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मैं तो बहुत ही सीरियस किस्म का इंसान हूं: सुनील ग्रोवर

मैं तो बहुत ही सीरियस किस्म का इंसान हूं: सुनील ग्रोवर - Sunil Grover, Coffee With D, Gutthi
'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' के गुत्थी हो या 'द कपिल शर्मा शो' के मशहूर गुलाटी हो या 'रिंकू भाभी' हो, शो में सुनील ग्रोवर के बिना शो के मसाले में नमक कम लगता है। अब शोज के उसी नमक यानी सुनील ग्रोवर से जुड़ी बात बताते हैं। वो 'कॉफी विथ डी' नाम की फिल्म में अहम किरदार कर रहे हैं। उनसे बात कर रही हैं हमारी संवाददाता रूना आशीष।


 
बॉलीवुड में आने के पहले आप कैसे थे और अब आप कैसे शख्स बन गए हैं?
पहले और बाद में तो मैं जाति तौर पर ऐसा ही था। हां, अब परफ्यूम पहले से बेहतर लगाने लगा हूं और ब्रांडेड कपड़े भी ज्यादा पहनने लगा हूं। क्या करूं, अब आप जैसे बड़े-बड़े लोगों से मिलने लगा हूं ना! इंटरटेनमेंट की दुनिया में आने से पहले मैं सोचता था कि घर हो, अच्छी गाड़ी हो। मेरा कॉन्फिडेंस भी कम था, लोग जरा मुझे कम अपनाते थे। लेकिन अब इस दुनिया में आने से लोग मुझे अपनाने लगे हैं व मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ गया है और अब लगता है कि और भी काम करूं। आप बहुत सारे लोगों के आभारी हो जाते हैं और एटिट्यूड ऐसा हो जाता है कि कोशिश होती है कि जो लोग प्यार करते हैं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा मिल सकूं, समय बिता सकूं। आपके आसपास लोग बहुत सारे होने लगते हैं। कई बार समझ में नहीं आता है कि आपकी पारिवारिक और व्यावसायिक जिंदगी कहां एकसार हो गई है। बहुत अच्छा लगता है। पहले आप जिस ऑफिस में जाते थे, वहां अंतर आ जाता है। पहले तो 3 हुआ करते थे अब 5 ऑफिस हो गए हैं। जब आप अपने ऑफिस पहुंचते हैं तो दरवाजे अपने आप खुलने लगते हैं, चाय-कॉफी मिलने लगती है और कभी-कभी तो कॉफी-चाय मुफ्त में मिलने लग जाती है। आप कहीं किसी कैफे में जाएं तो फ्री में मिल जाती है। पहले जब पैसे नहीं थे तो कोई नहीं पूछता था और अब तो मुफ्त में पिलाने वाले को देखते हैं। तो ये अंतर आ गया है।
 
आप 'प्यार तो होना ही था' में भी दिखे थे।  वो कैसा समय था? 
'प्यार तो होना ही था' के समय तो मैं एक छात्र था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मैं कभी एक्टिंग ऐसे करूंगा और मुंबई भी जाऊंगा। मैं तो कॉलेज में बड़ा मशहूर हुआ करता था। मैं ड्रामा करता रहता था ना। 
 
तो आप लड़कियों के बीच लोकप्रिय रहे होंगे?
लड़कों में लोकप्रिय था। लड़कियों में तो ध्यान अपनी तरफ करने के लिए बहुत ही ज्यादा मुश्किल होती थी। बहुत कोशिशें करनी पड़ती थीं। जहां तक पढ़ाई की बात है तो मैंने वहां भी बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर मुझे यूनिवर्सिटी में बहुत अटेंशन मिली। बहुत सारे नाटक किए। मैं कई सारी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेता था और बाहर ही घूमता रहता था। 
 
