सिंहस्थ बृहस्पति
प्रगति, पुण्य व उत्साह का संचार करेंगे सिंहस्थ बृहस्पति
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ज्योतिर्विद् डॉ. रामकृष्ण डी. तिवारी
गुरु व सिंह राशि दोनों पुरुष संज्ञा के हैं, इस कारण इस काल में व्यावहारिक, सैद्धांतिक, निश्चयात्मक, बुद्धि-तर्कयुक्त कार्यों की अधिकता रहेगी। भावनात्मक क्षेत्र में हानि के फल दृश्यमान होंगे।ग्रहों की गति से ही जग की अवस्था, स्थिति एवं काल में परिवर्तन होता है। यह कथन ज्योतिष शास्त्र का मूलाधार है। ग्रहों की चाल से ही दिन-रात तथा ऋतु परिवर्तन हमें प्रत्यक्ष भासमान होते हैं। अन्य अंतरों के लिए अध्ययन, अनुभव व इस शास्त्र को समझने की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। ग्रहों की गति में भिन्नता रहती है। किसी ग्रह द्वारा संपूर्ण राशि चक्र के लगभग पाँच चक्र पूर्ण करने के उपरांत मिलने वाले एक राशि के काल का औसत निकालकर उसके एक राशि में भ्रमण का काल लिखा जाता है। अर्थात किसी ग्रह की किसी राशि में स्थिति का जो नैसर्गिक मान दिया जाता है, वह औसत मान है। किस राशि में किस माह अथवा वर्ष में कोई ग्रह कितने समय रहेगा, यह उस समय की ग्रह की गति व अवस्था से जाना जाता है। ग्रह मंडल में गुरु का आकार विशालतम है। इनका रंग पीला है। ये शुभ ग्रहों की पंक्ति में आते हैं। रवि, चंद्र, मंगल से मित्रता, बुध, शुक्र से शत्रुता एवं शनि, राहु, केतु से इनके सम संबंध हैं। सिंह राशि इनके मित्र व ग्रहमंडलाधिपति मरीचिमाली की है। इस अवस्था व राशि के अनुसार वे अनेक प्रकार के योग निर्मित करेंगे। इस संचरण में ही दो स्थानों पर अमृत वर्ष का सुयोग सिंहस्थ पर्व के रूप में आता है। इसी राशि में इनका सूर्य से राशिगत संबंध बनता है। सूर्य के गुरु की राशि में होने एवं गुरु के सूर्य की राशि में होने से हमेशा मुहूर्तादि विशेष योग बनते हैं। जब सूर्यदेव गुरु के आधिपत्य वाली राशियों में प्रतिवर्ष दो बार आते हैं, तो उन मासों में मलमास (धनुर्मास-मीन मास) का सृजन होता है। किसी ग्रह द्वारा संपूर्ण राशि चक्र के लगभग पाँच चक्र पूर्ण करने के उपरांत मिलने वाले एक राशि के काल का औसत निकालकर उसके एक राशि में भ्रमण का काल लिखा जाता है।
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इन मासों का उपयोग जीवन के परम आध्यात्मिक लक्ष्य मोक्ष के कार्य के लिए होता है। गुरु व सिंह राशि दोनों पुरुष संज्ञा के हैं, इस कारण इस काल में व्यावहारिक, सैद्धांतिक, निश्चयात्मक, बुद्धि-तर्कयुक्त कार्यों की अधिकता रहेगी। भावनात्मक क्षेत्र में हानि के फल दृश्यमान होंगे। ग्रह विशाल परिमाण वाले व राशि स्थिर है। इसलिए वृहद व दीर्घकालीन योजना के निर्माण व क्रियान्वयन के प्रबल आसार हैं। राशि अग्नि तत्व व ग्रह आकाश तत्व से संबंधित होने से ऊर्जा के क्षेत्र में कल्पनातीत वृद्धि होगी। सिंह राशि व गुरु दोनों की ही दिन में बलवान अवस्था होने से स्पष्टता रखने वाले व्यक्तियों को अधिक सफलता मिलेगी। पीत व धूम्र वर्ण सिंह राशि के एवं पीत वर्ण गुरुदेव का होने से शिक्षा, चिकित्सा, धर्म, पराक्रम, समृद्धि के क्षेत्र में उन्नतिदायक स्थिति का निर्माण होगा। पीत वर्ण की धातुओं