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Written By WD

2015 में विश्व साहित्य-पटल पर जगमगाती 10 किताबें

2015 में विश्व साहित्य-पटल पर जगमगाती 10 किताबें - Top 10 books in 2015
साहित्य 2015 : विश्व में चर्चित रहीं 10 किताबें 


 
विश्व साहित्य : 10 किताबें जो बीते साल पसंद की गई 

सहबा जाफरी  
 
जिंदगी, फलसफे, किताबें और अफसाने- इनके बगैर गुजरते साल के किसी हिस्से की कल्पना भी कैसे की जा सकती है! हैरत है, साल गुजर गया, वक्त के हाशिए पर अपने हुए-अनहुए पन्नों को दर्ज कर! कुछ टूटा, कुछ फूटा, कुछ बना, कुछ उजड़ा। सब कुछ इन किताबों ने समेट लिया बिलकुल उस राजदार सखी की तरह, जो हवा भी नहीं लगने देती और जख्मों पर मरहम रख जाती है।
 
वियतनाम की हिरोशिमा के फूल या मोहन राकेश की अंधेरे बंद कमरे जैसा हिन्दी संसार में कुछ दुबारा नहीं घटा, न ही मैला आंचल या अधचांदनी रात सा कुछ हैरतअंगेज और दिल को छू जाने वाला हुआ। टॉलस्टॉय की अन्ना दुबारा नहीं लौटी और न ही कोई पूरो अपने पिंजर को तोड़ने का साहस कर सकी पर किताबें तब भी लिखी गईं, कई मायनों में पहले से ज्यादा छू जाने वाली और कहीं ज्यादा आसान भाषा में।

वैश्विक रंगमंच पर आम-सी दुनिया से खास से मोड़ उठाकर लिखने वालों ने वही कुछ लिख डाला, जो हम में से बहुतेरों ने रोज-रोज दफ्तर जाने के दौरान देखा और नजरअंदाज कर दिया। पाउला हॉकिंस की द गर्ल ऑन दी ट्रेन ऐसी ही किताब रही, जो आम-सी दुनिया के खास से पहलू से रूबरू होती है और 'जैस 'और 'जैसन' की जिंदगी पर रश्क करती रशेल को दुनिया की तल्ख हकीकत से आशना करवाती है, कि जो वक्त की ट्रेन की खिड़की से नजर आए, हमेशा वही मंजर सच नहीं होते। 

कभी-कभी सच पस-ए-आईना भी होता है जनाब! इसी के बरक्स हार्पर टीन पब्लिशर की रेड क्वीन  2015 की उन जानी-मानी किताबों की फेहरिस्त में शामिल रही जिनके कथ्य और शिल्प को किसी भी आधार पर साहित्यिक धरोहर नहीं कहा जा सकता, पर लोकप्रियता के हिसाब से इसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। वर्ग वैषम्य, त्रासदी, नफरतों और तानाशाही के बीच पली 17 साल की नाजुक मनोभावों वाली लड़की में पनपे विषाद की यह कहानी हमारे दौर के हर युवा का आईना भी हो सकती है, यही इसकी चर्चा का आधार भी है।

किताबों से मोहब्बत करने वालों के जितने अंदाज रहे, सालभर किताबों को रचने वालों के तेवर भी कुछ-कुछ टक्कर के ही रहे साहब! और अदब के इस बगीचे में एक सुंदर नाजुक-सा फूल फिर आया ऑस्कर वाइल्ड की नजाकत समेटे एक नई दी नाइट एंगल क्रिस्टीन हन्नाह की यह नाइट एंगल मोहब्बत करने वाले दिलों को जिस बेतरह छू गई, उसने हर जवां जज्बात को एक ही नारे से रंग-सा दिया- 'इन लव वी फाइंड आउट हू वी वांट टू बी। इन वॉर वी फाइड आउट हू वी आर'। जी हां! बेहद सादगी से किताब समझा गई, 'रोशनी जिंदगी में मोहब्बत से है, वरना रक्खा है क्या चांदनी रात में!'
 
