शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Tarek Fatah interview
Written By
Last Modified: शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017 (15:16 IST)

मुझसे भारत के मुसलमान नहीं मौलवी चिढ़ते हैं: तारेक़ फतह

मुझसे भारत के मुसलमान नहीं मौलवी चिढ़ते हैं: तारेक़ फतह - Tarek Fatah interview
पाकिस्तान में पैदा हुए कनाडा के लेखक और मुस्लिम कनेडियन कांग्रेस के संस्थापक तारेक फ़तह ने इस्लाम, मुसलमान और भारत पाकिस्तान से संबंधित कई मुद्दों पर बीबीसी से बात की है।
अपने बयानों के लिए चर्चा में बने रहने वाले तारेक फ़तेह ने बीबीसी से फेसबुक लाइव के दौरान कहा कि इस्लाम का बुनियादी मक़सद अल्लाह को एक मानना है। पैगंबर मोहम्मद के साथ जो लोग सबसे पहले आए उनका मकसद तौहीद था, यानी इंसान को अल्लाह के सिवाय किसी के सामने सर नहीं झुकाना चाहिए।
 
वो बातें जो तारेक़ फ़तेह ने कहीं -
*पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद जो फसाद शुरू हुए थे वो आज तक चल रहे हैं। उनकी मौत के बाद 18 घंटे तक उनका शव पड़ा रहा किसी ने उन्हें दफ़नाया नहीं। मुस्लिम शायद ये नहीं जानते हैं या फिर जानना नहीं चाहते कि हमारी आज की मुसीबतें उसी दिन से शुरू हुईं। ये तय हो गया कि जो कुरैशी हैं वो ख़लीफ़ा बन सकते हैं और अंसार जो हैं वो सिर्फ कुरैशी की खिदमत कर सकते हैं।
 
*शिया-सुन्नी तो कभी मसला था ही नहीं। अंसार बहुसंख्यक थे उन्होंने अपना नेता चुन लिया। जो मक्का-मदीना में रहने वाले अल्पसंख्यक थे। उन्होंने शोर मचाया था कि जो कुरैश नहीं है वो ख़लीफा नहीं हो सकता। इस्लाम का ये संदेश कि हर कोई बराबर है वो उसी दिन ख़त्म हो गया था।
 
*दोगलापन हमारी पहचान बन गई है। इतिहास में लिखी बातें हम जानना नहीं चाहते और कोई सवाल करता है तो घुमा-फिरा कर जवाब देते हैं।
 
*मुझसे भारत के मुसलमानों को नहीं मौलवियों को मुश्किल होती है। ग़ज्वा-ए-हिंद मैंने तो नहीं लिखी, फिर मुझ पर लोगों को क्यों ऐतराज़ है मुझे नहीं पता।
 
*90 फीसदी मुसलमान 20वीं सदी तक तो अनपढ़ थे। अब उनमें घमंड आ गया है। वो अपने आप को विक्टिम मानते हैं, वोटबैंक की राजनीति करते हैं। वो ख़ुद कह रहे है कि हमें बैकवर्ड माना जाए।
*वो ज़मीन जहां रसूल अल्लाह की औलादों को पनाह मिली उस ज़मीन को इज़्ज़त देने की बजाय आपने अपने नाम उनसे जोड़ने शुरू कर दिए। वो पूछते हैं आपने किस शहर का नाम इलाहाबाद रखा है? क्या मक्का का नाम कभी रामगढ़ हो सकता है? आप तो घमंड से कहते हैं कि हिंदुस्तान की पवित्र जगह का नाम आपने अल्लाह के नाम पर रख दिया। फिर भी लोग कहते हैं कि कोई बात नहीं, साथ मिल कर चलना है।
 
*कितने मुसलमान होंगे जो कोच्चि में इस्लाम की पहली मस्जिद में गए होंगे? क्योंकि उसे किसी हिंदू राजा ने बनाया था। 629 में तो ख़ुद रसूल अल्लाह ज़िंदा थे और उस समय इस्लाम भी नहीं आया था।
 
*हर वो मुसलमान जिसने अपने नाम के आगे सैयद, नक़वी, नदवी, सिद्दिकी लगा लिया है वो दूसरों को कहते है अपनी औक़ात समझो। लेकिन नफासत से उर्दू नहीं बोलने वाले पूर्व भारतीय राष्ट्रपति को मुस्लिम नहीं मानते।
 
*वो मुसलमान जिसका रंग काला है और जो ग़लती से मुसलमान हो गया वो इस्लाम के बारे में कुछ नहीं जानता। मैं सड़क का नाम औरंगज़ेब रखने के भी ख़िलाफ़ था। मैंने कहा था नाम बदलो नहीं तो जहां-जहां औरंगज़ेब का नाम होगा वहां मैं काला पेंट लगा दूंगा।
 
*दाराशिकोह तो लाहौर का था पंजाबी बोलता था, उससे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं। जिसने दाराशिकोह की गर्दन काटी वो चोर है।
भारत के मुसलमानों को लगता है कि अचकन नहीं पहनने वाला और उर्दू नहीं बोलने वाला मुसलमान नहीं है। उन्होंने बादशाह ख़ान को कह दिया आपके नाम से खान मार्केट बना देते हैं, आप जाइए दूर।
 
