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Written By WD

कंपनियां भी मान रही हैं भावनात्मक रिश्तों का महत्व

कंपनियां भी मान रही हैं भावनात्मक रिश्तों का महत्व - Emotional Relation with employee
विवेक कुमार 
 
आज प्रतिस्पर्धा के दौर ने कंपनियों को कर्मचारियों के साथ भावनात्मक रिश्ते बनाने के लिए मजबूर कर दिया है।
 
रविवार सुबह लगभग 7 बजे के आसपास सुमन के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। अचानक इतनी सुबह छुट्टी के दिन किसी के दरवाजा खटखटाने पर सुमन को हैरानी हुई। उसने सोचा, "जाने कौन होगा?" फिर खुद ही खुद को जवाब दिया, "कामवाली तो नहीं होगी, क्योंकि वह रविवार के दिन 9 बजे के बाद आती है।" सुमन ने तुरंत जाकर दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही वह चौंक उठी। गेट पर उसके पति सुरेश के सहकर्मी हाथ में खूबसूरत गुलदस्ता लिए खड़े थे। उनमें से एक सहकर्मी रूपा ने सुमन को झट से गले लगाया और उसे मुबारकबाद दी। बाहर का शोरगुल सुनकर सुरेश भी भागा हुआ बाहर आया तो देखा उसके सहयोगी खड़े हैं। सुमन और सुरेश की खुशी का ठिकाना न रहा। इतने में रूपा ने कंपनी द्वारा दिया गया प्रमोशन लेटर सुरेश को सौंप दिया। पत्र में कंपनी द्वारा मुबारकबाद दी गई थी। मजे की बात है कि कंपनी ने एक बोतल शैम्पेन और एक केक का डिब्बा भी बतौर तोहफा सुरेश के लिए भिजवाया था। 

बहरहाल, हर कंपनी अपने कर्मचारियों के लिए ऐसा नहीं करती है। लेकिन निश्चित रूप से जो कंपनी अपने कर्मचारियों की खुशियों का जरिया बनती है, उनका मानना है कि ऐसा करने से न सिर्फ कर्मचारी का मनोबल बढ़ता है वरन उसको काम में कभी बोरियत या एकरसता महसूस नहीं होती। इतना ही नहीं, परेशानी या मुसीबत आने पर वह अपने सीनियर्स से निःसंकोच संपर्क भी करता है खासतौर पर आईटी/बीपीओ इंडस्ट्रीज में। दरअसल, इन क्षेत्रों में अक्सर कर्मचारी डिप्रेशन या तनाव का शिकार हो जाते हैं। नतीजतन, उन्हें इसका खामियाजा अपने बिगड़े स्वास्थ्य के रूप में भरना पड़ता है। लेकिन आज प्रतिस्पर्धा के दौर ने कंपनियों को कर्मचारियों के साथ भावनात्मक रिश्ते बनाने के लिए मजबूर कर दिया है।

जब काम के साथ मिले कुछ आराम
 
आजकल हर कोई 9 से 16 घंटे दफ्तर के कामकाज में लगाता है। किसी से बात करने का किसी के पास टाइम नहीं है। लेकिन मजे की बात है कि कंपनियां अब वे तमाम सुविधाएं उपलब्ध करा रही हैं, जो कि एक आम आदमी की जरूरत हैं। मसलन स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली, दूसरों से संपर्क बनाए रखने का जरिया आदि। सवाल है, कंपनी यह सब कैसे कर रही है? 

