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Written By भाषा

होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार प्रेमचंद

31 जुलाई : जन्मदिन पर विशेष

premchand | होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार प्रेमचंद
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देश विदेश में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ रही है तथा आलोचकों के अनुसार उनके साहित्य का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि वह अपने साहित्य में ग्रामीण जीवन की तमाम दारुण परिस्थितियों को चित्रित करने के बावजूद मानवीयता की अलख को जगाए रखते हैं।

साहित्य समीक्षकों के अनुसार प्रेमचन्द के उपन्यासों और कहानियों में कृषि प्रधान समाज, जाति प्रथा, महाजनी व्यवस्था, रूढ़िवाद की जो गहरी समझ देखने को मिलती है, उसका कारण ऐसी बहुत सी परिस्थितियों से प्रेमचंद का स्वयं गुजरना था। प्रेमचंद के जीवन का एक बड़ा हिस्सा घोर निर्धनता में गुजरा था।

कहानीकार एवं अलीगढ़ के धर्म समाज कालेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश अमिताभ के अनुसार प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत है, इसका पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। होरी ग्रामीण परिवेश का एक हारा हुआ चरित्र है लेकिन प्रेमचंद की नजरों ने उसके भीतर विलक्षण मानवीय गुणों को खोज लिया।

अमिताभ के अनुसार प्रेमचंद का मानवीय दृष्टिकोण अद्भुत था। वह समाज से विभिन्न चरित्र उठाते थे। मनुष्य ही नहीं पशु तक उनके पात्र होते थे। उन्होंने हीरा मोती में दो बैलों की जोड़ी, आत्माराम में तोते को पात्र बनाया। गोदान की कथाभूमि में गाय तो है ही।

अमिताभ ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य में खोखले यथार्थवाद को प्रश्रय नहीं दिया। प्रेमचंद के खुद के शब्दों में वह आदशरेन्मुखी यथार्थवाद के प्रबल समर्थक हैं। उनके साहित्य में मानवीय समाज की तमाम समस्याएँ हैं तो उनके समाधान भी हैं। वरिष्ठ लेखक एवं कवि धनंजय सिंह के अनुसार प्रेमचंद का लेखन ग्रामीण जीवन के प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में इसलिए सामने आता है क्योंकि इन परिस्थितियों से वह स्वयं गुजरे थे। अन्याय, अत्याचार, दमन, शोषण आदि का प्रबल विरोध करते हुए भी वह समन्वय के पक्षपाती थे।

सिंह ने कहा कि प्रेमचंद अपने साहित्य में संघर्ष की बजाय विचारों के जरिये परिवर्तन की पैरवी करते हैं। उनके दृष्टिकोण में आदमी को विचारों के जरिये संतुष्ट करके उसका हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। इस मामले में वह गाँधी दर्शन के ज्यादा करीब दिखाई देते हैं।

वाराणसी से पाँच छह मील की दूरी पर लमही गाँव में 31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद का पारिवारिक व्यवसाय कृषि था हालाँकि उनके पिता को निर्धनता के कारण डाकघर में काम करना पड़ा था। प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था और उनका बचपन घोर निर्धनता में बीता। दिलचस्प है कि उर्दू में पढ़ाई शुरू करने वाले प्रेमचंद ने उर्दू में ही अपना लेखन शुरू किया और कई पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद किया।

पढ़ाई पूरी होने के बाद प्रेमचंद ने अध्यापन को अपना पेशा बनाया। लेखन के अलावा उन्होंने मर्यादा, माधुरी, जागरण और हंस पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत है, इसका पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। होरी ग्रामीण परिवेश का एक हारा हुआ चरित्र है लेकिन प्रेमचंद की नजरों ने उसके भीतर विलक्षण मानवीय गुणों को खोज लिया।
प्रेमचंद के शुरुआती उपन्यासों में रूठी रानी, कृष्णा, वरदान, प्रतिज्ञा और सेवासदन शामिल हैं। कहा जाता है कि सरस्वती के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिली प्रेरणा के कारण उन्होंने हिन्दी उपन्यास सेवासदन लिखा था। बाद में उनके उपन्यास प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि और गोदान छपा। गोदान प्रेमचंद का सबसे परिपक्व उपन्यास माना जाता है। उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र अपूर्ण रहा।

समीक्षकों के अनुसार प्रेमचंद की सर्जनात्मक प्रतिभा उनकी कहानियों में कहीं बेहतर ढंग से उभरकर सामने आई है। उन्होंने 300 से अधिक कहानियाँ लिखी। प्रेमचंद की नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, बड़े भाई साहब, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी और कफन जैसी कहानियाँ आज विश्व साहित्य का हिस्सा बन चुकी हैं।