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Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 26 मई 2020 (11:52 IST)

मोदी 2.0: लॉकडाउन में कैसी हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'पोस्टर वुमन'

मोदी 2.0: लॉकडाउन में कैसी हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'पोस्टर वुमन' - Modi 2.0 : PM Modi poster women in Lockdown
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
 
30 मई को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो रहा है। कोरोना की वजह से सरकार इस साल का जश्न तो नहीं मना रही, लेकिन बीजेपी देश भर में 750 से ज़्यादा वर्चुअल रैली करने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी हों या सरकार के दूसरे मंत्री, 16 मई से ही अपनी उपलब्धियों का पुलिंदा ज़रूर ट्विटर पर शेयर कर रहे हैं।
 
बीजेपी ने भी एक नौ मिनट का वीडियो शेयर किया है, तो प्रधानमंत्री मोदी ने आयुष्मान भारत की सफलता पर ट्वीट किया। सरकार एक साल नहीं बल्कि पूरे छह साल के कामकाज का हिसाब दिया है जिसमें स्वच्छ भारत, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ साथ आयुष्मान योजना की तारीफ़ शामिल है।
 
बीबीसी आप तक लेकर आया है मोदी सरकार की योजनाओं की 'पोस्टर वुमेन' की कोरोना के दौर की कहानी। उन महिलाओं की ज़िंदगी में पिछले एक साल में क्या कुछ बदला? और सरकार की नीतियों और कोरोना के कहर से? सफाई कर्मचारियों जिनके पैर ख़ुद प्रधानमंत्री ने धोए, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना और आयुष्मान योजना की कुछ पहली लाभार्थियों से हमने पिछले साल अप्रैल में बात की थी। एक साल बाद हमने दोबारा उनसे बात की, ये पता लगाने के लिए कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में क्या कुछ बदला है?
 
मोदी सरकार के एक साल के सफ़र को केवल सात महीने के काम के तर्ज़ पर नहीं आँका जा सकता। मार्च से मई के महीने को जोड़ना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना पहले के सात महीने। कैसे रहे बीते एक साल- सुनिए मोदी सरकार की 'पोस्टर वुमन' महिलाओं की ज़ुबानी।
 
सबसे पहली कहानी है - बांदा की ज्योति और चौबी की।
24 फरवरी 2019 को कुंभ मेले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सफ़ाईकर्मियों के पाँव धोए थे। उनमें दो महिलाएं भी थीं। एक चौबी और दूसरी ज्योति। उनकी तस्वीरें देश भर की टीवी स्क्रीनों पर दिखाई गईं।
 
लेकिन उसके बाद सब उन्हें भूल गए। जब मीडिया का शोर थम गया तब बीबीसी ने उत्तर प्रदेश के बांदा की रहने वाली इन महिलाओं से मुलाक़ात की और ये पता लगाया कि आख़िर 24 फ़रवरी के बाद उनकी ज़िंदगी में क्या बदलाव आए? पिछले एक साल में दोनों की ज़िंदगी में कोई विशेष परिवर्तन देखने को नहीं मिला।
 
चौबी अब भी बांदा में ही रहती है। बीते साल इलाहाबाद में लगे कुंभ मेले में चौबी को सफ़ाई का काम मिला था। चौबी बाँदा ज़िले के मंझिला गाँव की रहने वाली हैं। जब प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद उनके पैर धोए, तो चौबी की आँखों को विश्वास नहीं हुआ।
 
तब चौबी को लगा था कि अब उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाएँगी और उनके भी अच्छे दिन आएंगे। लेकिन बीते एक साल में चौबी के लिए कुछ नहीं बदला। बल्कि लॉकडाउन में हालत और बिगड़ी है। लॉकडाउन के चलते जो पैसे पहले कमा लेती थी, वो भी नहीं कमा पा रही है।
 
