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Written By WD

व्यावसायिकता का विकृत खेल

व्यावसायिकता का विकृत खेल -
-नरेश किशनान
भारत देश धार्मिक आस्थाओं का केन्द्र है। यहाँ की उपासना पद्वति से संपूर्ण विश्व प्रभावित है। भारतीय जीवन शैली में रामायण एवं महाभारत की आदर्श व्यवस्था एवं संस्कृति का समावेश स्पष्ट परिलक्षित होता है, जिसके कारण सहिष्णुता, दया, करुणा और मानवीय संवेदनाओं का स्पन्दन प्रत्येक हृदय में निर्मल गंगा के समान प्रवाहित होता है, जो संपूर्ण विश्व में विश्व बन्धुत्व की धारणा को पुष्ट एवं सुदृढ़ करता है।

वर्तमान में 'एनडीटीवी इमेजिन' पर रामायण सीरियल का प्रसारण चल रहा है। रामायण इस देश के जनमानस के रोम-रोम में व्याप्त है। इस महाकाव्य को छोटे पर्दे पर देखने मात्र से भारतीय जनमानस स्पन्दित हो उठता है।

इस धार्मिक सीरियल की टीआरपी बढ़ाने के लिए चैनल द्वारा विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है। इन विज्ञापनों का प्रस्तुतिकरण, भाषा एवं विषय वस्तु इतनी सस्ती है कि सभ्य समाज के सुसंस्कारित परिवारों के सदस्य तो इसे देखना कतई पसन्द नहीं करेंगे।

इन विज्ञापनों की विषय वस्तु में यह बताया गया है कि बच्चे गाली-गलौज कर रहे हैं, मारपीट कर रहे हैं तथा नन्हीं बालिका 'कलमुँही एवं जवानी का गर्म खून है', जैसे शब्दों का उच्चारण कर रही है। इनकी भाव-भंगिमाओं को इन विज्ञापनों में जिस प्रकार परोसा जा रहा है, उसे उचित नहीं कहा जा सकता। संस्कारों के प्रचार-प्रसार के लिए असंस्कारित जीवन शैली एवं उच्चारण को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

इस पौराणिक गाथा के प्रचार-प्रसार के लिए जिन अमर्यादित विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है, उसे एक विकृत मानसिकता की ही संज्ञा दी
  'रामायण' की टीआरपी बढ़ाने के लिए चैनल द्वारा विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है, जिनका प्रस्तुतिकरण, भाषा एवं विषय वस्तु इतनी सस्ती है कि सुसंस्कारित परिवार देखना पसन्द नहीं करेंगे।      
जाना चाहिए। भारत वर्ष के गौरवशाली, संस्कारित मूल्यों तथा मर्यादित जीवन शैली को अपनाने का एक शाश्वत्‌ सन्देश देने वाली गाथा रामायण को वस्तुतः किसी भी प्रकार के प्रचार की आवश्यकता ही नहीं है।

भारतीय सिनेमा के लगभग 78 वर्ष के काल में विभिन्न कालखंडों में यह महाकाव्य अनेक बार फिल्मों में रूपांतरित कर देश की धर्मपरायण जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। जब-जब रामायण आमजन तक पहुँची है, समाज को स्पन्दित किए बगैर नहीं छोड़ा।

उक्त चैनल द्वारा रामायण सीरियल की लोकप्रियता को बढ़ावा देने के लिए अमर्यादित शब्दों का उपयोग विज्ञापन में करना कदापि लोकहित में नहीं है। सामान्य जन-जीवन में कंठ प्रिय शब्दों के माध्यम से लोकप्रियता प्राप्त की जा सकती है। आशा करना चाहिए कि संबंधित चैनल इस बिन्दु पर विचार कर त्वरित ही कोई निर्णय लेगा।