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Written By WD

सरस्वती नहीं प्रयाग में फिर त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं?

saraswati river, Triveni Sangam Allahabad | सरस्वती नहीं प्रयाग में फिर त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं?
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इतनी नदियां जिसके अंदर बहती है उसे भारत कहते हैं- सिंधु 2,900 (किमी), ब्रह्मपुत्र 2,900 (किमी), गंगा 2,510 (किमी), गोदावरी 1,450 (किमी), नर्मदा 1,290 (किमी), कृष्णा 1,290 (किमी), महानदी 890 (किमी), कावेरी 760 (किमी) और सरस्वती। अब आप सोचिए इनमें से कौन कौन सी नदी हिंदुस्तान के बाहर बहती है।

देश की दो बड़ी नदियां गंगा और यमुना का जहां-जहां भी मिलन हुआ है वहां पर तीर्थ निर्मित हो गया है। सभी कहते हैं कि इस मिलन में सरस्वती भी शामिल है, लेकिन सरस्वती नदी को कहीं नजर ही नहीं आती फिर उसे त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं? दूर-दूर तक सरस्वती का नामोनिशान तक नहीं है।

गंगा नदी : गंगा को धरती की नदी नहीं मानते हैं यह स्वर्ग से धरती पर उतरी है। गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है। अर्थात यह गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। जहां यह समा जाती है उसे गंगा सागर कहते हैं।

स्वर्गलोक से अपनी थोड़ी सी चूक के कारण जब गंगाजी को धरती पर आना पड़ा तो भगवान ने उन्हें कहा कि पृथ्वी पर एक बरगद (अक्षयवट) का वृक्ष है। तुम उसके पास से होकर गुजरोगी तो उसके स्पर्श से तुम जितने प्राणियों के पाप धोकर पाप से ग्रस्त हो जाओगी, यह वृक्ष तुम्हारे उस पाप को दूर कर देगा। इस वृक्ष को छूकर तुम निर्मल बन जाओगी।

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यमुना नदी : यमुना नदी को भी धरती की नदी नहीं मानते हैं। इसका उद्गम यमुनोत्री से हुआ। यह नदी पश्चिमी हिमालय से निकलकर उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुंचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद (प्रयाग) में गंगा नदी में मिल जाती है।

चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक किमी दूर यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है।

यह नदी भी आकाश मार्ग से धरती पर उतरी थीं। भगवान सूर्य देव की पत्नी संज्ञा जब सूर्य देव के साथ रहते हुए उनकी गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकीं तो उन्होंने अपनी ही तरह की एक छाया के रूप में एक औरत का निर्माण किया तथा उसे भगवान सूर्य के पास छोड़ कर अपने मायके चली गई। सूर्य देव छाया को ही अपनी पत्नी मानकर एवं जानकर उसके साथ रहने लगे। संज्ञा के गर्भ से दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया। उसमें लड़के का नाम यम तथा लड़की का नाम यमी पड़ा। यम तो यमराज हुए तथा यमी यमुना हुई। सूर्य की दूसरी पत्नी छाया से शनि का जन्म हुआ।

जब यमुना भी अपनी किसी भूल के परिणाम स्वरुप धरती पर आने लगी तों उसने अपने उद्धार का मार्ग भगवान से पूछा। भगवान ने बताया कि धरती पर देव नदी गंगा में मिलते ही तुम पतित पावनी बन जाओगी।

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सरस्वती : महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन आता है। महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी।

भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के ग्लेशियर से होता था। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी।

भूगर्भीय खोजों से पता चला कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकंप आया था, जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी का जिक्र आता है, वह नदी थी दृषद्वती। यह सरस्वती की सहायक नदी थी।

इस भूकंप के कारण दोनों नदियों के बहाव की दिशा बदल गई और दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी। बहुत बाद में यह इलाहाबाद में गंगा से जाकर मिली। यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया।

क्या सचमुच सरस्वती प्रयाग की गंगा-यमुना से मिली?, पढ़ें अगले पन्ने पर...

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कुछ विद्वानों अनुसार सरस्वती पूर्व काल में स्वर्णभूमि में बहा करती थी। स्वर्णभूमि का बाद में नाम स्वर्णराष्ट्र पडा। धीरे-धीरे कालान्तर में यह सौराष्ट्र हो गया। किन्तु यह सौराष्ट्र प्राचीन काल में पुरा मारवाड़ भी अपने अन्दर समेटे हुए था। यहां सरस्वती प्रेम से रहती थी। चूंकि इस प्रदेश से सटा हुआ यवन प्रदेश (खाड़ी देश) भी था, अतः यहां के लोग यवन आचार-विचार के मानने वाले होने लगे।

