शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम...

ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम... - ‎Krishna Janmashtami
भज गोविंदम मूढ़मते... 
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' 


 
कृष्ण संकल्प : सुख हो या दुख आज से मैं आजीवन कृष्ण की शरण में हूं।
 
हिंदू धर्म के पास कुछ मंत्र हैं जिनसे ‍जीवन में चमत्कारिक रूप से लाभ मिलता है। मंत्र का अर्थ होता है मन को एक तंत्र में लाना। यदि आप एक मंत्र को छोड़कर कोई दूसरा मंत्र जपने लग जाते हैं तो मन जिंदगीभर कभी एक तंत्र में नहीं आ पाएगा और जब तक मन एक तंत्र में नहीं आता तब तक मंत्र फलित भी नहीं होता है। भगवान भी द्वंद में जीने वाले की शायद ही सुनता हो। द्वंद्व का मतलब यह कि आपको किसी एक पर श्रद्धा नहीं है।
 
गीता का प्रमाण : यह कृष्ण मंत्र नहीं कृष्ण से जुड़ने का सरल तरीका है। कृष्ण से जुड़कर ही संसार सागर को पार किया जा सकता है। इस संबंध में गीता में स्वयं कृष्ण कहते हैं :-
 
'हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है। हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुंथा हुआ है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे असुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।
 
हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला), जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं।
 
उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।
 
 

जो मेरी शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं। बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।'
 
कृष्ण मंत्र : कृष्ण संबंधी मंत्र तो बहुत हैं, लेकिन कुछ खास मंत्रों का ही प्रचलन और महत्व है। यहां प्रस्तुत है उनमें श्रद्धा व्यक्त करने संबंधी मंत्र।
 
(1) 'ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।'
(2) ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृष्णाय क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।
(3) हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।
 
मंत्र जाप का तरीका :
(1) पहले मंत्र के लिए पवित्रता का विशेष ध्‍यान रखें। स्नान पश्चात्य कुश के आसन पर बैठकर सुबह और शाम संध्या वंदन के समय उक्त मंत्र का 108 बार जाप करें। यह मंत्र जीवन में किसी भी प्रकार के संकट को पास फटकने नहीं देगा।
 
(2) दूसरा मंत्र संकटकाल में दोहराया जाता है। जब कभी भी व्यक्ति को आकस्मिक संकट का सामना करना पड़ता है तो तुरंत ही पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ उक्त मंत्र का जाप कर संकट से मुक्ति पाई जा सकती है।
 
(3) तीसरा मंत्र निरंतर दोहराते रहना चाहिए। उक्त मंत्र को चलते-फिरते, उठते-बैठते और कहीं भी किसी भी क्षण में दोहराते रहने से कृष्ण से जुड़ाव रहता है। इस तरह से कृष्ण का निरंतर ध्यान करने से व्यक्ति कृष्ण धारा से जुड़कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग पुष्ट कर लेता है।
 
सभी मंत्र को जपने से पूर्व एक बार 'ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम।' मंत्र का उच्चारण अवश्य करें।
 
अत: उक्त मंत्र के महत्व को समझते हुए अन्य की ओर जो अपना मन नहीं लगाता वह कृष्ण की शरण में होता है। और जो कृष्ण की शरण में है उसे किसी भी प्रकार से रोग और शोक सता नहीं सकते। मस्तिष्क में किसी भी प्रकार के द्वंद्व नहीं होते।