगे। ‘कैरेक्टर ढीला’ में जरीन खान हॉट लगी है, लेकिन उनका डांस ठंडा है।
फरहाद-साजिद और निसार अख्तर ने वैसे ही संवाद लिखे हैं जैसे कि सलमान खान निजी जीवन में बोलते हैं, लेकिन ‘मैं कुत्ता हूँ, ये कुतिया है’ जैसे घटिया और द्विअर्थी संवाद भी सुनने को मिलते हैं।
कुल मिलाकर ‘रेडी’ में सिवाय सलमान खान के ज्यादा कुछ नहीं है।