बहुत हैरानी की बात है कि कंपनियां अब दफ्तर में सिर्फ एक कैंटीन भर नहीं रखती हैं बल्कि मसाज सेंटर, जिम, योगा, फैमिली क्विज, स्पोर्ट्‌स प्रतियोगिता, पिकनिक आदि सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि भला कंपनियां  ऐसा क्यों कर रही हैं? दरअसल, पिछले दिनों हुए एक सर्वेक्षण से यह पता चला है कि निरंतर तनावपूर्ण काम करते रहने से व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ता है तथा वह मानसिक तनाव से भी घिरा रहता है। 

भावनात्मक रिश्ते
 
दिवाकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। ऑफिस में लगभग 12 घंटे बिना रुके काम करता है। आकर्षक तनख्वाह पाने के बाजवूद वह अपनी नौकरी छोड़ना चाहता है, क्योंकि दिवाकर अपने पैसे से तमाम पसंदीदा चीजें खरीद सकता है लेकिन उसके पास अपने प्रियजनों के साथ बैठने के चार पल नहीं हैं। लगातार दिन-रात काम करते-करते दिवाकर खुद को मशीनी इंसान समझने लगा है। उसकी निजी जिंदगी खत्म होने के कगार पर खड़ी है।

दरअसल, प्राइवेट कंपनीज के साथ यह समस्या आम है। यहां हर कोई दूसरे को हराने की होड़ में लगा है। इससे न सिर्फ उनके आपसी रिश्ते खराब होते हैं बल्कि भावनात्मक रिश्ते भी किसी के साथ जुड़ नहीं पाते। ऐसे में लोगों को अपने सहकर्मियों के साथ सपरिवार पिकनिक या किसी टूर पर जाने की योजना बनानी चाहिए। इससे सब एक-दूसरे के नजदीक आते हैं। इतना ही नहीं, दो कर्मचारियों के बीच सामाजिक रिश्ते भी कायम होते हैं।

दफ्तर में खेल प्रतियोगिता
 
जिस तरह स्कूल में बच्चों की प्रतियोगिता होती है, ठीक उसी तरह दफ्तरों में हो रही तमाम प्रतियोगिताएं कर्मचारियों का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होती हैं। अब जरा धरमवीर को ही देखें, वह एक प्राइवेट फर्म में बतौर असिस्टेंट कार्यरत है। धरमवीर अपने बॉस से बात करते वक्त कभी हिचकिचाता या डरता नहीं है। दरअसल, उनके ऑफिस में हुए तमाम स्पोर्ट्‌स में वह अपने बॉस का प्रतिद्वंद्वी बनता है।


सिर्फ इतना ही नहीं, तैराकी और वॉलीबॉल जैसे खेलों में वह अपने बॉस को हरा भी चुका है। धरमवीर की जीत पर उसका बॉस न सिर्फ उसे मुबारकबाद देता है अपितु कई बार उसकी जीत की खुशी में पार्टी भी करता है। जब दो सहयोगियों के बीच दफ्तरी संबंध के अतिरिक्त अन्य कामों में हिस्सेदारी होने लगती है तो वे दोनों एक-दूसरे के उन पहलुओं को जानने लगते हैं, जो आमतौर पर कोई सगा-संबंधी भी नहीं जानता है। ऐसे में उसे समझने में आसानी होती है और तारतम्य बैठा पाने में सहयोग मिलता है।

कभी-कभी सिर्फ कर्मचारियों के लिए समय निकालें 

अगर किसी प्रायवेट फर्म में कार्यरत किसी उच्चाधिकारी से पूछा जाए कि वह छुट्टी के दिन क्या करता है, संभवत: उसका जवाब होगा कि वह अपने परिवार के साथ वक्त गुजारना पसंद करता है। लेकिन क्या कभी किसी ने अपने कर्मचारियों के साथ वीकेंड या फिर एक साथ छुट्टी लेकर घूमने की प्लानिंग की है? शायद नही। हालांकि परिवार के साथ वक्त गुजारना यानी तमाम परेशानियों से निजात पाना है लेकिन कई बार अपने सहकर्मियों विशेष तौर पर अपने प्रतिद्वंद्वी के साथ घूमने जाने का फैसला भी बुरा नहीं होता। इससे यदि दोनों के बीच कोई तकरार हो रही है या फिर कोई मिस अंडरस्टैंडिग के चलते पिछले कई दिनों से बात नहीं हो पा रही है तो साथ होने से तमाम गलतफहमियां दूर हो जाती है। यह न सिर्फ दो कर्मचारियों के लिए फायदेमंद है बल्कि दफ्तर को भी फायदा पहुंचाती है।