शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By स्मृति आदित्य

ख्वाब, कोरे कागज जैसे

काव्य-संसार

Poem | ख्वाब, कोरे कागज जैसे
ND
जब काटा होगा तुमने मेरा फोन
तब कटा होगा ना
तुम्हारे भी भीतर बहुत कुछ,

जब देर तक नहीं आया होगा
मेरा कोई मैसेज
तब देखा होगा ना
तुमने मोबाइल उठाकर,

जब रात भर मैंने
नहीं दिया कोई मिस कॉल
तब मचला होगा ना
तुम्हारी अँगुलियों पर
कोई 'एफ' से शुरू होता नाम,

जब तीन दिनों तक
रही मैं खामोश
तब चमकी होगी ना मेरी तस्वीर
सेलफोन की स्क्रीन पर,

यह सब वह कोरी कल्पनाएँ हैं
जो तुमसे लड़ने के बाद
तन्हा रातों में उलझती हमुझसे,

जबकि हो सकता है कि
तुम खो जाते होंगे काम में
और फिर
सो जाते होंगे रात में,

अब जब खत्म होगी
लंबे अंतराल के बाद
हमारी लड़ाई,
तब इन कल्पनाओं को
दूज के चाँद-से पतले
चमकीले तार में लपेट
भेंट करूँगी तुम्हें,

फिर देखूँगी
झूठ बोलते हुए
गहराते
तुम्हारी आँखों के लाल डोरे,
ह भी ख्वाब हैं, जैसे कागज कोरे,
अभी तो टूटे हैं सारे सपन सलोने... !