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Written By Author सुरेश डुग्गर
Last Updated : सोमवार, 12 नवंबर 2018 (13:14 IST)

12 फुट की दीवार, ऊपर कांटेदार तार, फिर भी दिल करे न किसी पर ऐतबार

12 फुट की दीवार, ऊपर कांटेदार तार, फिर भी दिल करे न किसी पर ऐतबार - LOC
एलओसी के इलाकों के। सब कुछ बदल गया है। आत्मघाती हमलों की आहट और फुसफुसाहट भी सैनिकों के कान खड़े कर देती है। सुरक्षा शिविरों और आर्मी गैरीसन के चारों ओर 12-12 फुट ऊंची कांक्रीट की दीवारों पर कम से कम 3 से 4 फुट की कांटेदार तार को देख लगता है कि वाकई खतरा बहुत ज्यादा है। खतरे का स्तर इतना है कि बावजूद तमाम सुरक्षा प्रबंधों और व्यवस्थाओं के, सैनिकों का दिल किसी पर ऐतबार करने को तैयार नहीं है।
 
 
यूं तो कई जिलों के एलओसी से सटे होने के कारण पहले ही सैनिक ठिकानों तक पहुंच आसान नहीं थी, मगर फिदायीनों ने अब परिस्थितियां ऐसी पैदा कर दी हैं कि अधिकृत अनुमति के बावजूद जिन सुरक्षा व्यवस्थाओं और औपचारिकताओं को पूरा करने के दौर से गुजरना पड़ता है, वे थका देने वाली हैं। आपको कर्कश आवाज का सामना भी करना पड़ सकता है। सारा दिन सिर खपाने वाले जवान की खीझ अगर किसी पर उतर जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
 
दिलोदिमाग पर फिदायीनों की दहशत, हमले का जवाब देने के लिए अंगुलियों का ट्रिगरों पर रहना कई बार यह महसूस करवाता है, जैसे वे उससे चिपक ही गई हों और अगर ऐसे में कोई कहना न माने तो जवान से आप नर्मदिली की उम्मीद नहीं रख सकते।
 
'क्या करें साहब। न मालूम किस दिशा और वेश में फिदायीन आ टपकें', पुंछ के एलओसी से सटे पिंडी इलाके के एक सुरक्षा मुख्यालय पर संतरी की ड्यूटी निभा रहे जवान का यह कहना था। वह एक बार अपने 2 साथियों को ऐसे हमले में गंवा चुका है। रात के अंधेरे में हुए हमले ने उसे भी घायल कर दिया था। लेकिन अब वह स्वस्थ तो है, मगर कोई चूक उसे स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि एक चूक का साफ अर्थ होगा अपनी तथा अपने साथियों की जान खतरे में डालना। उसके सुरक्षा मुख्यालय के चारों ओर भी अन्य सुरक्षा शिविरों की तरह 12 फुट ऊंची दीवार चढ़ चुकी है, साथ ही कांटेदार तार भी बिछ चुकी है। और जिन शिविरों के चारों ओर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, वहां के संतरी की मानसिक दशा को बयान करना आसान नहीं है। चारों ओर से खुले इलाके में फिदायीनों के खतरे से उन्हें प्रतिदिन जूझना पड़ता है, चाहे हमला हो या नहीं।
 
इतना जरूर है कि पिछले 15 सालों से इन सैनिकों पर अब दोहरा बोझ है। ऐसा सीमाओं पर सीजफायर के लागू होने के कारण है, जो नाममात्र का है। अब होता यूं है कि एक ओर सैनिकों को पाकिस्तानी गोलाबारी का जवाब देना पड़ता है, तो दूसरी ओर पाकपरस्त फिदायीनों से मुकाबला करना पड़ता है।
 
यह भी सच है कि पाक सेना की गोलीबारी उनके लिए प्रत्यक्ष दुश्मन के रूप में होती है। 'पाक सैनिक ठिकानों पर तो हम सामने से जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन फिदायीन अदृश्य दुश्मन होते हैं, जो न जाने किस दिशा से कब हमला कर दें', पुंछ ब्रिगेड के ब्रिगेड मेजर का कहना था।
 
नतीजतन स्थिति यह है एलओसी से सटे क्षेत्रों के साथ-साथ आतंकवादग्रस्त इलाकों में पाक सेना अब आतंक का पर्याय तो नहीं है लेकिन फिदायीन जरूर रातों की नींद और दिन का चैन बर्बाद किए हुए हैं। कई फिदायीनों को मार भी गिराया जा चुका है, परंतु सीजफायर के बावजूद एलओसी पर घुसपैठ को तारबंदी भी नहीं रोक पाई है। अत: खतरा वैसा ही है, जैसा सीजफायर के पहले था।
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