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Written By ND

अपनापन जताओ तो सही...

अपनापन जताओ तो सही... -
-प्रीता जै

NDND
कभी-कभी अपनों से स्नेहवश कुछ लेना या उन पर भावनात्मक रूप से आपका निर्भर होना उचित होने के साथ-साथ आपकी अच्छाई को भी दर्शाता है कि आज सब कुछ होते हुए भी आपमें विनम्रता व व्यवहार कुशलता वही की वही है। बेवजह का अहम्‌ या दिखावा आपने नहीं सीखा है।

चारु का रक्षाबंधन पर भाई के घर जाना तय हुआ, किन्तु ट्रेन के पहुँचने का समय सुबह जल्दी होने से इसी असमंजस में रही कि भाई को स्टेशन पर बुलाए या नहीं। खैर! भाई को बेवजह परेशान न करने की सोच वह स्वयं ही ऑटो ले घर पहुँच गई, किन्तु भाई को उसका इसतरह आना अच्छा नहीं लगा, उसने यही कहा कि- चारु तुम जरा भी अपनापन नहीं रखती हो, हमें अपना नहीं समझती हो।'क्या मैं तुम्हें लेने नहीं आ सकता था।'

हर रिश्ते में औपचारिकता निभाना या सबको गैर मानना सही नहीं है। यही तात्पर्य चारु के भाई का था। काफी हद तक ऐसा कहना सही भी है, किन्तु आज कुछ दौर ही ऐसा चल रहा है कि रिश्तों में न चाहते हुए भी अनौपचारिकता नहीं रह गई है। वो प्यार अपनत्व, स्नेह, सम्मान सब खत्म होता जा रहा है जो पहले हुआ करता था। यही कारण है कि चारु चाहते हुए भी संकोचवश भाई को बुलाने में हिचकती रही। वैसे देखा जाए तो दोनों ही अपनी-अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन भाई का पक्ष ज्यादा मजबूत है और यह सच भी है कि जिन्दगी जीने के लिए अपनों का साथ होना जरूरी है। हमें अपने लोगों के साथ आवश्यकतानुसार हक व अधिकार रखना ही चाहिए जोकि संबंधों को मजबूत व एक-दूसरे से जुड़े रहने का अहसास दिलाते हैं। हम और आप ही हैं जो इन बेमानी, बेरंग, बोझिल हुए रिश्तों में फिर से प्रेम-लगाव, अपनेपन का रंग भर इन्हें सजीव कर जिन्दगी में खुशियाँ ला सकते हैं।

आज मैं, मेरा पति, मेरे बच्चे बस यही परिवार की परिभाषा रह गई है, हर कोई इसी में खुश व संतुष्ट हो रहा है, या सुखी होने का दिखावा
कभी-कभी अपनों से स्नेहवश कुछ लेना या उन पर भावनात्मक रूप से आपका निर्भर होना उचित होने के साथ-साथ आपकी अच्छाई को भी दर्शाता है
कर रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब आप अपनों को खोजते हैं, उनके साथ के लिए बेचैन होते हैं, अतः आपकी यही कोशिश रहनी चाहिए कि शुरू से ही सबके साथ जुड़कर रहें। मेरे पास क्या कमी है? या कौन-सा मैं किसी पर निर्भर हूँ जो औरों का साथ चाहिए, ऐसा कदापि ना सोचें। मुझे एक छोटी सी घटना याद आ रही है। मेरी सहेली प्रिया जो काफी संपन्न है,उसके भतीजे की शादी थी। घर में उत्सव होने के कारण उसने खूब खरीददारी की व सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया मौज-मस्ती भी की। भाई-भाभी ने भी जो ननद का हक बनता था देकर सभी नेग पूरे किए, फिर भी प्रिया ने भाई से अपनी पसंद की कुछ चीज लेने की इच्छा जाहिर करते हुए मजाकिया लहजे में कहा- 'अकेले तुम ही लोग मजे नहीं लोगे। मैं भी बुआ हूँ और मेरा बराबर का हक है कि अपने भतीजे की शादी में तुमसे खूब माँगकर अपने अरमान पूरे करूँ।'

अब माँगने से प्रिया छोटी या उसका ओहदा तो कम नहीं हो गया बल्कि इसके विपरीत उसके घरवालों को जरूर लगा कि आज भी यह उतनी ही अपनी है जितनी पहले थी, तभी तो इसने स्नेह जताया और मायके में अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाया।

यह बहुत अच्छी बात है कि आप एक उम्र के बाद आत्मनिर्भर हो किसी से कुछ नहीं लेते हैं या किसी पर आपका कोई कर्ज भी नहीं है, परंतु कभी-कभी अपनों से स्नेहवश कुछ लेना या उन पर भावनात्मक रूप से आपका निर्भर होना उचित होने के साथ-साथ आपकी अच्छाई को भी दर्शाता है कि आज सब कुछ होते हुए भी आपमें विनम्रता व व्यवहार कुशलता वही की वही है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमेशा नहीं पर जरूरत होने पर जिन्हें आप अपना समझते हैं उनकी सहायता लेना या उन पर आश्रित हो उनको दर्शाना कि आप हमारे काम नहीं आएँगे तो कौन आएगा 'यह गलत नहीं है। इससे तो आपसी दूरियाँ कम हो, संबंधों में मिठास आती है। याद रखिए जीने का मजा अकेले में नहीं वरन्‌ अपनों के साथ ही है।