शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By Author पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

चैत्र नवरात्रि : देवी आराधना पर्व

गृहस्थ व संतों के लिए शुभ चैत्र नवरात्रि

Navratri festival | चैत्र नवरात्रि : देवी आराधना पर्व
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ॐ बिघुतद्धामसमप्रभां-मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणा।।
कन्याभि: करतालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्रंकृगदासिरखेटविशिखांश्रापं गुणं तर्जनीं।
विभ्राणामनलात्मिका शशिधरां दुर्गा त्रिनेधांभजे।।

जिनके अंगों की प्रभा बिजली के समान है। मैं उस तीन नेत्रों वाली दुर्गा देवी का ध्यान करता हूँ। जो सिंह के कंधे पर बैठी हुई है, जो भयंकर प्रतीत हो रही है। जिनकी सेवा में अनेक कन्याएँ तलवार और ढाल हाथ में लेकर खड़ी हुई हैं, जिनका स्वरूप अग्निमय है तथा जो चंद्रमा का मुकुट धारण किए हुए है। ऐसी शोभायमान देवी को मैं ध्यान करके नमस्कार करता हूँ/करती हूँ।

जो भगवती को ध्यान करके नमस्कार करें, उनका पूर्ण भक्ति भाव से स्मरण करें, तो स्वयं भगवती प्रसन्न होकर आपको अभयदान देगी। भगवती स्वयं कहती है जो एकाग्रचित्त से प्रतिदिन मेरा स्मरण करता है, उसकी सारा बाधाएँ मैं निश्चय ही दूर कर दूँगी।

भगवती को इस प्रकार मनाने से अनेक प्रकार की बाधा नष्ट हो ज‍ाती है। साथ ही जीवन सुखी हो जाता है। भगवती की आराधना में स्वयं ब्रह्मा, विष्णु लगे रहते है। शिवजी स्वयं माँ की स्तुति करते है। क्रोध रूप में ‍स्वयं शिव को माँ के आगे (लेटना) आना पड़ा। प्रत्येक व्यक्ति ने नवरात्रि में देवी की आराधना अवश्य करनी चाहिए एवं उनके महात्म्य को सुनना चाहिए।

माँ भगवती त्रिपुर सुंदरी राजराजेश्वरी माँ जगदंबा की शरण मे जो ग्रहण कर लेता है। उस पर माँ प्रसन्न होकर भोग, स्वर्ग, और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान कर‍ती है। माँ भगवती की आराधना मनुष्‍य प्रति दिन कर सकता है। परंतु वर्ष में चार नवरात्रि आती है, जिसमें दो गुप्त कहलाती है ये क्रमश: चैत्र, आषाढ़, माघ एव आश्विन में होती है। आषाढ़ और माघ नवरात्रि गुप्त नवरात्रि कहलाती है। इसमें तंत्र सिद्धियाँ होती है। वह तामसी प्रवृत्ति वालों के लिए ठीक है। गृहस्थ व संतों के लिए चैत्र, आश्‍विन की नवरात्रि ठीक है।

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चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा से चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी (रामनवमी) ‍तक विशेष पर्व रहता है। इस समय भगवती की आराधना करने से राज्य, ऐश्वर्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

नारियों को माँ भगवती से प्रार्थना करनी चाहिए-

दे‍हि सौभाग्यं, आरोग्यं, देहि मे परमं सुखम, रूपम देहि, जयम देहि, यशो देहि़ द्विषो जहि।।

हे देवी सौभाग्य दो, आरोग्यता दो, परम सुख दो। तुम रूप दो, जय दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

भगवती की आराधना स्वयं कृष्ण निरंतर करते है। ऐसी स्वर्ग प्रदान करने वाली देवी की आराधना किसी भी रूप से करने से देवी प्रसन्न होकर अभयदान कर देती है। नाना प्रकार के आम से जानने वाली माँ जगदंबा के विशेष नौ नाम (नौ रूप) लेकर नौ रूपों की आराधना नवरात्रि पर्व में जो मनुष्‍य करता है वह अवश्य ही मनोरथ को प्राप्त कर लेता है।

गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती देवी जो सबकी अधिश्वरी है, वही देवी हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनके यहाँ प्रकट हुई। यही शैलपुत्री कहलाईं।

भगवती की नवरात्रि में आराधना करने से अकाल मृत्यु नहीं हो‍ती। अर्थात् व्यक्ति अग्नि, जल, बिजली, सर्प आदि से होने वाली मृत्यु से बचता है। वर्षों तक जीवित रहता है।