मेले में सफ़ाई का काम 12 महीने होता नहीं था, तो ख़ाली समय में चौबी बाँस की टोकरी बना लेती थी। लेकिन अब लॉकडाउन में उनकी बाँस की टोकरी भी नहीं बिक रही है। न कोई आवास मिला और न ही कोई दूसरा कोई रोज़गार और ना ही सरकार की दूसरी योजनाओं का लाभ।
 
लॉकडाउन में उनके लिए राहत की बात ये रही कि सरकारी राशन मिल गया तो घर पर बच्चों का पेट भर पा रही हैं। चौबी लॉकडाउन के पहले प्रयागराज गई थी, सफ़ाई का काम करने। लेकिन उन महीनों का वेतन भी उन्हें अभी तक नहीं मिला है।
 
ज्योति की कहानी
चौबी के साथ जिस दूसरी महिला के पाँव प्रधानमंत्री मोदी ने धोए थे, वो थी बांदा की रहने वाली ज्योति। ज्योति को प्रयागराज में सफ़ाई का काम मिल गया है। हमने ज्योति से संपर्क किया। ज्योति का दावा है कि प्रधानमंत्री के पैर धोने से उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। उनकी कहानी भी चौबी जैसी ही निकली।
 
ज्योति के मुताबिक़, "हमारी ज़िंदगी अब भी वैसे ही है। हमसे हर तरह का काम कराया जा रहा है। लेकिन तीन महीने से पेमेंट नहीं दिया है। पैसा मांगने पर हमको धमकी दी जा रही है। काम करना है तो करो, नहीं तो जाओ, फिर आपको भर्ती नहीं करेंगें और ना ही नौकरी पक्की होगी। हमारे घर में ना तो राशन है और ना ही पैसा मिला है। हम करें तो क्या करें।"
 
ज्योति को प्रयागराज मेला ग्राउंड में 12 महीने वाला काम देने का वादा किया गया है। लेकिन उनका कहना है कि सैलरी टाइम पर नहीं मिल रही है। फ़िलहाल 318 रुपये प्रति दिन के हिसाब से उनको सैलरी बताई गई है। ज्योति बतातीं हैं कि उन्हें अप्रैल में सरकार की तरफ़ से तेल और राशन मिला था।
 
लेकिन, जब राशन पर ज़्यादा सवाल पूछा तो उन्होंने हमसे ही सवाल कर लिया, "आधा किलो तेल कितने महीने चलाऊंगी दीदी? मई महीने में अभी तक कुछ नहीं मिला है।"
 
हमारी बात ज्योति से 18 मई 2020 को हुई थी। ज्योति के पास कोई जनधन खाता नहीं है, और सरकार की तरफ़ से कोई सहायता राशि उन्हें नहीं मिली है। प्रयागराज मेला ग्राउंड में सुबह 4 घंटे और शाम को 4 घंटे काम करना पड़ता है।
 
केंद्र सरकार का दावा है कि क़रीब 38 करोड़ जनधन खाता खोला गया है लेकिन ज्योति और चौबी दोनों का दावा है कि उनका नंबर अभी तक नहीं आया है। ज्योति 2019 में पहली बार ही कुंभ में सफ़ाई करने गईं थीं। वैसे वो घर पर रहतीं हैं और खेतों में काम करती हैं।
 
पिछले साल अप्रैल में जब बीबीसी ने ज्योति से मुलाक़ात की थी तो उन्हें आस थी सरकारी नौकरी की। उनकी वो आस एक साल बाद भी बरक़रार है। वो एक बार और प्रधानमंत्री मोदी से मिलना चाहती हैं, ताकि अपनी नौकरी की बात कह सकें। स्वच्छ भारत को मोदी सरकार अपने सबसे बड़ी उपलब्धि बताती है।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने 24 फरवरी 2019 को इसी सिलसिले में 'स्वच्छ कुंभ और स्वच्छ आभार' नाम से कार्यक्रम किया, जिसमें पांच लोगों को सम्मानित किया। प्रधानमंत्री मोदी के इस काम को 'चरण वंदना' का नाम दिया गया। 2019 के कुंभ में रिकॉर्ड भी बना- एक साथ रिकॉर्ड संख्या में सफ़ाई कर्मचारियों द्वारा सफ़ाई करने का।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान सफ़ाई कर्मचारियों के लिए 21 लाख रुपए के एक फ़ंड की स्थापना भी की थी। लेकिन उसी अभियान में लगे सफ़ाई कर्मचारियों का क्या हाल है उसकी जीती जागती मिसाल हैं चौबी और ज्योति। दोनों को वेतन क्यों नहीं मिला इस बारे में प्रयागराज मेला ग्राउंड के अफसरों से हमारी बात नहीं हो पाई।
 
