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Written By WD

पंख

- महाराज कृष्ण संतोषी

Hindi Kavita | पंख
FILE

दुख रखता हूं कलेजे में
इंतजार सुख का करता हूं

इतना जीवन है मेरे आसपास
कि मैं कभी निराश नहीं होता

सफल लोगों के बीच
अपनी असफलता
नहीं मापा फिरता

कड़कती धूप में
वे मुझे देखते हैं
पैदल चलते हुए
और हंसते हैं मेरी दरिद्रता पर

मैं भी हंसता हूं उन पर
यह सोचते हुए
कार नहीं मेरे पास
तो क्या

कवि हूं मैं
पंख हैं मेरे पास
जो उन्हें दिखाई नहीं देते।