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जय-जयकार से बेखबर एक वीतरागी ऐसा भी...

जय-जयकार से बेखबर एक वीतरागी ऐसा भी... - Acharya Vidyasagar ji Maharaj, Dongargarh, Chhattisgarh
- शोभना जैन
 
डोंगरगढ़/छतीसगढ़। मद्धम-मद्धम मुस्कराती सी सुबह की किरणें चारों ओर मानो मुस्कराहट बिखेर रही है, एक दिव्य सा आभा मंडल पूरे वातावरण में...मंत्रोच्चार और पूजा विधान की ध्वनि लहरियों से वातावरण गूंज रहा है और धूप अगरबत्तियों की पवित्र सुगंध मद्धम हवा के झोंकों के साथ मिलकर माहौल को और भी सुगंधित पवित्रता से भर रही है।
 
श्वेत और केसरिया रंगों के पूजा वस्त्रों में श्रद्धालु मंत्रोच्चार के साथ पूजा कर रहे हैं ठेठ छतीसगढ़ी  की मीठी बोली में जैन विधि-विधान से पू्जा चल रही है, श्रद्धालु पूरे मनोयोग से पूजा-विधान में हिस्सा ले रहे हैं, पूजा और भजनों के बीच रह-रहकर वहां मौजूद श्रद्धालु 'आचार्य भगवन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर की जय-जयकार' के नारे लगा रहे हैं और अपने गुरु को पूजन द्रव्‍य समर्पित कर रहे हैं, लेकिन इस पूरे माहौल से बेखबर एक शीर्ष आसन पर एक वीतरागी संत नीचे गर्दन किए समाधिस्थ मुद्रा में चुपचाप बैठे हैं, बीच-बीच में उनके उंगलियों में कुछ स्पंदन सा होता है, पूजा या ध्यान तप... लेकिन मुख मुद्रा नीचे ही रहती है। ऐसा लग रहा है जैसे वे इस माहौल में रहते हुए भी समाधिस्थ हैं। एक बेखबर वीतरागी कुछ दूरी पर बैठे उनके संघस्थ मुनिगण भी साधनारत हैं। 
 
यह दृश्य है दार्शनिक, अप्रतिम तपस्वी जैन संत आचार्य विद्यासागर की दीक्षा के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर यहां मनाए जा रहे संयम स्वर्ण जयंती समारोह का, जहां देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं का जन सैलाब इस अद्भुत संत को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने आए हैं। देश-विदेश में इस अवसर पर 28 जून से 30 जून तक समारोह मनाए जा रहे हैं। मुख्य समारोह यहां हो रहा है, जहां अचार्य श्री ससंघ विराजमान हैं, पंडितजी छतीसगढ़ी बोली में 'मोर गुरु' (मेरे गुरु) को कभी नारियल, कभी नैवेद्य, कभी दीपक और कभी पूजन सामग्री समर्पित कर रहे हैं, इसी मिठास भरी बोली में पंडितजी कह रहे है 'मोर गुरु के संयम तप के दीपक ने पूरे विश्व  का अंधकार मिटा दियो।' पंडाल में बैठे एक श्रद्धालु बताते हैं, अद्भुत तप है महाराज का, बीस साल से चीनी, नमक, दूध सभी का त्याग, जैन दिगंबर संत परंपरा के अनुसार बेहद नपी-तुली आहारचर्या, जीवन पोषण के लिए आहार, तीन-चार घंटे के लिए शयन वह भी एक करवट, जैनचर्या के अनुसार दिगंबर संत सर्दी-गर्मी में सिर्फ नंगे तख्त पर सोते हैं, तभी तो इन्हें चलते-फिरते तीर्थ और आधुनिक युग के भगवान कहा जाता है।' 
 
एक और श्रद्धालु बता रहे हैं, सिर्फ तप ही नहीं अध्ययन भी गहन है इनका, अनेक महाकाव्य, ग्रंथों की रचनाएं की है इन्होंने। इनके महाकाव्य 'मूक माटी' पर बीस से अधिक छात्र पीएचडी कर चुके हैं, कुछ देर के प्रवचन के अलावा इनका पूरा समय अध्ययन, स्वाध्याय और साधना में बीतता है और साधना भी ऐसी कि घोर तपस्वी भी आश्चर्य में आ जाए। एक और श्रद्धालु बताते हैं, महराज द्वारा लिखित जापानी हायकु पद्धति के क्षणिकाए बहुत ही सारगर्भित होने के साथ बेहद लोकप्रिय है और समाज को संदेश देती है। वे सामाजिक सौहार्द का संदेश लिए कुछ हायकु उद्धत करते हैं, वे 'संघर्ष में भी चंदन सम, सदा सुगंध बनूं' या फिर 'गर्व गला लो, गले लगा लो' तेरी दो आंखें तेरी और हजार सतर्क हो जा या फिर जोड़ो- बेजोड़ जोड़ो...वे बताते हैं आचार्यश्री समाज सुधारक होने के साथ जीवदया, स्वदेशी आंदोलन के ध्येय का पालन करते हुए हथकरघा को प्रोत्साहन देने के लिए भी सक्रियता से जुड़े हैं। वे बताते हैं आचार्यश्री के संघ में उच्च शिक्षा प्राप्त, एमटेक, एमबीए जैसे प्रोफेशनल्स जुड़े हुए हैं, जो सांसारिकता छोड़ अध्यात्म की दुनिया में रच-बस गए हैं। 
 
तभी पंडाल में आसपास खड़े लोग तेजी से बैठने लगते हैं, पलक झपकते ही शांति छा जाती है। बात समझ में आ जाती है आचार्यश्री का प्रवचन शुरू हो गया... 'आध्‍यात्मिकता के साथ सामाजिक संदेश' अगर नागरिक कर्तव्यविमुख हो तो राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता है, श्रद्धालुओं को अपव्यय नहीं करने, असंयम से बचने के साथ व्यवस्था का पालन करने की सलाह। श्रद्धालु उनके प्रवचन का पालन कर रहे हैं व्यवस्था का उल्लंघन अपराध है, सभी शांत और दत्त चित्त होकर प्रवचन सुन रहे हैं फिर कुछ मुस्कराते हुए आचार्यश्री दुनियादारी से जुड़े अपने श्रद्धालुओं को जीएसटी की धार्मिक व्याख्या समझाते हैं। 'जैन धार्मिक ग्रंथों में जी का मतलब 'गोमतसार, एस का अर्थ समयसार और टी का अर्थ तत्वासार ग्रंथ। 
 
आचार्यश्री बता रहे हैं, आपका जीएसटी तो अब शुरू हो रहा है, लेकिन हमारा जीएसटी तो कभी का शुरू हो चुका है जहां अहिंसा परमो धर्म है। आचार्यश्री प्रवचन समाप्त कर रहे हैं। उद्घोषक की घोषणा के अनुसार, श्रद्धालु आपने आसन पर बैठे रहते हैं और अनुशासन का परिचय देते हुए चाह कर भी आचार्यश्री के पीछे नहीं दौड़ते हैं, महाराज अपने संघ के साथ पंक्तिबद्ध रूप में प्रवचन स्थल से धीरे-धीरे प्रस्थान कर रहे हैं। आचार्यश्री के नेतृत्व में धीरे-धीरे संघ के मुनिगण आगे बढ़ते जा रहे हैं। संभवतः एक यात्रा अनंत की ओर...
(वीएनआई)
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