विश्व विजेता ननाओं की रोचक दास्तान
मुक्केबाजी की हठ ने बनाया चैंपियन
विश्व युवा चैंपियनशिप के स्वर्ण पदक विजेता थोकचोम ननाओ सिंह ने पहली बार जब मुक्केबाजी के ग्लब्स पहने तो उनके पिताजी बहुत नाराज हुए और उन्होंने उसे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया था, लेकिन यह इस मुक्केबाज की हठ थी, जिसके कारण आज उनके माता-पिता को भी उन पर नाज है। ननाओ सिंह तब केवल आठ साल के थे, जब उन्होंने मुक्केबाजी को अपनाया। उन्होंने कहा कि असल में मेरा एक मित्र मुक्केबाज था और वही मुझे पहली बार रिंग में ले गया और मुझे यह खेल बहुत अच्छा लगा। इसके बाद डिंकोसिंह ने 1998 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उसी समय मैंने मुक्केबाज बनने की सोची, लेकिन मेरे माता-पिता इसके खिलाफ थे। उन्होंने कहा मैं परिवार में सबसे छोटा था और मेरे माता पिता भी चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ध्यान दूँ लेकिन मैंने मुक्केबाजी के लिए अनुमति न मिलने तक स्कूल जाने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुझे बोर्डिंग स्कूल भेजा लेकिन मैं वहाँ से भागकर आ गया। ननाओ ने कहा कि उनके विरोध के कारण आखिरकार उनके कड़क पिताजी को भी उनके लिए स्थानीय मुक्केबाजी कोच की व्यवस्था करनी पड़ी, जिन्होंने उन्हें शुरू में इस खेल की बारीकियाँ सिखाई। इसके बाद 2000 में वह पुणे के सेना खेल संस्थान से जुड़े।