*मैं अभी से चर्चा में नहीं हूं बल्कि कई सालों से चर्चा में है। में 1963 से चर्चा में हूं बस आपको आवाज़ नहीं आई। आप अपना कान ठीक न कराएं ये मेरी समस्या नहीं।
 
*इस सवाल के उत्तर में कि जब से भारतीय जनता पार्टी हुकूमत में है तब ही आप आए हैं, तारेक़ ने कहा तो क्या सलमान ख़ुर्शीद और शशि थरूर भाजपा के थे जिन्होंने मुझे बुलाया था। या फिर उन्होंने अपनी पार्टी ही बदल दी है।
 
*आपको ना यमन का पता है, ना बलूचिस्तान का ना ही पाकिस्तान की। पूरा भारत इंट्रोवर्ट बन गया है और ये मेरा दोष नहीं हैं।
 
* तारेक़ ने माना कि वो अपना निशाना तय करते हैं और फिर हमला करते हैं। उन्होंने कहा, मैं चोर को निशाना पर तो लूंगा।
 
*तारेक़ खुद को 5000 साल पुरानी तहज़ीब का हिस्सा मानते हैं। इस सवाल पर कि क्या वो जो गड़बड़ियां मुसलमान और इस्लाम में देखते हैं क्या वो ही दूसरे धर्मों में भी देखते हैं, तारेक़ ने कहा कि वो विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया की निंदा करते हैं लेकिन इन जैसे लोग तो 9/11 हमले में शामिल नहीं थे, उन्होंने बाली में हमला नहीं किया ना ही मुंबई पर हमला किया। मैं उनके ख़िलाफ़ नहीं हूं।
 
*आरएसएस के बारे में तारेक़ कहते हैं कि वो हिंदुत्व को लेकर चलती है और हमारे इंटेलिजेंट लोग बंधे हुए हैं। उन्होंने बीते 1000 साल से देश में दरियाए सिंध के आगे देखा ही नहीं। जिहादी तो हिंदुस्तान को बायोपार्टिकल समझता है। तारेक़ कहते हैं कि इस वक्त तो आईसिस (कथित इस्लामिक स्टेट) का मुख्य व्यक्ति हिंदुस्तानी है।
 
*तारेक़ कहते हैं कि अगर सारे खालिस्तानी, पंजाब से सिख बब्बर खालसा में घुस जाते हैं तो ज़्यादा से ज़्यादा पंजाब हिंदुस्तान से अलग हो जाएगा और वो पाकिस्तान का सैटेलाइट देश बन जाएगा। ऐसा तो नहीं हो सका। मैं खालिस्तान का समर्थन नहीं करता हूं और मैंने कभी ऐसा किया भी नहीं हैं।
 
*मैं पहले भी इसराइल का समर्थन नहीं करता था, अब भी नहीं करता। मैं सद्दाम हुसैन का कभी समर्थक नहीं था। क्या आपने कभी गुलाम नबी आज़ाद से पूछा कि उनका बेटे का नाम सद्दाम हुसैन कैसे पड़ा?
 
*मुसलमान औरतों का दर्जा भारत से अधिक पाकिस्तान में ज़्यादा है। हिंदुस्तान के कुछ इलाकों की औरतों का दर्जा पाकिस्तान की औरतों से ज़्यादा है जबकि कुछ इलाकों में कम है। बलूचिस्तान में तो महिलाएं गुरिल्ला फाइटर है। आश्चर्य है कि हिंदुस्तान की महिला करीब में हो रहे नरसंहार पर बात ही नहीं करतीं।
 
*मर्दों में भी तभी दानिशमंदी आएगी जब उनकी मांएं उतनी मज़बूत होंगी और वो पिंजरे में बांधी नहीं जाएंगी।
जो लोग बुर्का का इस्तेमाल करते हैं यानी अपना चेहरा छिपाते हैं उनको गिरफ्तार करना चाहिए। चेहरा कभी नहीं छिपाया जाना चाहिए। बुर्क़ा और इस्लाम का आपस में कोई संबंध है ही नहीं।
 
*भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैं वोट नहीं देता। उनकी स्ट्रेंथ है कि उनको अभी तक कई लोग स्वीकार कर नहीं पाए, वो कहते हैं कि वो चायवाला हैं। कुछ लोगों को कोफ्त भी होती है कि एक आम आदमी कैसे प्रधानमंत्री बन गया है।
 
*इस सवाल के उत्तर में कि अगर आपका नाम तारा चंद होता तो क्या होता, तारेक़ ने कहा कि शास्त्री जी और इंदिरा गांधी जैसे लोग भारत को बार-बार मिलें। यहां के लोगों ने दूसरों को मारा होता तो मैं उनके विरोध में ज़रूर बोलता।
 
*सच हैं इस सरज़मीं की बुनियाद सच पर है (सत्यमेव जयते)। पाकिस्तान की बुनियाद हिंदू नफरत पर टिकी है। आपकी मासूमियत है कि जिसने आपको गाली दी (इकबाल) आप इनके तराने पढ़ते हैं।
ये भी पढ़ें
वैज्ञानिकों को मिले धरती जैसे ग्रह