साल का कुतुबखाना अपने किताबियों की हर प्यास को पूरा करने में कामयाब रहा और पुरानी शराब-सी ही पुरानी मगर छू जाने वाली थीम लेकर हाजिर हुई 'हार्पर ली' अपने नायाब नॉवेल गो सेट अ वॉचमैन के साथ। हमेशा की तरह चेखव के लहजे को याद दिलाती ली की यह कहानी अपनी बुनावट, कसावट और लहजे में फिर चेखव की कब्रिस्तान के चौकीदार की याद दिलाती-सी लगती है। 
 
छब्बीस साला किरदार जीन लुईस फिंच का अपने गांव लौटकर आना, अपने बूढ़े पिता की फिक्र में जिंदगी की तल्ख मगर बेहद जरूरी हकीकतों से आशना होना और गमजदा शामों के बीच फिर एक नई सहर की तलाश कर लेना- कहानी इसी ताने-बाने में आगे बढ़ती कब हर लड़की को अपनी कहानी लगने लगती है, एहसास ही नहीं होता। 
 
और दास्तां का यह सफर हमें जिस स्टेशन पर छोड़ता है, वहां से दुबारा हम लौटते हैं एक नई किताब की तरफ जिसका तार्रुफ हमें मिलता ऑल दी ब्राइट प्लेसेज के रूप में। अपने कल के लिए जीते मर्की और अपने आज के लिए मर मिटने वाली थियोडोर के बीच पनपी मोहब्बत की बेहद महकती-सी यह कहानी जिस तरह मोहब्बत के मासूम रूप को बताती है, समां ही बंध जाता है। 
 
बेल टोवर स्कूल के यार्ड में पनपी मोहब्बत जिंदगी के नए-नए एहसासों से रूबरू कराती दोनों को कहां ले आती है, इसका अंदाज तब होता है, जब दोनों पीछे मुड़कर देखते हैं और उनकी आंखें हैरतजदा रह जाती हैं कि पीछे तो कुछ बाकी ही नहीं, रास्ता तो सिर्फ अब आगे है।
 
कहानी में दो अलग किरदारों की केमिस्ट्री बस बांधकर ही रख लेती है। मगर दिल? दिल है कि मानता ही नहीं और बेहद लुभावनी किताब का महकता-सा शिगूफा हवा की एक ही दिलजूई पर नजरों के पास आन पड़ता है। अ कोर्ट ऑफ थ्रोन्स एंड रोजेस वही एक शिगूफा है। थ्रिल से भरा हुआ। साराह मॉस की यह जंगलों, जानवरों और उसमें मौजूद इंसान के निस्वानी उतार-चढ़ाव की वह कहानी है, जो कहीं-कहीं अपने जानवरों के तसव्वुर के बीच द गोल्डन कम्पास की याद दिलाती-सी लगती है।
 
कीरा कास की कहानी द हेयर पीढ़ियों के टकराव के बीच अपने रोमांस को हकीकत में तब्दील करने को छटपटाती प्रिंसेज एडलीन की वह अनूठी-सी दास्तान है, जो साल के हाशिए पर सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। 
 
किताबों की यह खूबसूरत पगडंडी हमें सबा ताहिर की वीरानी-सी कहानी 'एन एम्बर इन दी एशेज' की तन्हा मगर बेहद उम्दा बुनावट वाली नफीस-सी कहानी पर ला छोड़ती है, जो संगदिल रिवाजों के आहनी हिसारों में बंद एक औरत की छटपटाहट के बीच समाज की बुनियादी गलीज रिवायतों पर रोशनी-सी डालती है कि औरत कुछ भी नहीं, समाज के जिंदान में रोशनी को तड़पती बस एक उम्रकैद की मुल्जिम है, आदमकद और पत्थर दिल मुजस्सिमों, जिन्हें मर्द कहा जाता है, के सुख के लिए जन्मा एक खिलौना! समाज आज भी इस किस्म की थीम को बड़ी दिलचस्पी से पढ़ता है। इतनी कि, यह किताब साल की दूसरी सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब होती है, मगर अफसोस सिर्फ हाशिए से!
 
मैरिसा मेयर की द विंटर से होते हुए ईएल जेम्स की ग्रे पर खत्म 2015 का यह किताबी गलियारा पढ़ने वालों को जिस दश्त में छोड़ता है, वहां दिमागी सुकून का बेहद शांत सागर नजर आता है।
 
और याद आती हैं सफदर हाशमी साहब की चंद पक्तियां-
 
'किताबें कुछ कहना चाहती हैं/ हमारे साथ रहना चाहती हैं।'