उत्तराखंड में महिलाएं केवल आर्थिकी ही नहीं चुनावी लोकतंत्र की भी रीढ़ हैं
देहरादून। उत्तराखंड में महिलाओं को राज्य की आर्थिकी की रीढ़ कहा जाता है। यहां महिलाएं चुनावी लोकतंत्र की भी रीढ़ हैं।मतदान प्रतिशत बढ़ाने के चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद पुरुषों का मतदान प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा कम रहता है।
इसके बावजूद इस बार भाजपा ने 8 व कांग्रेस ने 5 महिलाओं को ही टिकट दिया। यह दोनों दलों की कथनी और करनी के अंतर को दिखाता है। राज्य के 9 पर्वतीय जिलों की 34 में से 33 सीटों पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने अधिक मतदान किया।
एसडीसी फाउंडेशन ने प्रदेश के नौ पर्वतीय जिलों के चुनावी आंकड़ों को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है उससे यह बात साफ होती है कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के नौ पर्वतीय जिलों की 34 सीटों पर पुरुषों का मतदान प्रतिशत सिर्फ 51.15 और महिलाओं का मतदान प्रतिशत 65.12 था। राज्य के पर्वतीय जिलों की 34 में से 33 सीटों पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया।
पर्वतीय जिलों में उत्तरकाशी की एकमात्र पुरोला विधानसभा सीट पर महिलाओं के मुकाबले 583 ज्यादा पुरुषों ने मतदान किया।पर्वतीय जिलों की 33 सीटों के अलावा मैदानी जिलों की 4 सीट, डोईवाला, ऋषिकेश, कालाढूंगी और खटीमा में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया।
पर्वतीय जिलों की 34 सीटों पर औसतन हर विधानसभा सीट पर 28202 महिलाओं और 23086 पुरुषों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और प्रत्येक सीट पर पुरुषों के मुकाबले औसतन 5116 ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। ज्यादा संख्या में महिला वोटिंग के मामले में बागेश्वर, रुद्रप्रयाग और द्वाराहाट सबसे आगे थे।
बागेश्वर में पुरुषों के मुकाबले 9802, रुद्रप्रयाग में 9517 और द्वाराहाट में 9043 ज्यादा महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के अनुसार, मतदान में महिलाओं की इतनी बड़ी भागीदारी के बावजूद प्रमुख राजनीतिक दलों ने बहुत कम संख्या में महिलाओं को टिकट दिए हैं।
वे कहते हैं कि आने वाली सरकारों को राज्य में महिलाओं के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी चाहिए। इसके अलावा यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पलायन और रोजी-रोटी की मजबूरियों के चलते जो लोग वोट नहीं दे पाते उन्हें किस तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सके।