नागपंचमी : सर्प की नहीं शिव की पूजा करें
भारत देश शुरू से ही विभिन्न धार्मिक रीति के आधार पर पर्व-त्योहार मनाता आ रहा है। परंपरा से चली आ रही प्रथाएं भी इसका एक कारण हो सकती हैं। इसी क्रम में नाग पूजा की परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है। भारतीय संस्कृति में नाग का विशेष महत्व बताया जाता है।
श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन नागपंचमी का पर्व परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन नाग को देवता के रूप में पूजा जाता है तथा नाग को हल्दी, कंकू, दूध एवं खीर चढ़ाई जाती है। इस दिन नागों के दर्शन भी शुभ माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि हमारी धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई है। लेकिन इन सभी मान्यताओं के कारण सांपों के जीवन व उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
धरती शेषनाग के फन पर टिकी है, ये धार्मिक रूप से ठीक है लेकिन वैज्ञानिक और जीवनचक्र के रूप में देखा जाए तो सांप धरती पर जैविक क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सर्प अनुसंधान संगठन के संचालक व सांपों की देखरेख और उनके संरक्षण के लिए काम कर रहे मुकेश इंगले ने बताया कि सांप प्रकृति का अनुपम उपहार हैं। अन्न के दुश्मन चूहों की 80 प्रतिशत आबादी को सांप नियंत्रित करते हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां लगभग एक-चौथाई खाद्य उपज हर वर्ष चूहे व अन्य जीव नष्ट कर देते हैं, वहां सांप बड़े भी प्रभावी ढंग से चूहों की आबादी को रोकते हैं, क्योंकि केवल वे ही चूहों के बिलों में भीतर तक जाकर उनका सफाया करने में सक्षम हैं।
एक प्राकृतिक चूहा नियंत्रक के रूप में सांप की महती भूमिका है। वहीं सर्प में उपस्थित रसायनों से कई प्रकार की जीवनरक्षक दवाओं का निर्माण होता है जिससे मानव के कई जटिल व असाध्य रोगों का उपचार करने में सहायता मिलती है। सांपों का धार्मिक व पौराणिक महत्व तो है ही, वे आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
सांपों की पूजा या हत्या का पर्व
देश में प्रतिवर्ष नागपंचमी पर लगभग 75 हजार सांप दूध पिलाने व पूजन में युक्त सामग्रियों के संक्रमण से मारे जाते हैं। इसमें निमोनिया व फेफड़ों के संक्रमण से सबसे ज्यादा सांपों की मृत्यु होती है। सपेरों द्वारा सांपों के विषदंतों व विषग्रंथियों के अमानवीय व क्रूर तरीके से निकालने से सांपों के मुंह में घाव व सेप्टिक हो जाता है व मुंह का आंतरिक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है।