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Written By BBC Hindi
Last Updated : शुक्रवार, 13 मार्च 2020 (08:32 IST)

कोरोना वायरस: 123 साल पुराने क़ानून से हारेगा ये घातक वायरस?

कोरोना वायरस: 123 साल पुराने क़ानून से हारेगा ये घातक वायरस? - 123 years old law implimented to fight against Corona
इमरान क़ुरैशी, बंगलुरु से, बीबीसी हिंदी के लिए
कोरोना वायरस कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए कर्नाटक ने एक अधिसूचना जारी कर 123 साल पुराने एक क़ानून के प्रावधानों को लागू किया है।
 
इसके बाद अब ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि इस वायरस के संक्रमिक व्यक्ति अस्पताल से भागें नहीं और क्वारंटाइन के सभी नियमों का पालन करें।
 
महामारी रोग क़ानून 1897 नाम के इस क़ानून का इस्तेमाल विभिन्न स्तर पर अधिकारियों द्वारा शिक्षण संस्थाओं को बंद करने, किसी इलाक़े में आवाजाही रोकने और मरीज़ के उसके घर या अस्पताल में क्वारंटाइन करने के लिए किया जाता है।
 
हाल में मेंगलुरु हवाई अड्डे पर जब कोरोना वायरस संक्रमण के लिए जाँच हो रही थी उस वक़्त दुबई से आ रहे एक यात्री को मामूली बुख़ार था।
 
इस यात्री को तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाया गया ताकि आगे की विस्तृत जाँच के लिए उनके नमूने लिए जा सकें, लेकिन ये यात्री अस्पताल से भाग गए।
 
बाद में सुरक्षाबलों के एक दस्ते ने इन्हें देर रात खोज निकाला। ये अपने घर पर थे। इन्हें अस्पताल ले जाया गया और जाँच में इनमें कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई जिसके बाद उन्हें घर पर ही क्वारंटाइन किया गया। अब प्रदेश सरकार ने इस तरह के मामलों को रोकने के लिए एक आदेश जारी किया है।
 
इस आदेश में कहा गया है, "यदि कोई संदिग्ध व्यक्ति अस्पताल जाने से इनकार करते हैं या सभी से अलग रहने से इनकार करते हैं तो महामारी रोग क़ानून की धारा तीन के तहत अधिकारी व्यक्ति को जबरन अस्पताल में भर्ती करा सकते हैं, उन्हें 14 दिनों के लिए या फिर उनकी जाँच रिपोर्ट नॉर्मल आने तक दूसरों से अलग रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं।"
 
कर्नाटक में किसी व्यक्ति को कोरोना वायरस संक्रमण का संदिग्ध पाए जाने पर उन्हें कम से कम 14 दिनों के लिए घर पर ही क्वारंटाइन करने का आदेश है। आम तौर पर कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति में इसके लक्षण 10 दिन से 14 दिनों के भीतर दिखते हैं।
 
हाल में अमरीका के न्यूयॉर्क से एक व्यक्ति दुबई होते हुए बेंगलुरु आए थे। बेंगलुरु आने के पाँच दिन बाद तक व्यक्ति में कोरोना वायरस के लक्षण संक्रमण के नहीं दिखे थे।
 
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया, "भविष्य में मेंगलुरु जैसी घटनाएं न हों इसीलिए हमने यह अधिसूचना जारी की है।"
 
महामारी रोग क़ानून के तहत जारी अधिसूचना के अनुसार, इस क़ानून का उल्लंघन करने वाले पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मुक़दमा चलाया जा सकता है।
 
भारतीय दंड संहिता की धारा 188 कहती है कि जो कोई जान बूझकर इंसान के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा को क्षति पहुंचाता है, उसे अधिकतम छह महीने की जेल की सज़ा या/और 1,000 रूपये तक का जुर्माना देन पड़ सकता है।
 
हालांकि भारत में सबसे छोटे और सख़्त क़ानूनों में से एक इस क़ानून के उल्लंघन के मामले में मेंगलुरू में अस्पताल से भागे व्यक्ति के ख़िलाफ़ अब तक कोई क़दम नहीं उठाया गया है।
 
केरल में भी इसी तरह का क़ानून लागू किया गया है। लेकिन वहां भी इटली से लौट कर कोच्चि हवाईअड्डे पर जाँच से बच कर भागे तीन सदस्यों के एक परिवार के किसी सदस्य के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठाया गया है। फ़िलहाल इन तीनों लोगों के बूढ़े माता-पिता कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहे हैं।
 
परिवार के सभी पाँच सदस्यों को जाँच में कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है जिसके बाद केरल में सभी शैक्षणिक संस्थान और सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है।
 
कोरोना वायरस अब तक दुनिया के 114 देशों में फैल चुका है और इसके सबसे अधिक मामले केवल चीन में पाए गए हैं।
 
कर्नाटक में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि बीते 14 दिनों में कोरोना वायरस के प्रभावित देश का दौरा कर लौटे सभी लोग अपने नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र में जा कर अपनी पूरी जाँच कराएं।
 
अधिसूचना में कहा गया है कि "अगर खांसी बुख़ार जैसे लक्षण न भी हों तो भी व्यक्ति घर पर ख़ुद को दूसरों से अलग कर लें और 14 दिनों के लिए अपने मुंह को मास्क से ढंक कर रखें।"
 
प्रदेश के सभी सार्वजनिक और निजी में अस्पतालों कोरोना वायरस कोविड-19 के संदिग्ध मामलों की जाँच के लिए व्यवस्था की गई है।
 
साथ ही अस्पतालों से कहा गया है कि वो व्यक्ति की यात्राओं का पूरा ब्यौरा अवश्य लें और कोरोना वायरस प्रभावित देश के दौरे से लौटने की सूरत में सरकारी अधिकारियों को तुरंत इसकी जानकारी दें।
 
123 साल पुराने क़ानून से हारेगा कोरोना वायरस?
केरल में नीपा और कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए काम कर चुके स्वास्थ्य सलाहकार डॉ राकेश पी एस कहते हैं, "काम करने के लिए ये क़ानून काफ़ी है लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं।"
 
साल 2016 में जर्नल ऑफ़ मेडिकल एथिक्स में डॉ राके का एक शोधपत्र छपा है जिसमें वो कहते हैं, "जब महामारी रोग क़ानून बना था उस वक़्त लोग अधिकतर समुद्री रास्तों से यात्रा करते थे और ऐसे में अधिकारियों के लिए ये सुनिश्चित करना आसान था कि कोई जहाज़ उनके बंदरगाह पर न रुके। लेकिन अब हम ऐसे वक़्त में हैं जब लोग हवाई यात्रा करते हैं और इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए कोई ख़ास मानदंड हमारे पास मौजूद नहीं है।"
 
वो कहते हैं, "भारत में किसी तरह की महामारी रोकने के लिए एकीकृत, व्यापक और प्रासंगिक क़ानूनी प्रावधा की ज़रूरत है जिसमें लोगों के अधिकारों का ध्यान रखा जाए और सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर व्यवस्था हो।"
 
केंद्र ने नेशनल हेल्थ बिल यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य विधेयक 2009 का मसौदा तैयार तो किया था लेकिन इसका अंजाम क्या हुआ ये किसी को नहीं पता।
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