शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. मुलाकात
  4. special interview with shashank khaitan

जाह्नवी, ईशान और मैं उदयपुर में आराम से घूमते थे, हमें कोई नहीं पहचानता था : शशांक खेतान

जाह्नवी, ईशान और मैं उदयपुर में आराम से घूमते थे, हमें कोई नहीं पहचानता था : शशांक खेतान - special interview with shashank khaitan
'मुझे खेलने का बहुत शौक है लेकिन अभी तक मेरे पास ऐसी कोई कहानी नहीं आई है या मुझे ऐसी कोई कहानी नहीं मिली है, जो खेल पर बनी हो या मेरे सामने ऐसी कोई कहानी लेकर आया हो। वैसे भी मेरा मानना है कि खेल या स्पोर्ट्स एक बहाना है। वो आखिर में आपको एक मानवीय भावनाओं वाली कहानी ही लगती है। मैं खुद देश के कई हिस्सों में क्रिकेट खेलने जा चुका हूं। पिछले 1 साल से मैं फुटबॉल भी खेल रहा हूं। जिस दिन कोई कहानी मिल गई स्पोर्ट्स पर भी तो फिल्म बना दूंगा।'
 
'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' फिर 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' बनाने के बाद शशांक की अगली फिल्म 'धड़क' लोगों के सामने आ चुकी है। उनसे बात कर रही हैं 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष। 
 
ईशान और जान्हवी दोनों नए हैं, कैसा रहा 'धड़क' का सफर उनके साथ?
बहुत अच्छा। दोनों नए हैं। दोनों में बहुत एनर्जी है। मैं ईशान को उस समय से जानता था, जब उनकी पहली फिल्म 'धड़क' होने वाली थी न कि 'बियॉन्ड द क्लाउड्स'। लेकिन उस समय मैं 'बद्री' में मसरूफ था और ईशान को उसी दौरान माजिद मजीदी जैसे निर्देशक की तरफ से फिल्म मिली थी। हम बिलकुल नहीं चाहते थे कि वो इतना अच्छा मौका गंवाए। जब हमारी फिल्म भी शुरू हुई तो दोनों के दोनों मेरे पास ऐसे आते थे, जैसे कि मेरे पास ही उनके सारे सवालों के जवाब हैं। मैं सोच में पड़ जाता था कि इतनी भी उम्मीद मत लगाओ और मैं भी अभी सीख ही तो रहा हूं।
 
तो शूट के पहले दोस्ती हो गई थी आप तीनों की?
बिलकुल, मैं उन्हें फिल्म शुरू होने से पहले अपने साथ रेकी पर उदयपुर और जयपुर लेकर गया हूं। हम आराम से शहर में घूमते थे। हमें कोई नहीं जानने वाला था। हम बेखौफ और बिना किसी बॉडीगार्ड के बाजारों में घूमने-फिरने निकल जाते थे। इससे फायदा ये हो गया कि हम लोग फिल्म शुरू होने तक एक-दूसरे को अच्छे से समझने लगे और वही बात फिल्म के ट्रेलर में लोगों को दिखी। ऐसा लगा कि फिल्म बनाते समय इन सब ने बहुत मजे किए हैं और बिना किसी टेंशन के फिल्म बनी है। 
 
बतौर निर्देशक आपने जान्हवी को कैसे संभाला खासकर, जब उनकी मां की मौत हो गई थी और वो समय उनके लिए मुश्किलभरा रहा होगा?
हमने कुछ नहीं किया। किसी के इमोशन को समझने या उससे समझदारी से निभाने के लिए बहुत जरूरी है कि उसके साथ छेड़छाड़ ही न की जाए। हमने सबकुछ बिलकुल सामान्य रखा था। ऐसा नहीं कि आज जान्हवी थोड़ी ज्यादा इमोशनल हो गई है, तो वैसे वाले सीन करवा लें। जो शेड्यूल में था, वही किया। अगर सीन मस्ती वाला था, तो उससे मस्तीवाला सीन ही करवाया। बतौर अभिनेत्री आपको इतना तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी सच्चाई हमेशा ये रहेगी कि उस पर जो बीत रही है, उसे हम में से कोई कभी नहीं समझ सकेगा। मेरी बात करो तो मेरी मां मेरे साथ हैं, तो कैसे समझूं कि जब मां नहीं होती तो कैसा लगेगा?
 
जान्हवी की हिन्दी के बारे में क्या कहेंगे?
जान्हवी को पहले से पता था कि उनमें क्या-क्या कमियां हैं, तो वो उस पर काम करना शुरू कर चुकी थीं। वो काम करती थी और मेरा काम हर महीने के अंत में होता था कि और काम करो। वैसे जितना मैं इस पीढ़ी को समझ सका हूं, वो भाषा को समझते हैं और इस पर मेहनत करना भी जानते हैं। बस इतनी-सी बात है कि रोजमर्रा की भाषा शायद अंग्रेजी है, तो हिन्दी में बात बहुत नहीं कर पाते हैं। लेकिन जब जरूरत होती है, तो वो लोग काम भी करना जानते हैं। वैसे भी कोई भी भाषा आदत की बात होती है। 

 
आप 'सैराट' जैसी फिल्म को नए रूप में लोगों के सामने ला रहे हैं। कोई रिस्क लगती है?
 रिस्क तो हर फिल्म में होती है। हमने 'सैराट' को अडैप्ट किया है। आत्मा नहीं है, बस बाहरी रंग-रूप बदल गया है। जब मैंने करण से कहा था कि मैं 'सैराट' को हिन्दी में बनाना चाहता हूं तो वो बोले कि 'सैराट' को अगर हिन्दी में ही लाना है तो डबल कर दें, तुम्हें निर्देशन के लिए क्यों दें? तब मैंने करण को अपनी सोच बताई और क्या-क्या बदलाव लाना चाहता हूं, वो बताया। तब जाकर करण ने इसे माना। मुझे नहीं लगता कि फिल्म को कोई अगर पसंद कर रहा हो तो वो कहेगा कि फिल्म तो अच्छी है लेकिन इसलिए पसंद नहीं कर रहे हैं कि ये मराठी की 'सैराट' की कॉपी है। हमने हक से इसके गाने भी हिन्दी में बदलकर लिए हैं और सबको कहकर लिए हैं कि जो गाने हम 'सैराट' में से ले रहे हैं, उसे वैसे का वैसा ही रखा जाएगा। 
ये भी पढ़ें
मेरी तो औकात नहीं है कि मैं उनको मना कर सकूं : ईशान खट्टर