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Last Updated : शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020 (14:12 IST)

दिल्ली में AAP की मुफ़्त योजनाओं के अच्छे दिन कब तक?

दिल्ली में AAP की मुफ़्त योजनाओं के अच्छे दिन कब तक? - AAP free schemes in Delhi
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 62 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रच दिया है। लगातार दूसरी बार इतनी बड़ी जीत इससे पहले किसी पार्टी को कभी नहीं मिली। अपनी इस जीत का श्रेय ख़ुद अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार के काम को दिया है। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने नारा भी दिया था - 'मेरा वोट काम को, सीधे केजरीवाल को।'
 
केजरीवाल सरकार की मुफ़्त स्कीम
वैसे तो दिल्ली सरकार कई स्कीमें चलाती है, लेकिन चर्चा उन स्कीमों की ज्यादा रहती है जिनमें लोगों को मुफ़्त में आधारभूत सुविधाएं मिलती हैं। ऐसी चर्चित मुफ़्त स्कीमों में शामिल हैं:
 
• दिल्ली में 400 यूनिट बिजली की खपत पर सिर्फ़ 500 रुपए का बिल आता है। पाँच साल में बिजली के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं
• महिलाओं के लिए बस यात्रा मुफ़्त है
• 20 हज़ार लीटर तक पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल
• मोहल्ला क्लीनिक में मुफ़्त उपचार की व्यवस्था
 
दिल्ली सरकार ने अपने मुफ़्त में हो रहे काम काज को काफ़ी प्रचारित किया। उनकी जीत के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि आख़िर कितने दिनों तक चल पाएगी दिल्ली सरकार की ये मुफ़्त योजना, और दिल्ली के ख़ज़ाने पर इसका कितना असर पड़ेगा?
 
बिजली - दिल्ली सरकार की जारी अपने रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक़ 2018-19 में उन्होंने सब्सिडी पर 1700 करोड़ रुपए ख़र्च किया। दिल्ली में कितने परिवार हैं जिनका बिजली बिल शून्य आता है इसके आंकड़े हर महीने बदलते रहते हैं, लेकिन दिसंबर महीने के आंकड़े के मुताबिक़ तक़रीबन 48 लाख लोगों का बिल शून्य आया था।
 
यात्रा - महिलाओं की मुफ़्त में बस यात्रा कराने की घोषणा दिल्ली सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले ही की थी। राज्य सरकार का दावा है कि इस पर 108 करोड़ रुपए का ख़र्च आया। हालांकि इस योजना का लाभ अब तक कितनी महिलाओं को मिला है इसका कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन डीटीसी के मुताबिक़ महिलाओं द्वारा डीटीसी के इस्तेमाल में 40 फ़ीसदी इज़ाफ़ा हुआ है।
 
पानी - 2019-20 के दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ इस स्कीम पर 468 करोड़ रुपए ख़र्च किए। उनके मुताबिक़ 20 हज़ार लीटर तक के पानी के इस्तेमाल पर जीरो बिल के बाद भी दिल्ली जल बोर्ड का राजस्व में इज़ाफ़ा हुआ है। तक़रीबन 14 लाख लोगों को इस स्कीम का फायदा पहुंचा है।
 
मोहल्ला क्लीनिक - राज्य सरकार ने तक़रीबन 400 मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं। इस साल के बजट में सरकार ने 375 करोड़ रुपए का बजट मोहल्ला क्लीनिक के लिए रखा है।
 
सरकार का ख़ज़ाना खाली नहीं हो रहा?
राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति पर जारी आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, तब से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्चा बढ़ गया है।
 
दिल्ली का राजस्व संतुलन चिंता का विषय बना हुआ है। राजस्व संतुलन का मतलब ये कि ख़र्चे और आय में संतुलन ठीक है या नहीं। आरबीआई के जारी आंकड़ों के मुताबिक़ आज से 10 साल पहले दिल्ली राज्य के जीडीपी का 4.2 फीसदी सरप्लस में था। दस साल बाद 2019-20 में ये घट कर 0.6 फीसदी रह गया है। इसका साफ़ मतलब ये निकाला जा सकता है कि जितना पैसा दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने में जमा हो रहा था, सभी ख़र्चे पूरे करने के बाद वो धीरे-धीरे ख़ाली होता जा रहा है और अब ख़त्म होने की कगार पर है।
 
हालांकि दिल्ली की स्थिति बाक़ी राज्यों के मुताबिक़ बेहतर ज़रूर है। लेकिन जानकार मानते हैं कि अगर ये योजनाएं बिना किसी आय के नए संसाधन जुटाए जारी रहेंगी तो आने वाले दिनों में चिंता का सबब बन सकती हैं।
 
दिल्ली सरकार के लिए एक और चिंता की बात है। हर राज्य सरकार अपने ख़ज़ाने में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े करने के लिए हमेशा साल दर साल कुछ पैसा अलग रखती है, जैसे नए अस्पताल, स्कूल फ्लाइओवर बनाने के लिए बड़ा ख़र्चा लगता है जो एक दिन में तैयार नहीं होते, और ख़र्चा भी एक दिन में नहीं होता। इसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कहते हैं।
 
पिछले कुछ वक्त से राज्य सरकार के इस फंड में काफ़ी कमी आई है। 2011- 12 में राज्य के जीडीपी में कैपिटल एक्सपेंडिचर 1.16 फीसदी था, जो अब घट कर 2018-19 में 0.54 फीसदी रह गया है।
 