अगली कहानी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने वाली मीना देवी की
मीना देवी आगरा के पोइया गाँव में रहती हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनको सबसे पहले आवास मिला था। मीना, बच्चों का पेट पालने के लिए सरकारी स्कूल में साफ़-सफ़ाई का काम करतीं थी और सर्दियों में आलू के खेत में बच्चों के साथ मज़दूरी।
 
लेकिन वे लॉकडाउन में ना तो स्कूल जा पा रही हैं और आलू के खेतों में काम इस सीजन में नहीं रहा। स्कूल के सफ़ाई के पैसे भी 4 महीने से नहीं मिले हैं।
 
बीबीसी ने फ़ोन पर मीना देवी से संपर्क किया। उनके मुताबिक़, "लॉकडाउन में घर चलाने के लिए कुछ भी काम काज नहीं रहा। पिछले 10-15 दिन से मनरेगा में सड़क बनाने का काम ज़रूर मिला है। लेकिन काम के अभी तक पैसे नहीं मिले हैं।"
 
मनरेगा के काम के लिए मीना देवी सुबह 7 बजे ही घर से निकल जाती हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मीना देवी को जो घर मिला था, उसमें उनका बिजली बिल 35 हज़ार का आ गया था।
 
पिछले साल अप्रैल महीने में बीबीसी की रिपोर्ट दिखाए जाने के बाद अब बिजली तो मिल रही है, लेकिन पिछली बार जो हज़ारों में बिल आया था, मीना देवी आज तक किश्तों में वो बिल भी भर रही हैं।
 
अपने बकाया बिजली बिल के बारे में मीना ने कहा, "सरकारी कर्मचारी आए थे, उन्होंने कहा इसका अब कुछ नहीं हो सकता। तुम किश्त बंधवा लो। सो अब हर महीने 2100 रुपए हम उनको देते हैं। मदद के नाम पर अफ़सर ने बक़ाया पैसे पर लगने वाला ब्याज़ कम कर दिया है।"
 
मीना ने अब तक दो किश्तें भर दी है। फिर लॉकडाउन आ गया। इसलिए भर नहीं पाई। लॉकडाउन में घर कैसे चल रहा है? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं, "लॉकडाउन के पहले थोड़ी गेंहू की कटाई कर दी थी, उसी में थोड़े पैसे और गेहूं मिल गया था, उसी से काम चल रहा है।"
 
मीना का जनधन खाता भी है। उसमें एक बार बस 500 रुपये आए थे। लेकिन पांच लोगों के 500 रुपये में महीने में क्या होगा?
 
केंद्र सरकार का दावा है कि पीएम आवास योजना के तहत दो करोड़ आवास बनाए जा चुके हैं। मीना देवी के घर पर शौचालय है, गैस पर खाना पकता है, मनरेगा के तहत वो मजदूरी कर रही है। पर लॉकडाउन ने दिक्कतें बढ़ा दी हैं।
 
उज्ज्वला योजना की लाभार्थी ज़रीना की कहानी
"क्या बताएं दीदी, पानी पी कर रोज़ा खोलते हैं। घर पर खाने को कुछ है नहीं, लॉकडाउन में आदमी को कोई काम नहीं मिल रहा है। अब गैस लेकर क्या करेंगे।" ये है उज्ज्वला योजना की पहली लाभार्थी ज़रीना की कहानी।
 
