मधुकर उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिन्दी)
महात्मा गांधी छुआछूत के सख्त ख़िलाफ़ थे। वो चाहते थे कि ऐसा समाज बने जिसमें सभी लोगों को बराबरी का दर्जा हासिल हो, क्योंकि सभी को एक ही ईश्वर ने बनाया है। उनमें भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
दक्षिण भारत के दौरे में जब गांधी मायावरम पहुंचे तब उनका एक नए शब्द से सामना हुआ और वो शब्द था 'पंचम'। यह पंचम शब्द संगीत की भाषा में तो बहुत अच्छा माना जा सकता है लेकिन पंचम शब्द का प्रयोग दक्षिण भारत में दलितों के लिए किया जाता था। यह कहा जाता था कि ये लोग हिन्दू धर्म में 4 वर्णों की व्यवस्था से बाहर के लोग हैं। दलित पांचवां वर्ण हैं और इन्हें इन 4 वर्णों में शामिल नहीं किया जा सकता।
मायावरम में पंचमों से मुलाक़ात के बाद महात्मा गांधी को दक्षिण अफ़्रीका के अपने वो दिन याद आए, जब वो दलितों को अपने घर खाने के लिए बुलाते थे और महसूस करते थे कि कोई उनका विरोध नहीं कर रहा है। लेकिन एक तरह का दबा हुआ विरोध ख़ुद कस्तूरबा गांधी की तरफ़ से होता था।
कस्तूरबा को लगता था कि शायद भारत में पहुंचकर यह समस्या और बड़ी और विकराल होगी। दक्षिण अफ़्रीका में घर से ज़्यादा दूरी होने की वजह से शायद लोग एकसाथ आसानी से आ जाते हैं लेकिन भारत में यह काम कठिन होगा। कस्तूरबा गांधी का यह अनुमान ग़लत नहीं था।
गांधी को बाहर वाले कमरे में ठहराया
जब गांधी चंपारण जाने वाले थे और बांकीपुर स्टेशन उतरे, जो पटना का पुराना नाम था। उन्हें कुछ लोग राजेंद्र प्रसाद के घर ले गए। उस समय राजेंद्र प्रसाद घर पर नहीं थे और वहां मौजूद नौकर गांधी को पहचानते नहीं थे। इसलिए उन्हें बाहर वाले कमरे में ठहरा दिया गया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह शख़्स पता नहीं किस जाति या धर्म से होगा? इस व्यवहार से गांधी बहुत ही खिन्न हो गए। बाद में गांधी ने जब अहमदाबाद के पास अपना आश्रम बनाया तब ठक्कर बापा का पत्र लेकर एक आदमी उनके पास आया।
उस पत्र में ठक्कर बापा ने लिखा था, 'आप कहते हैं कि सभी लोग बराबर हैं और अगर आश्रम के नियमों का पालन करेंगे तो उन्हें आश्रम में रहने की जगह दी जाएगी। इसलिए मैं एक आदमी को आपके आश्रम में रहने के लिए भेज रहा हूं। वो एक दलित हैं और आपको उन्हें आश्रम में रखने पर विचार करना है।'
दलित को रखने पर हंगामा
गांधी ठक्कर बापा को मना नहीं कर सकते थे। मना न करने एक वजह यह भी थी कि गांधी के प्रयोग का यह पहला चरण था और गांधी देखना चाहते थे कि उन्हें क्या हासिल होता है? जो व्यक्ति आश्रम में रहने आए, उनका नाम जूंदा भाई था और साथ में उनकी पत्नी दानी बेन और एक छोटी बच्ची थी। इन तीनों को गांधी ने आश्रम में जगह दी तो अहमदाबाद में हंगामा हो गया। जुलूस निकला और नारे लगे।
जो सवर्ण आश्रम को चंदा देते थे उन्होंने चंदा देना बंद कर दिया। आश्रम बंद होने की नौबत आ गई। आसपास के लोगों ने गाली देना शुरू कर दिया और जूंदा भाई का जीना हराम कर दिया। लेकिन गांधी अपने फ़ैसले से टस से मस नहीं हुए। जब गांधी को यह पता चला कि कस्तूरबा जाने-अनजाने आश्रम की अन्य महिलाओं का केंद्र बन गई हैं और जूंदा भाई को आश्रम में रखने का विरोध कर रही हैं तो उन्होंने कहा कि यह नहीं होगा।
कस्तूरबा गांधी से तलाक़ की बात
गांधी कहते हैं कि उन्होंने बहुत ऊंची आवाज़ में कस्तूरबा से कहा कि वो अपना फ़ैसला नहीं बदलेंगे। उन्होंने कस्तूरबा से यहां तक कह दिया कि अगर वो चाहें तो अपना अलग रास्ता अपना सकती हैं। इसे झगड़ा नहीं माना जाएगा लेकिन अब वो दोनों एकसाथ नहीं रह सकते। यह उनका तलाक़ होगा।
यह नाराज़गी ज़ाहिर करने के बाद गांधी ने दो चीज़ें कीं। एक तो उन्होंने ईश्वर से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी कि ग़ुस्सा उनकी एक समस्या है और वो इससे कैसे निपटेंगे नहीं जानते। दूसरा, उन्होंने अपने एक मित्र को पत्र लिखकर पूरी घटना की जानकारी दी और कहा कि यह बात एक अछूत व्यक्ति को आश्रम में रखने की वजह से हुई है और उन्होंने कस्तूरबा से कह दिया है कि अब उनके रास्ते अलग हो चुके हैं। यह बात वो सार्वजनिक करते हैं।
बाद में कुछ नहीं हुआ। जूंदा भाई आश्रम में रहे और उनकी पत्नी भी रहीं। सब कुछ ठीक-ठाक हो गया। जो धन बंद हो गया था वो दूसरे स्रोत से आने लगा था लेकिन गांधी दलितों को मुख्य धारा में लाने के लिए जो कुछ भी कर सकते थे उन्होंने किया। इस हद तक किया कि अगर इससे उनका परिवार प्रभावित हो जाए या उनका वैवाहिक जीवन छिन्न-भिन्न हो जाए तो भी उन्हें फ़र्क नहीं पड़ता था।