शिक्षाप्रद बाल कहानी : पौधों का करिश्मा
क्राफ्ट विषय में उसने बागवानी लिया था। सबसे अच्छा उसे यही लगा था। बाकी दर्जीगिरी और कताई-बुनाई भी ऐच्छिक विषयों में थे, परंतु दर्जीगिरी के विषय में तो सोचकर ही वह सिहर उठता था।
पहले कपड़े का नाप लो, फिर जो आइटम बनाना है उसके हिसाब से कपड़े की कटाई करो, फिर सिलाई। थोड़ा भी इधर-उधर हुआ कि कपड़े का सत्यनाश हुआ। फिर कौन मशीन में धागा डालता फिरे, पागलों का काम, उससे तो कताई-बुनाई अच्छी है। पोनी ले लो तकली में फंसा दो और घुमा दो। इधर तकली ने फेरे लिए उधर कच्चा सूत तैयार। किंतु इसमें भी परेशानी, तकली के ऊपरी पांइट पर पोनी फंसना बहुत कठिन काम है। अनाड़ी रहे तो सूत बार-बार टूटे। खैर अब तो गांधीजी भी नहीं है काहे का सूत काहे की खादी।
रामप्रसाद को बागवानी सबसे अच्छी लगी थी। क्यारी में पौधे ही तो लगाना है। गड्ढा़ खोदा और पौधा रोप दिया और फुरसत। थोड़ा-बहुत पानी-वानी डाल दिया। फिर कौन देखता पौधा सूखा कि बचा। रामप्रसाद को पेड़-पौधों से कभी लगाव नहीं रहा। घर के आंगन में लगे पेड़ उसे बैरियों के समान लगते थे। इच्छा होती कि कुल्हाड़ी उठाकर दे दनादन, सब काट डाले। परंतु मां के कारण यह संभव ही नहीं था। जब इस संबंध में बात करता, मां की त्योरियां चढ़ जातीं। '
ये तेरे बाप-दादों ने लगाए हैं, तू इन्हें कैसे काट सकता है, बुजुर्गों का सम्मान तो करना सीख।' रोज सुबह से ही आंगन में सूखे पत्तों के ढेर देखकर वह बिलबिला उठता पर मां............... पेड़ों के कारण घर में अंधेरा भी तो होता है, वह मां कोमनाने कि कोशिश करता परंतु वही ढाक के तीन पात। बाप-दादा मां के लिए किसी ईश्वर से कम नहीं हैं।