ज़रीना उत्तर प्रदेश के मऊ में रहती हैं। उज्ज्वला योजना की शुरुआत उत्तर प्रदेश के बलिया से प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद किया था। ज़रीना को वहीं पर प्रधानमंत्री के हाथों गैस सिलेंडर मिला था। पिछले एक साल में उनका दावा है कि उन्होंने उज्ज्वला स्कीम में 6 सिलिंडर लिए हैं।
 
ज़रीना सालों से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान का इंतजार कर रही थी। उनको आज तक वो मकान नहीं मिला है। हां, शौचालय के लिए 12000 रुपया ज़रूर मिला है। उसमें 3000 रुपये और मिला कर ज़रीना ने घर पर एक शौचालय बना लिया है।
 
ज़रीना के पति पेंटिंग का काम करते थे। जब काम नहीं रहता था तो ठेले पर घर का सामान बेचते थे। लेकिन जब से लॉकडाउन है, 50 दिन से कोई काम नहीं मिला है।
 
ज़रीना के मुताबिक़ उनको सरकार की तरफ़ से मिलने वाला राशन मिला है। लेकिन उसमें भी उनका नंबर आते आते दाल ख़त्म हो गया था। आधा मई बीत चुका है। इस महीने घर पर राशन अब तक नहीं आया है।
 
ज़रीना के मुताबिक़ छह आदमी के परिवार के लिए वो काफ़ी नहीं है। ज़रीना के घर पर चार बच्चे और ख़ुद दोनों पति-पत्नी रहते हैं। ये पूछने पर कि घर कैसे चल रहा है? ज़रीना तपाक से कहती हैं- रोज़ा चल रहा इसलिए घर चल रहा है।
 
ज़रीना को ना तो सरकार की मनरेगा स्कीम के बारे में पता है और ना ही जनधन खाता के बारे में पता है। बस पता है तो प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में। उसी योजना के तहत वे घर और छत मिलने का सपना संजोए बैठी हैं।
 
एक साल में प्रधानमंत्री मोदी ने कितना अच्छा काम किया, इस सवाल के जवाब में ज़रीना कहती हैं, "ये लॉकडाउन कब हटेगा? ये नहीं हटेगा, तो ग़रीब कैसे जीएगा। मज़दूर इंसान मरेगा, भूखमरी होगी और क्या होगा। ये लॉकडाउन हटा नहीं रहे हैं, बस बढ़ाते जा रहे हैं। घर पर बस नमक रोटी है। उसी से गुज़़ारा हो रहा है। पानी पी कर रोज़ा रखते हैं और पानी पी कर ही रोज़ा खोल रहे हैं। बस यही चल रहा है।"
 
पहले जब पति का काम चलता था, तो रोज़ा के लिए सब कुछ घर में ला कर रखते थे। अब काम नहीं है, तो घर में कुछ नहीं है। अच्छी बात इतनी है कि गैस का पैसा टाइम से खाते में आ जाता है। लेकिन इनके घर के कमाने वालों को ना तो स्किल इंडिया का लाभ मिला, ना ही मुद्रा योजना में कोई लोन।
 
केंद्र सरकार का दावा है कि उज्ज्वला योजना में उन्होंने अब तक 8 करोड़ लोगों तक गैस सिलेंडर पहुंचा कर धुएं से मुक्ति दिलाई है।
 
धुएं से मुक्ति पाने वाली गुड्डी देवी भी है। उन्हें उज्ज्वला स्कीम का लाभ मिला है। लेकिन लॉकडाउन में वो भी परेशान है। गुड्डी देवी कैमरे पर अब बात करने को भी राज़ी नहीं।
 
वो कहती हैं, "क्या फ़ायदा है ऐसे इंटरव्यू का। बार बार सवाल पूछते हैं, लेकिन हमारी ज़िंदगी तो वैसे ही है। लॉकडाउन में इनका ईंट का भट्टा भी नहीं चल रहा। छह महीना कमाई होती है तो छह महीना घर बैठना पड़ता है। तीन बच्चे हैं इनको पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है। खेत नहीं है, हम ही जानते हैं कैसे घर चल रहा है।"
 
