संकष्टी गणेश चतुर्थी : किस चतुर्थी पर क्या करें
पढ़ें 12 चतुर्थी के पूजन विधान
गणेशजी आदिकाल से पूजित रहे हैं। वेदों में, पुराणों में (शिवपुराण, स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि) में गणेशजी के संबंध में अनेक लीला कथाएं तथा पूजा-पद्धतियां मिलती हैं। उनके नाम से गणेश पुराण भी सर्वसुलभ है। प्राचीनकाल में अलग-अलग देवता को मानने वाले संप्रदाय अलग-अलग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता ब्रह्मस्वरूप हैं तथा जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाए। देवता कोई भी हो, पूजा कोई भी हो, गणेश पूजन के बगैर सब निरर्थक है। देखें-'
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते।। तथा'
महिमा जासु जान गनराऊ।प्रथम पूजित नाम प्रभाऊ।।गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए कई पूजा-व्रत करने का निर्देश दिया गया है जिन्हें कर गणेशजी को प्रसन्न किया जा सकता है। पढ़ें अगले पेज पर -
1.
मुद्गल पुराण में 'वक्रतुण्डाय हुं' जप का निर्देश दिया गया है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को व्रत कर गणेश पूजन का गणेशजी द्वारा स्वयं निर्देश दिया गया है। 2.