- प्रदीप सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं। कई जानकार मान रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का यह फैसला बहुत साहसिक है। मोदी-शाह से पहले का भाजपा नेतृत्व ऐसा फैसला शायद ही कर पाता।
इसके बावजूद कि मध्यप्रदेश में साध्वी उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाने का प्रयोग पार्टी कर चुकी है। सबको पता है कि वह प्रयोग कामयाब नहीं रहा। उमा भारती और योगी की तुलना शायद दोनों के साथ अन्याय होगा। उमा भारती हमेशा 'एकला चलो' के सिद्धांत में यकीन करने वाली रही हैं। उनके बरक्स योगी को सांगठनिक क्षमता अपने गुरु और नाथ संप्रदाय की परंपरा से मिली है।
गोरक्षनाथ मंदिर के काम काज का सामाजिक दायरा बहुत बड़ा है। इस मंदिर की स्थापना के समय से आज तक इसके किसी महंत पर कभी किसी तरह की गड़बड़ी का आरोप नहीं लगा है। फिर वे पांच बार लोकसभा सदस्य चुने जा चुके हैं। योगी की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी की रही है। इसी कारण वे भाजपा के बाकी नेताओं से अलग दिखते हैं। वैसे अलग वे अपनी सादा जीवन शैली और ईमानदारी के कारण भी लगते हैं।
योगी के मुख्यमंत्री बनने से तीन तरह के सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं।
1.पद की मर्यादा का पालन करेंगे योगी?
एक क्या उनके अतीत को देखते हुए उनसे संवैधानिक पद की मर्यादा के पालन की उम्मीद करना चाहिए। ज़ाहिर है इस बात के समर्थक और विरोधी उतने ही हैं जितने भाजपा के समर्थक या विरोधी। न्याय का तकाज़ा कहता है कि किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले उन्हें एक अवसर दिया जाना चाहिए।
ज़िम्मेदारी लोगों को बदलती है इसके बीसियों उदाहरण मिल जाएंगे। जनधारणा कैसे बदलती है इसका उदाहरण नरेंद्र मोदी हैं। योगी की तरह मोदी को भी कोई अवसर देने को तैयार नहीं था। ऐसे लोगों की कमी नहीं थी और है, जो उनके 'सबका साथ सबका विकास' के नारे को दिखावा मानते हैं। विडंबना देखिए कि आज वही लोग पूछ रहे हैं कि क्या योगी मोदी के इस नारे का अनुसरण कर पाएंगे? तो योगी को मोदी की कसौटी पर कसने की कोशिश हो रही है। मोदी को कसौटी मान लेना ही अपने आप में बड़ा परिवर्तन है।
2.सामाजिक समरसता पर योगी कितने भरोसेमंद?
योगी के बारे में दूसरा सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश जैसे इतनी विविधता वाले प्रदेश में सामाजिक समरसता के मसले पर योगी पर भरोसा किया जाना चाहिए। सीधे कहें तो सवाल है कि क्या योगी के राज में मुसलमान सुरक्षित रहेंगे?
यह सवाल भी योगी के अतीत के संदर्भ में ही उठाया जाता है। पर इस सवाल का जवाब उनके अतीत के संदर्भ की बजाय उनकी सरकार के कामकाज के संदर्भ में देखना ज्यादा उचित होगा। वे कहें कुछ भी, कितना भी दावा करते रहें, पर सरकार अगर भेदभाव करती दिखी तो उनके वर्तमान से ज्यादा उनके अतीत को ही प्रामाणिक माना जाएगा।
3. क्या मोदी से आगे जा रहे हैं योगी?
तीसरा सवाल उनकी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता के कारण उठ रहा है?
यह सवाल उठाने वाले दो तरह के लोग हैं। एक जिनको योगी में भविष्य का नेता नजर आ रहा है और दूसरे वे जिनको यह मोदी और योगी के बीच दरार डालने या दिखाने का अवसर नजर आ रहा है। उन्नीस मार्च को जब से योगी आदित्यनाथ भाजपा विधायक दल के नेता चुने गए तब से वही खबरों में हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक खबरों से गायब हो गए हैं।
तो कहा जा रहा है कि योगी मोदी से आगे जा रहे हैं। सोशल मीडिया ऐसी टिप्पणियों से भरा पड़ा है कि मोदी ने योगी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर गलती की। इस सवाल और टिप्पणी का जवाब तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। पर इतना तो सही है कि योगी के रूप में अब भाजपा को एक और लोकप्रिय नेता मिल गया है, जिसकी अपने प्रदेश से बाहर भी अपील है।
मुख्यमंत्री बनने के दस दिनों में ही भाजपा के बाकी मुख्यमंत्री उनके सामने बौने नजर आने लगे हैं। पर बहुत से लोगों की रुचि इस सबमें नहीं है। वह जानना चाहते हैं कि क्या योगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए ख़तरा बन सकते हैं। या और साफ कहें तो क्या योगी मोदी को चुनौती दे सकते हैं। ऐसा सोचने वाले भूल जाते हैं कि योगी राजनाथ सिंह नहीं हैं।
फिर योगी की उम्र अभी 44 साल ही है। उनके सामने लम्बा समय है। इसलिए जल्दी में नहीं हैं। यह सही है कि योगी के अलावा कोई और भाजपा नेता उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना होता तो बदलाव का वह संदेश नहीं जाता जो योगी के बनने से गया है। मोदी ने 2013 से पूरे देश में जिस तरह की छवि बना ली है उसे लांघ पाना भाजपा के किसी नेता के बस की बात नहीं है। योगी भी कम से कम आज तो ऐसी स्थिति में नहीं हैं।
यह बात और किसी को समझ में आती हो या नहीं, योगी को अच्छी तरह समझ में आती है। उन्हें पता है कि मोदी नहीं होते तो भाजपा के बाकी नेता उन्हें कभी मुख्यमंत्री नहीं बनने देते। योगी को पता है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाना मोदी की कमजोरी नहीं ताकत और आत्मविश्वास का नतीजा है। यह भी कि मोदी काल में भाजपा सत्ता में आने पर पहले की तरह अपनी विचारधारा के प्रति रक्षात्मक मुद्रा में नहीं हैं। इसीलिए योगी मोदी के लिए चुनौती नहीं अवसर हैं।