चंद्रमा एक ग्रह है या देवता? यह सवाल पूछा जाना चाहिए। निश्चत ही चंद्रमा धरती का एक ठोस उपग्रह ग्रह है। ग्रहों का धरती पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहता है, लेकिन अब सवाल उठता है कि जब यह देवता नहीं है तो इसे पूजने से कैसे यह हम पर दुष्प्रभाव नहीं डालेगा? ग्रह तो ग्रह होता है। अब सवाल यह उठता है कि जब यह ग्रह है, देवता नहीं तो फिर किसी चंद्र नामक देवता को पूजने से कैसे इस ग्रह के दोष दूर हो जाएंगे या कि चंद्र नामक कोई देवता है भी की नहीं? आओ जानते हैं इन सवालों के जवाब।
चंद्र ग्रह : दरअसल चंद्र नाम से देवता भी है और ग्रह भी। दोनों का अलग-अलग महत्व है। जब चंद्र ग्रह का प्रभाव धरती पर पड़ता है तब समुद्र में ज्वार भाटा उत्पन्न होता है। लोगों के मन में बेचैनी बढ़ जाती है जिसके कारण हत्या, आत्महत्या तथा दुर्घटना के प्रकरण भी बढ़ जाते हैं। मूलत: चंद्र ग्रह धरती के जल तत्व पर असर डालता है। चंद्र की घटती कलाएं जहां धरती को शांत करती है वहीं उसकी बढ़ती कलाएं धरती पर अशांति को बढ़ाती है।
असल में चंद्रमा धरती का उपग्रह माना गया है। पृथ्वी के मुकाबले यह एक चौथाई अंश के बराबर है। पृथ्वी से इसकी दूरी 406860 किलोमीटर मानी गई है। चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन में पूर्ण कर लेता है। इतने ही समय में यह अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। 15 दिन तक इसकी कलाएं क्षिण होती है तो 15 दिन यह बढ़ता रहता है। चंद्रमा सूर्य से प्रकाश लेकर धरती को प्रकाशित करता है।
चंद्र देव : पुराणों अनुसार चंद्र नामक एक राजा थे जिन्होंने चंद्रवंश की स्थापना की थी। देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था। इस तरह हमने जाना की चंद्र नामक एक राजा थे और चंद्र नामक एक रत्न भी, जिसे पुराणों ने ग्रह का दर्जा दिया।
चंद्रदेव या राजा चंद्र की कहानी को पुराणों ने चंद्र ग्रह से जोड़कर वर्णित किया। चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवतओं में से एक हैं उन्हें जल तत्त्व का देव कहा जाता है। यह देवता हमारे मन को शांत करने वाले माने जाते हैं। चंद्रमा के अधिदेवता अप् और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं।
श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है।
प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। ये कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि। चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। चंद्र ग्रह ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी और वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करते हैं। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है।
हमारे वैज्ञानिकों ने ग्रहों के नामकरण का सोचा तो उन्होंने धरती पर जन्में महान व्यक्ति राजा चंद्रदेव के नाम पर ही धरती के उपग्रह का नाम चंद्र रखा होगा। आगे चलकर राजा चंद्र और देवता चंद्रदेव की कहानी चंद्र ग्रह की उत्पत्ति के साथ मिलकर गड्डमगड्ड हो गई। अब इस पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
दरअसल ब्राह्मांड की उत्पत्ति किस तरह हुई तथा कौन-सा ग्रह, नक्षत्र या तारा कब जन्मा और उसके जन्म की कहानी क्या है तथा उसका किस तारे या ग्रह से संबंध है यह सब बताने के लिए पुराणों ने उक्त घटनाओं को मिथकीय रूप दिया। लेकिन आज विज्ञान के युग में यह समझ पाना कठिन ही है कि चंद्र नामक कोई देव कैसे ग्रह हो सकता है? जबकि प्रत्यक्ष ज्ञान कहता हैं कि यह एक ठोस ग्रह है जिस पर मानव ने अपने कदम रख दिए हैं और किसी भी दिन इस पर बस्ती बसाई जा सकेगी।