Srinivasa Ramanujan: प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती मनाई जाती है। उन्हें संख्याओं का जादुगर कहा जाता है। विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे श्रीनिवास रामानुजन के व्यक्तित्व बारे में जानते हैं कुछ अद्भुत बातें....
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 22 दिसंबर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दूर ईरोड में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर और माता का नाम कोमलताम्मल और था।
रामानुजन का बचपन से ही गणित विषय से लगाव था। उन्हें हमेशा गणित में अच्छे नंबर आते थे।
गणित में महारत हासिल कर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। मात्र 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने त्रिकोणमिति यानी ट्रिग्नोमेट्री में महारथ हासिल की थी।
श्रीनिवास रामानुजन ने कुम्भकोणम के प्राइमरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद सन् 1898 में हाईस्कूल में प्रवेश लिया तथा सभी विषयों में अच्छे नंबर प्राप्त किए। उसी दौरान उन्हें जीएस कार की गणित पर लिखी पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला और इसी पुस्तक से प्रभावित होकर उनकी रुचि गणित में बढ़ने लगी।
उन्हीं दिनों एक शुभचिंतक की नजर उन पन्नों पर पड़ी और वह रामानुजन से काफी प्रभावित हुआ। फिर उसने रामानुजन को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रो. हार्डी के पास भेजने का प्रबंध किया और प्रो. हार्डी ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना औार उन्हें अपनी पहचान बनाने का मौका दिया, जिसका सम्मान आज पूरी दुनिया करती है।
रामानुजन ने घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए क्लर्क की नौकरी की तथा अक्सर वे खाली पन्नों पर गणित के सवाल हल करते रहते थे। पिछली सदी के दूसरे दशक में गणित की दुनिया को रामानुजन ने एक नया आयाम दिया।
बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि गणितज्ञ जीएस हार्डी ने श्रीनिवास रामानुजन को यूलर, गॉस, आर्कमिडीज तथा आईजैक न्यूटन जैसे दिग्गजों की समान श्रेणी में रखा था। दुनिया में जहां भी संख्याओं पर आधारित खोजों तथा विकास की बात की जाती हैं तो भारत की गणितीय परंपरा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाता है।
श्रीनिवास रामानुजन जिन्हें 'गणितज्ञों का गणितज्ञ' और 'संख्याओं का जादुगर' कहा जाता है, उन्हीं के जन्मदिन के दिन ही 'राष्ट्रीय गणित दिवस' भी मनाया जाता है, ताकि भावी पीढ़ियों को गणित के महत्व और उनके प्रयोगों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा सके।
रामानुजन के छोटे-से जीवनकाल की उपलब्धियों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद उनकी 5,000 से अधिक प्रमेय (थ्योरम्स) छपवाई गईं। इन गणितीय प्रमेयों में अधिकतर ऐसी थीं जिन्हें कई दशक बाद तक भी सुलझाया नहीं जा सका।
इतना ही नहीं विषम परिस्थितियों में पले-पढ़े रामानुजन ने भारत में अंग्रेजी शासन काल के दौरान कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी परिसर में अपनी शोध पताका फहराई और हर भारतवासी को गौरवान्वित कराया।
गणित के क्षेत्र में की गई रामानुजन की खोज आधुनिक गणित और विज्ञान की बुनियाद बनकर उभरी हैं, इसीलिए उन्हें 'गणितज्ञों का गणितज्ञ' और 'संख्याओं का जादुगर' कहा जाता है। ऐसे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का निधन मात्र 33 वर्ष की उम्र में मद्रास में 26 अप्रैल 1930 को हुआ था।