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Last Modified: मंगलवार, 21 मार्च 2017 (10:53 IST)

योगी आदित्यनाथ और हिंदू युवा वाहिनी

योगी आदित्यनाथ और हिंदू युवा वाहिनी | yogi adityanath
- समीरात्मज मिश्र (गोरखपुर से) 
 
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाक़े में योगी आदित्यनाथ की जितनी चर्चा होती है, उससे कहीं ज़्यादा चर्चित उनका संगठन हिंदू युवा वाहिनी है।

साल 2002 में गोरखपुर के तत्कालीन सांसद और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब इसका गठन किया था तो इसे उन्होंने एक सांस्कृतिक संगठन बताया था। उस समय इस संगठन का काम था, गांवों और शहरों में जाकर कथित तौर पर राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी गतिविधियों को रोकना। लेकिन कई लोग इसके पीछे कुछ और ही मक़सद मानते हैं।
 
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश लाल बताते हैं, "इसके पीछे योगी जी की राजनीतिक सोच थी। इसके ज़रिए उन्होंने राजनीतिक नेटवर्किंग की। 20-22 साल के जोशीले युवा एक ख़ास विचारधारा को लेकर लोगों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे थे, इन्हें एक नेतृत्व के अधीन ला रहे थे और इस अभियान में वो काफी हद तक सफल भी रहे।"
 
पहला चुनाव : इसके पीछे सच्चाई भी है। योगी आदित्यनाथ ने 1998 में पहला लोकसभा चुनाव 26 हजार वोट से जीता था लेकिन 1999 में हुए दूसरे चुनाव में उनकी जीत का अंतर महज़ सात हज़ार मतों तक सिमट कर रह गया। जानकारों का कहना है कि हिंदू युवा वाहिनी बनाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था।
 
राष्ट्रीय सुरक्षा : वाहिनी के कई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज हुए और कई जेल भी गए। ख़ुद योगी आदित्यनाथ को 2007 में 11 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। उनके साथ युवा वाहिनी के प्रदेश महामंत्री राम लक्ष्मण भी जेल में बंद थे।
वो बताते हैं, "2007 में जब गोरखपुर में एक हिंदू व्यापारी की हत्या हुई थी तो उसका योगी जी के नेतृत्व में हम सबने प्रतिरोध किया था। लेकिन तत्कालीन सरकार ने योगी जी समेत तमाम लोगों को जेल में डाल दिया गया। मैं साल भर जेल में रहा और मेरे ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी धाराओं के तहत कार्रवाई हुई।" इस संगठन के ज़रिए योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ़ अपनी राजनीतिक पकड़ मज़बूत की बल्कि उसका दायरा भी बढ़ाया।
 
युवा वाहिनी : उनके समर्थक अब गोरखपुर तक सीमित रहने की बजाय लगभग पूरे पूर्वांचल में फैल गए और राजनीतिक प्रभाव रखने लगे। इस बढ़े राजनीतिक प्रभाव का लाभ योगी आदित्यनाथ को भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाने और अपनी अहमियत साबित करने में भी मिला।

जानकारों का ये भी कहना है कि इसी साल 2017 के विधान सभा चुनाव में जब युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने बग़ावत की और अपने उम्मीदवार बीजेपी के ख़िलाफ़ उतार दिए, उसमें भी कहीं न कहीं योगी आदित्यनाथ की मौन सहमति थी।
 
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, "चुनाव के दौरान जिस तरह से योगी आदित्यनाथ को किनारे किया जा रहा था, उसे देखते हुए योगी के समर्थकों ने बीजेपी पर दबाव बनाया। दबाव कारगर भी हुआ। योगी के कई ख़ास लोगों को न सिर्फ़ टिकट मिला बल्कि ये लगातार दबाव का ही नतीजा है कि पार्टी को उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी बैठाना पड़ा। बात यदि युवा वाहिनी की की जाए तो बिना योगी आदित्यनाथ के उसका कोई वजूद नहीं है।"
 
कार्यकर्ता और पदाधिकारी : हालांकि चुनाव के दौरान बग़ावत करने वाले युवा वाहिनी के लगभग सभी कार्यकर्ता और पदाधिकारी अब उनके साथ हैं। ये अलग बात है कि प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह और महामंत्री राम लक्ष्मण समेत कई लोग अभी भी निलंबित चल रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के नाम के एलान के समय से ही सुनील सिंह जहां योगी आदित्यनाथ के साथ लखनऊ में दिख रहे हैं वहीं राम लक्ष्मण कहते हैं कि हमारे निलंबन के बाद हमारी जगह कोई नया पदाधिकारी युवा वाहिनी का बना ही नहीं है।
 
वो कहते हैं, "हम लोगों की नाराज़गी और बग़ावत की वजह ये थी कि बीजेपी योगी जी को उचित सम्मान नहीं दे रही थी। लेकिन अब जबकि उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया है, तब सारी नाराज़गी दूर हो गई है और वो बातें अब पुरानी हो गई हैं।"
 
बहरहाल, ऐसा युवा वाहिनी के कार्यकर्ता कह रहे हैं। अभी योगी आदित्यनाथ ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है कि वो निलंबन वापस लेंगे, संगठन को पहले की तरह ही चलाएंगे या फिर अब नहीं चलाएंगे। लेकिन, अब जबकि योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बन गए हैं तो लोगों के ज़ेहन में दो सवाल आ रहे हैं- क्या उन्हें इस संगठन की अभी भी ज़रूरत है और दूसरे, बड़ी संख्या में युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ जो मुक़दमे दर्ज हैं, उन पर क्या कार्रवाई होगी?
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