दिल्ली सरकार का पक्ष
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से चुनाव से पहले कई इंटरव्यू में ये सवाल पूछा गया - दिल्ली सरकार मुफ्त में बिजली पानी कैसे दे पा रही है? इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आता है? हर जवाब में उन्होंने एक ही बात दोहराई। उनके मुताबिक़ गुजरात के मुख्यमंत्री ने अपने लिए एक हेलिकॉप्टर ख़रीदा 191 करोड़ में। हमने वही पैसा इन योजनाओं पर लगाया है। हमारे ऐसे ख़र्चे नहीं हैं।
 
एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने कहा, "अगर दिल्ली में बिजली-पानी मुफ़्त कर सकते हैं तो हरियाणा वाले भी कर लें। वो क्यों नहीं करते फ्री। इसके लिए इमानदार होना ज़रूरी है। सब पूछते हैं, इसके लिए लगने वाला पैसा कहां से आया? पैसा इसलिए आया क्योंकि सरकारी कामों में होने वाला भ्रष्टाचार हमने ख़त्म कर दिया। मैं पैसा नहीं खाता, मेरे मंत्री नहीं खाते। इसलिए पैसा बच रहा है।"
 
चैनल के इंटरव्यू में उनसे ये सवाल भी पूछा गया कि ये फ्री कल्चर कब तक चलेगा? जवाब में अरविंद ने कहा, "अगर मैंने इमानदारी का पैसा बचा कर, भ्रष्टाचार ख़त्म करके, लोगों का बिजली पानी माफ़ कर दिया। उनकी ज़िंदगी में थोड़ी राहत दे दी तो मेरा क्या क़सूर है।"
 
दिल्ली सरकार की फ्री-योजनाओं से सबक़ लेकर दूसरी राज्य सरकारें अब इस पर अमल करने लगी हैं। पश्चिम बंगाल सरकार में ममता बैनर्जी ने इस साल बजट में 75 यूनिट बिजली खपत वाले परिवारों को सब्सिडी देने का एलान किया है।
 
दिल्ली सरकार की तरह ही अब सब सरकारें यही तर्क दे रही हैं - सब्सिडी वाला पैसा जनता का है और इस क़दम से उन्हीं को वापस किया जा रहा है।
 
दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने पर सीएजी रिपोर्ट
पिछले साल दिसंबर में दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने का हाल बताने वाली सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक़ भी दिल्ली सरकार के ख़ज़ाने में सरप्लस की बात है। लेकिन यहां ये भी जानना ज़रूरी है 2013-14 से अब तक दिल्ली सरकार हमेशा से सरप्लस में ही रही है।
 
दिल्ली के पूर्व चीफ़ सेक्रेटरी ओमेश सेहगल के मुताबिक़ किसी सरकार का बजट सरप्लस में होना उसके अच्छे प्रदर्शन की निशानी नहीं हो सकती। उनके मुताबिक़, "सरप्लस में बजट होने का मतलब है कि कल्याणकारी योजनाओं में सरकार ने ख़र्च ही नहीं किया है।"
 
कल्याणकारी योजनाओं की परिभाषा बताते हुए ओमेश सेहगल कहते हैं, "ऐसी योजनाएं, जिनसे लोगों को लाभ तो मिले ही उससे सरकार को भी फ़ायदा पहुंचे।"
 
अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए ओमेश कहते हैं, "अगर सरकार ने नए अस्पताल बनाए होते, तो उसमें इलाज के लिए आने वालों से सरकार को फायदा पहुंचता और लोगों को भी। लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं कर रही।"
 
सरकार नए स्कूल बनाती तो नए टीचर भर्ती होते, दूसरे और कर्मचारियों को रोज़गार मिलता। लेकिन ये सरकार केवल क्लासरूम ही बना रही है। इसे कल्याणकारी योजनाएं नहीं कहते।
 
दिल्ली सरकार के आय के स्रोत
दिल्ली सरकार की आमदनी के दो सबसे अहम स्रोत हैं - जीएसटी और दूसरा एक्साइज़ से होने वाली आमदनी। इसके आलावा हर राज्य सरकार को कुछ केन्द्रीय अनुदान भी मिलता है और कुछ कमाई जमा पैसे के लाभांश से भी होती है।
 
दिल्ली सरकार अभी मुफ्त में जो योजनाएं चला रही हैं उससे सरकार को भी रिटर्न मिलता नज़र नहीं आ रहा। वो पैसा सरकार के ख़र्चे में जुटता ही जा रहा है।
 
कब तक जारी रख सकते हैं मुफ़्त की योजनाएं?
 
ओमेश सेहगल का मानना है कि दिल्ली सरकार जिसे अपना काम और रिपोर्ट कार्ड बता रही है, दरअसल वो सरकार का काम है ही नहीं। सरकार का काम सड़क, स्कूल, फ्लाईओवर बनाना है। कल्याणकारी योजनाओं में ख़र्च करना है।
 
अगर सरकार मुफ्त में बिजली-पानी देना जारी रखेगी, तो उन्हें कल्याणकारी योजनाओं में कटौती करनी पड़ेगी।
 
पिछले पाँच सालों में नए फ्लाइओवर, नए स्कूल और अस्पताल कितने बने हैं, ये आंकड़े इस सरकार ने कभी नहीं दिए।
 
उनके मुताबिक़ जनता को नए फ्लाइओवर, नए स्कूल और नए अस्पताल दिए बिना मुफ्त में बिजली पानी और बस सेवा का ख़र्च दिल्ली की सरकार जारी तो रख सकती है, लेकिन ऐसा दिल्ली के लिहाज़ से ख़तरनाक होगा।
 
उनके अनुसार दिल्ली में लगातार बढ़ती आबादी को देखते हुए दिल्ली को इन चीज़ों की ज्यादा ज़रूरत है।
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