गुड्डी देवी के पति घर के पास ही ईंट के भट्टे में काम करते हैं। लेकिन लॉकडाउन में उनका काम भी बंद पड़ा है।
 
हालांकि लॉकडाउन में सरकार ने भट्टे के काम को शुरू करने की छूट दी है। गुड्डी देवी का दावा है कि भट्टा मालिक ने अभी तक भट्टा नहीं खोला है। ऐसे में उनके लिए घर का ख़र्च, बच्चों की पढ़ाई दोनों उनके लिए बोझ बन गई है। बीबीसी भट्टा मालिक से संपर्क नहीं कर पाया है।
 
आयुष्मान भारत के पहली लाभार्थी करिश्मा की कहानी
देश ही नहीं पूरी दुनिया में मोदी सरकार ने आयुष्मान योजना का डंका पीटा। केंद्र सरकार का दावा है कि आज देश में एक करोड़ लाभार्थी हो चुके हैं। दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ स्कीम होने का दावा किया। आयुष्मान भारत योजना को शुरू हुए क़रीब दो साल का वक़्त हो गया है।
 
इस योजना के तहत ग़रीब परिवार वालों के हर सदस्य का आयुष्मान कार्ड बनता है, जिसमें अस्पताल में भर्ती होने पर 5 लाख तक का इलाज मुफ़्त होता है। हरियाणा के करनाल ज़िले की रहने वाली करिश्मा अब एक साल दस महीने की हो गई है। अपने पैरों पर चलने लगी है और मुंह से मां पापा भी बोल लेती है।
 
करिश्मा को करनाल में हर कोई पहचानता है। करिश्मा, सरकार की 'आयुष्मान भारत' योजना के तहत पैदा होने वाली पहली बच्ची हैं। हरियाणा में करनाल के कल्पना चावला अस्पताल में करिश्मा 15 अगस्त 2018 को पैदा हुई थी।
 
उस वक्त 'आयुष्मान भारत योजना' का ट्रायल चल रहा था। करिश्मा के माता-पिता ने कल्पना चावला अस्पताल इसलिए चुना था, ताकि बच्चे के जन्म में ख़र्च कम आए। क्योंकि उनका पहला बेटा बड़े ऑपरेशन से पैदा हुआ था और परिवार को कर्ज़ लेने की नौबत आ गई थी।
 
लेकिन जब करिश्मा पैदा हुई, तो उसके माता-पिता को एक रुपए भी ख़र्च नहीं करना पड़ा। माता-पिता को उस वक़्त सरकार से सहूलियत मिली, तो लगा बाक़ी दुख भी दूर हो जाएंगें। लेकिन पिछले एक साल में करिश्मा के माता-पिता को आयुष्मान योजना के आलावा और कोई लाभ नहीं मिला।
 
बस बेटी की डिलिवरी के समय पैसे नहीं लगे। लेकिन परिवार की स्थिति आज भी दयनीय है। करिश्मा के पिता के पास कोई काम नहीं है। वो राइस मिल में काम करते थे, जो अब लॉकडाउन में बंद पड़ा है। लॉकडाउन में बस घर पर बैठकर जैसे तैसे गुज़ारा चल रहा है। करिश्मा अब बड़ी हो गई है।
 
उसकी पढ़ाई और पोषण दोनों की चिंता परिवार को सता रही है। परिवार उधार लेकर अपनी ज़िंदगी चला रहा है। लेकिन ऐसे ही लॉकडाउन बढ़ा तो उनका कहना है कि परिवार के भूखे मरने की स्थिति आ जाएगी।
 
मोदी सरकार की योजनाओं की पोस्टर वुमेन की प्रधानमंत्री से बस इतनी गुज़ारिश है कि रोज़गार के नए अवसर मिले और अन्य योजनाओं के बीच तालमेल और समन्वय बढ़े ताकि अन्य योजनाओं का भी लाभ उन्हें मिले।
 
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