व पदार्थों में भी अनुकूल अवसर आएँगे। राशि की प्रवृत्ति पित्तकारक व ग्रह की कफ-वातकारक होने के कारण सन्निपातज रोगों की अधिकता रहेगी। इस गुरु के सिंहस्थ में विराजमान होने के कारण अम्लता, पीलिया व मधुमेह के रोगियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के योग हैं। सिंह राशि उष्ण स्वभाव तथा गुरु सौम्य स्वभाव के होने के कारण व्यक्तियों में सकारात्मक विचार से प्रयास करने की मनोभावना का जन्म होगा।
सिंहस्थ गुरु में ग्रह राशि योग में अनुकूलताजनक परिणाम की आशा करना उचित है। किंतु इस योग में प्रतिस्पर्धा से बचना असंभव है। इस राशि में वर्गोत्तम स्थिति अर्थात सिंह नवमांश हो तो समस्त मांगलिक कार्यों के मुहूर्त नहीं हैं। इस काल को छोड़कर शेष काल में उपनयन, विवाहादि मांगलिक कार्य के मुहूर्त अन्य वर्षों की तिथि, नक्षत्र, मास, ग्रहयोग आदि के अनुसार ही रहेंगे। गुरु के मित्र राशि में संचरण से सभी राशियों को कुछ न कुछ शुभ फल अवश्य मिलेंगे। जन्मभूमि से मोहभंग, भय व व्यय की अधिकता, स्वयं के कारण दूसरों को कष्ट।
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इसका विशेष फल पध्य द्रेष्काण अर्थात 10 अंश से 20 अंश के मध्य मिलेगा। इसके पश्चात वक्रीय होकर इस द्रेष्काण में आएगा, तब इसका फल सामान्य ही रहेगा। जिनकी जन्म पत्रिका में गुरु की स्थिति शुभ या बलशाली है, उनके लिए शुभफल में अधिक वृद्धि तथा अशुभफल में कमी होगी। इसके विरुद्ध जिन जातकों की जन्म पत्रिका में गुरु की स्थिति अशुभ या बलहीन है, उनके शुभफल में कमी व प्रतिकूल फल में अधिकता रहेगी।गुरु के सिंह राशि में संचरण का द्वादश राशियों पर प्रभाव इस प्रकार होता है : मेष : सुखों में वृद्धि, संतान की अनुकूलता, श्रेष्ठजनों से संपर्क, कल्याणकारी कार्य, पूँजी में कमी संभव।वृषभ : शत्रुओं की वृद्धि, स्वजनों से हानि, कष्ट या विवाद, मानसिक अशांति, संपत्ति के क्षेत्र में लाभकारी कार्य होंगे।मिथुन : मित्रों से वियोग, व्यवसाय में बाधा, पीड़ा, अस्थिरता की स्थिति का निर्माण, मांगलिक कार्य के योग का निर्माण।कर्क : धन लाभ, कुटुम्ब सुख की वृद्धि, शत्रुओं पर विजय, प्रवास से लाभ, वाणी के प्रभाव में वृद्धि।सिंह : जन्मभूमि से मोहभंग, भय व व्यय की अधिकता, स्वयं के कारण दूसरों को कष्ट।कन्या : संपत्ति संबंधी विवाद, मानसिक असंतोष, पीड़ा, धन का निवेश शुभ कार्यों पर, संकोच व भय से हानि।तुला : संतान के क्षेत्र में अनुकूलता, आर्थिक स्थिति में सुदृढ़ता, वाहन सुख प्राप्ति, बुद्धि से सम्मान की प्राप्ति।वृश्चिक : सम्मानकारी स्थिति का निर्माण, शारीरिक कष्ट या शिथिलता, राजकीय समस्या का सामना, संपत्ति में लाभ के योग।धनु : सुखों में वृद्धि, भाग्योदय, प्रभाव में बढ़ोतरी, प्रवास के कार्य में सफलता, संपर्क से लाभ होगा।मकर : रोग की अधिकता, यात्रा से नुकसान, संतान की प्रगति, आर्थिक हानि के योग, भाग्य पर आश्रित कार्य में प्रतिकूलता।कुंभ : ऐश्वर्य में वृद्धि, संतान व जीवन साथी से अनुकूलता, साझेदारी के कार्य में लाभ, क्रोध की वृद्धि संभव है।मीन : शत्रुओं के कारण कष्ट, व्यापारिक समस्या का समाधान, विवाद से हानि, यात्रा में कष्ट, मानसिक अशांति संभव।