एम्मा उर्फ आयशा... चरित्र नहीं प्रवृत्ति
बड़े लेखक जब कोई पात्र रचते हैं, तो पहली नजर में वो केवल एक ही आदमी का नक्शा होता है, मगर गहराई में जाकर देखें, तो उस एक पात्र में कोई ऐसी प्रवृत्ति भी होती है, जो बहुत लोगों में पाई जाती है। बड़ा औपन्यासिक पात्र वही होता है, जिसमें हम लोग अपने आसपास के किसी आदमी को देख लें, अपने आप को देख लें। दोस्तोयवस्की के उपन्यास "द ईडियट" का नायक राजकपूर के निभाए हर किरदार में दिखता है। राजकपूर के निभाए किरदारों का गेटअप चार्ली चैप्लीन के नजदीक है, हाव-भाव भी चैप्लीन के नजदीक हैं, मगर उन सबकी आत्मा में "द ईडियट" का नायक है। "
जिस देश में गंगा बहती है" का राजू दोस्तोयवस्की का ईडियट है। एक ऐसा आदमी जो सकारात्मक ढंग से भला है। जिसकी अच्छाई गिनाने में नकारात्मक शब्दों का सहारा नहीं लेना पड़ता, जैसे - ये चोरी नहीं करता, ये पराई बहू-बेटियों को अपनी माँ-बहन मानता है, ये बेईमानी नहीं करता...। इस तरह जिसकी अच्छाई "नहीं" की मदद से बयान नहीं करनी पड़ती। जेन आस्टिन के उपन्यास "एम्मा" पर बनी हिन्दी फिल्म का मुख्य पात्र आयशा ही है। ये आयशा जोड़े मिलाकर खुश होती है और कुदरत के काम में टाँग अड़ाती है। ये चाहती है कि शादी बराबरी वालों में हो। एक सहेली का दिल गरीब लड़के पर आया है, आयशा उसे कन्फ्यूज करती है और उस लड़के से मिलने नहीं देती। क्या ये "आयशा" भी एक प्रवृत्ति नहीं है? ये प्रवृत्ति हम सब में पाई जाती है। जवान लड़का-लड़की के माँ-बाप में सबसे ज्यादा। जहाँ कोई अच्छा दिखा (या दिखी) नहीं कि आयशा प्रवृत्ति सक्रिय हो जाती है। पड़ताल की जाती है, अंदाजे के घोड़े दौड़ाए जाते हैं, जुगाड़ लगाई जाती है। जिन लोगों को इसमें मजा आता है, वो दूसरों के लिए भी ये करने लगते हैं। कुछ को तो ये शौक रोजगार भी देने लगता है। ज्ञान चतुर्वेदी के प्रसिद्ध व्यंग्य उपन्यास "बारामासी" में इस प्रवृत्ति के जीवंत प्रतीक हैं "भैयन मामा"। मगर फिल्म में इस आयशा प्रवृत्ति को मात खाते दिखाया गया है। कुदरत किसी आयशा के तय किए हुए रिश्तों को नहीं मानती। किस के दिल में कब किस के प्रति आकर्षण और प्यार पैदा हो जाए, कहा नहीं जा सकता। इस आयशा प्रवृत्ति ने संसार को दुःखी कर रखा है। दूसरों के कहने पर लोग शादी कर लेते हैं और उम्र भर दुःखी रहते हैं। ये आयशा प्रवृत्ति कुदरत के नियमों को नहीं समझती। इसीलिए शादी तय करते समय बहुत गड़बड़ की जाती है। लंबे लड़के के लिए लंबी लड़की ढूँढी जाती है, जबकि लंबे लड़कों का स्वाभाविक आकर्षण ठिगनी लड़की में होता है। काले लड़के को गोरी लड़की नहीं दी जाती, जबकि गोरी लड़कियों को "श्याम रंग" बहुत भाता है। मोटे की शादी मोटी से कराई जाती है, जबकि आकर्षण एकदम विपरीत में होता है। संसार के तमाम प्रेम विवाह, शादी के पहले और बाद के अवैध कहे जाने वाले संबंध और लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते आयशाओं से बगावत का प्रतीक है। आयशा प्रवृत्ति से मुक्त होकर हम सुखी हो पाएँगे या नहीं, ये बाद की बात है, मगर यह तय है कि आयशा के साथ नहीं जिया जा सकता।"