एक समय था जब आप शाहरुख की एक्टिंग करके मनोरंजन करते थे? वे भी टीवी से हैं और आप भी टीवी की दुनिया से। तो कहीं उनकी तरह बनने का इरादा तो नहीं है? 
उनका तो पूरा सफर ही बहुत अलग रहा है। मैं तो आपकी उनके साथ तुलना भी नहीं कर सकता हूं। उनके जैसा तो एक प्रतिशत भी कर लो तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। मैं उनके जैसा कभी बन भी नहीं सकता हूं। हां, जो मैं कर सकता हूं, वो है अपने अंदर की आवाज को सुनूं। अपने दिल की बात समझ सकूं और अपना सफर खुद बना सकूं। वैसे भी परिणाम आपके हाथ में नहीं है लेकिन मेहनत तो है। तो मैं तो मेहनत करता रहूंगा।
 
आप हमेशा कॉमेडी करते रहे हैं लेकिन 'गब्बर' के साथ लोगों ने आपको सीरियस रोल में भी देखा। आपके अंदर के अभिनेता को कैसा लगता है? 
मैं 'गब्बर' के पहले थोड़ा नर्वस था कि लोग क्या सोचेंगे। कैसे लेंगे मेरे इस रोल को, क्योंकि आपको टाइपकास्ट कर दिया गया है। ये तो निर्माता ने बड़ा साहस दिखाया मुझे कास्ट करके। इसके पहले भी 'जिला गाजियाबाद' में भी ऐसा ही रोल था बल्कि उसमें तो मेरा निगेटिव रोल था लेकिन वो फिल्म कुछ खास नहीं कर पाई। उस फिल्म को सिर्फ 13 लोगों ने देखा जिनमें से 8 तो मेरे घरवाले थे और बाकी के निर्माता की तरफ से आए थे। वैसे ड्रामा के स्टूडेंट होने के नाते तो मैंने सिर्फ सीरियस रोल ही किए हैं, जैसे हेमलेट या कॉकेशियन चॉक सर्कल और ज्यादातर तो उसमें से ट्रैजेडीज ही थी। आप भी नहीं जानते कि जिंदगी आपको कहां लेकर जाती है और कैसे लेकर जाती है? मुझे जो ट्रेनिंग मिली है, वह एक्टिंग की मिली है। मुझे तो कॉमेडी भी एक्टिंग की वजह से ही मिली, वर्ना मुझे तो कॉमेडी करना नहीं आती। मैं तो किसी कैरेक्टर का कैरीकैचर बना लेता हूं और वो लोगों को पसंद आ जाता है वर्ना मैं तो बहुत ही सीरियस किस्म का इंसान हूं। आप कहें कि सुनील मुझे हंसाओ तो मैं तो नहीं, नहीं कर सकता।
 
आपका बेटा जब भी अपको एक महिला के किरदार में देखता है तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है? 
पहले तो उसे अच्छा नहीं लगता था। शायद वह सोचता हो कि मेरी मां ही बहुत है तो एक और औरत क्यों? या दो मां क्यों? एक पिता तो हो ना? इसके अलावा शायद किसी ने बिल्डिंग में भी कह दिया हो कि आपके पिता तो लड़कियों का रोल करते हैं तो उसने मुझे आकर कहा कि लड़की का किरदार मत करो, तो फिर मैं उसे मॉल लेकर गया। वहां कई लोग मेरे साथ सेल्फी ले रहे थे और फोटो खींच रहे थे। तो फिर मैंने कहा ये सब लोग मेरे साथ ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आपके पापा टीवी पर एक लड़की का रोल प्ले करते हैं। तो क्या ये एक बुरा काम हुआ? शायद इसके बाद वो काफी कंफर्टेबल फील करने लगा। अब तो वो मेरी कॉपी भी करने लगा है।
 
आपको किस चीज में ज्यादा मजा आता है? टीवी या फिल्म्स?
मुझे अच्छे काम में मजा आता है, चाहे वो टीवी हो या फिल्म या थिएटर या लाइव शोज हो या नुक्कड़ नाटक ही क्यों न हों। और साथ ही वो काम जिसमें मेरी कमाई अच्छी हो जाए।
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