सरस्वती इससे ज्यादा दुखी थीं ब उन्होंने ब्रह्माजी से अनुमति लेकर मारवाड़ एवं सौराष्ट्र छोड़कर प्रयाग में आकर बस गई। सरस्वती के वहां से चले आने के बाद वह पूरी भूमि ही मरूभूमि में परिवर्तित हो गयी जो आज राजस्थान के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी कथा भागवत पुराण में बतई गयी है। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी।

इसलिए मिली सरस्वती प्रयाग में : जब सरस्वती को पता चला कि ऐसा वृक्ष प्रयाग में स्थित है जो सभी के पाप धोकर उनके उद्धार कर देता है तो वह भी ब्रह्माजी से अनुमति लेकर स्वर्णभूमि छोड़ कर आकर प्रयाग में इन दोनों नदियों में शामिल हो गयी।

एक कथा अनुसार हनुमान, भारद्वाज ऋषि और सरस्वती तीनों ही इसलिए प्रयाग के संगम पहुंच गए थे, क्योंकि वहां भगवान राम आने वाले थे।

लेकिन सच यह है? : प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची।

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अमेरिकी वैज्ञानिक वेबसाइट 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस' ने लिखा है कि वैज्ञानिकों ने अभी तक मिथक मानी जाने वाली सरस्वती नदी का पता लगा लिया है।

भारत, पाकिस्तान, ब्रितानिया, रोमानिया और अमेरिका के भूगर्भवेताओं, भूआकृति-वैज्ञानिकों, पुरातत्त्ववेताओं और गणितज्ञों ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज की घग्घर नदी ही पहले की सरस्वती नदी थी।

अब यह नदी रेगिस्तानी इलाके में पहुंचकर गायब हो जाती है और सिर्फ एक बरसाती नदी बनकर रह गई है। नदी के तलछट की गाद के विश्लेषण, स्थालाकृति, मानचित्रों और अंतरिक्ष से खींचे गए चित्रों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्राचीनकाल में घग्घर नदी वास्तव में बहुत बड़ी नदी थी, जिसमें हमेशा भरपूर पानी बहता था।

हड़प्पा सभ्यता के काल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिंधप्रदेश तक जाती थी।

क्या 1 करोड़ साल पहले जन्मीं थी सरस्वती नदी? पढ़ें अंतिम पन्ने पर...

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पुरातत्व, जियोलॉजिस्ट और भू-भौतिकी विद्वानों अनुसार था कि कैलाश से कच्छ तक बहने वाली सरस्वती नदी करीब चार हजार साल पहले लुप्त हो गई, लेकिन अब साइंटिस्टों ने नदी के बहाव क्षेत्रों और सहायक नदियों की बेसिन से चीन मूल की सायप्रिनिड मछलियों के जीवश्म के अध्ययन से यह बताया है कि लुप्त सरस्वती का जन्म 1.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ था।

इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम देने वाले वाडिया संस्थान के साइंटिस्ट डॉ. बीएन तिवारी ने करीब दो दशक पहले इस दिशा में काम शुरू किया।

1982 में डॉ. तिवारी को धर्मशाला में 1.6 करोड़ वर्ष पुराने सायप्रिनिड मछली के जीवाश्म मिले। इसके बाद 1996 में लद्दाख में इसी मछली के 3.2 से 1.6 करोड़ पुराने जीवाश्म मिले। हाल ही में कच्छ सायप्रिनिड के 1.7 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म मिले हैं। तीनों स्थानों पर मिले सायप्रिनिड मछली के जीवाश्मों ने यह साबित कर दिया है कि ये मछलियां सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों में निवास करती थीं।

सायप्रिनिड मछलियां अरली मॉयोसिन (1.6 से 1.7 करोड़) में पाई जाती थीं। लिहाजा साइंटिस्ट इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सरस्वती का जन्म 1.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। डॉ. बीएन तिवारी और अनसुया भंडारी के संयुक्त अध्ययन में बताया गया है कि चीन मूल की मछली का कच्छ में मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि ऐसी नदी निश्चित रूप से रही होगी।

केएस वल्दिया की पुस्तक 'सरस्वती द रिवर दैट डिसेपीयर्ड' और बीपी राधाकृष्णा व एसएस मेढ़ा की पुस्तक 'वैदिक सरस्वती' में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी।

इस नदी में पाई जाने वाली सायप्रिनिड मछलियां सहायक नदियों के जरिए करगिल, लद्दाख और धर्मशाला पहुंची। डॉ. तिवारी ने बताया कि मलाया और वेस्टर्न घाट की मछलियों की समानता को बताने के लिए स्व. डॉ. एसएल होरा ने करीब पांच दशक पहले सतपुरा परिकल्पना दी। सायप्रिनिड मछलियों के जीवाश्मों के अध्ययन से अब इस परिकल्पना की जरूरत नहीं रह गई है।

- (एजेंसियां)