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Written By ND

तुगलक : विद्वान-मूर्ख सुल्तान

तुगलक : विद्वान-मूर्ख सुल्तान -
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मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का ऐसा सुल्तान हुआ है जिसने योजनाएँ तो कई बनाईं पर उसकी योजनाएँ असफल रहीं। उसकी योजनाओं से चिढ़कर ही उसे मूर्ख कहा जाता है। वहीं कुछ का मानना है कि उसकी योजनाएँ बहुत अच्छी थी और इसलिए तुगलक विद्वान था।

इतिहास में यह अकेला सुल्तान है जिसे एक ही समय पर 'विद्वान-मूर्ख' कहकर बुलाते हैं। कुछ भी हो सुल्तान था बड़ा दिलचस्प। उसकी कई बातों में कुछ के बारे में जानकर तुम्हें भी हँसी आ जाएगी। इसी सुल्तान के जीवन पर गिरीश कर्नाड नाम के उपन्यासकार ने 'तुगलक' नाटक भी लिखा। तुगलक का चरित्र था ही ऐसा कि उसमें दिलचस्पी पैदा हो जाती है।

शहजादा जूना खाँ ही मुहम्मद तुगलक था। मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली पर 1325 से 1351 तक शासन किया। दिल्ली के तख्त पर बैठने वाला वह ऐसा सुल्तान था जो बहुत पढ़ा-लिखा था। वह कई भाषाओं का जानकार था। उसे गणित, दर्शन, साहित्य और चिकित्साशास्त्र का ज्ञान था। उसकी लिखावट भी बहुत सुंदर थी। सुल्तान में अक्सर ये गुण देखने को नहीं मिलते हैं पर तुगलक इन बातों में उस्ताद था। उसकी कुछ योजनाओं के बारे में आओ जानते हैं।

दोआब में कर वृद्धि की योजना
मुहम्मद ने दोआब इलाके में कर में वृद्धि इसलिए की क्यों‍कि राजकोष में धन की जरूरत थी। वह जानता था कि दोआब क्षेत्र के किसानों की स्थिति अच्छी है पर जब कर में वृद्धि की उसी साल इलाके में अकाल पड़ गया और कर-वसूली में सख्‍ती से जनता की हालत खराब हो गई। तब तुगलक को मालूम हुआ तो उसने कर वृद्धि रोक दी और जनता को राहत भेजी पर तब तक जनता को बहुत कोड़े पड़ चुके थे।

राजधानी बदलने की योजन
मुहम्मद तुगलक की राजधानी परिवर्तन कमी योजना का जिक्र बहुत होता है। यह कुछ ऐसे थी कि मुहम्मद तुगलक ने दक्षिण के राज्यों पर नियंत्रण रखने के लिए राजधानी को दिल्ली से बदलकर देवगिरी नाम की जगह पर ले जाने का फरमान दिया।

  तुगलक ने योजनाएँ तो बहुत अच्छी बनाई बस समय तुगलक के साथ नहीं था। उसके सारे आदेश वाली बात मोहम्मद तुगलक से ही निकलकर आई है।      
अब दिल्ली की जनता को आदेश दिया गया कि वह दौलताबाद जाए। लोग रास्ते की तकलीफें उठाकर दौलताबाद के लिए निकले। यात्रा में बहुत से लोग बीमार पड़ गए और मारे गए। यात्रा की कठिनाई देखकर तुगलक ने लोगों को वापस दिल्ली लौटने का आदेश दे दिया। लोग लौटे तो, पर उनमें से कई रास्ते में दम तोड़ गए। इस योजना से जनता में सुल्तान की छवि खराब हुई।

सांकेतिक मुद्रा का चलाने की योजन
मुहम्मद तुगलक ने अपने समय में सोने की 'दीनार' और चाँदी की 'अदली' चलाई थी। फिर सोने-चाँदी की कमी हो गई। तुगलक को मालूम था कि चीन में कागज और फारस में चमड़े का सिक्का चला है तो उसने राज्य में ताँबे का सस्ता सिक्का चलाया था। चाँबे के सिक्के बनाने के लिए राजकीय टकसाल नहीं थी। ताँबे के सिक्के की खबर आई तो लोगों ने घर पर ही सिक्के ढाल दिए और बाजार में इतने सिक्के हो गए कि ताँबे का सिक्का बंद करना पड़ा। जनता को ताँबे के सिक्के की जगह सोने के सिक्के दिए गए और खजाना खाली हो गया।

सिरफिरा सुल्ता
इतिहासकार इन योजनाओं के कारण ही उसे सिरफिरा कहते हैं। इन योजनाओं के अलावा भी मुहम्मद तुगलक में कई खासियत थी। काम को टालना उसे पसंद नहीं था। वह तुरंत किसी भी काम को पूरा करने में विश्वास रखता था। उसके समय में इब्नबतूता भारत आया था जिसने उसके समय का वर्णन किया है। तुगलक ने योजनाएँ तो बहुत अच्छी बनाई बस समय तुगलक के साथ नहीं था। उसके सारे आदेश वाली बात मोहम्मद तुगलक से ही निकलकर आई है।