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Written By WD

आज भी है श्रीराम के आदर्शों की प्रासंगिकता

आज भी है श्रीराम के आदर्शों की प्रासंगिकता - Ram Navmi 2015
-विलास जोशी 
 
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌॥
 
 
श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम-"प्रजातंत्र" है। उनकी कार्यप्रणाली को समझने से पहले 'श्रीराम' को समझना होगा। श्रीराम यानी संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता और पराक्रम। सच कहा जाए तो 'अध्यात्म गीता' का आरंभ श्रीराम जन्म से आरंभ होकर 'श्रीकृष्ण' रूप में पूर्ण होता है।


 

एक आम आदमी बनकर जीवनयापन करने के लिए जो 'तत्व', 'आदर्श', 'नियम' और धारणा जरूरी होती है उनके सामंजस्य का नाम श्रीराम है। 'एक गाय' की तरह 'सरल' और 'आदर्श' लेकर जिंदगी गुजारना यानी श्रीराम होना है।
 
एक 'मानव' को एक मानव बनकर श्रेष्ठतम होते आता है-इसका साक्षात उदाहरण यानी श्रीराम। 'नर' से 'नारायण' कैसे बना जाए यह उनके जीवन से सीखा जा सकता है। एक तरफ उनका 'आदर्श' हमारे मन को जीवन की ऊँचाइयों पर पहुँचाता है, वही दूसरी तरफ उनकी 'नैतिकता' मानव मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है। उनका हर एक कार्य हमारे विवेक को जगाता है और हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है।


आपस में भाईचारा, रिश्तों को सहेजने की कला और मानव कल्याण किस प्रकार किया जाता है। इसकी श्रेष्ठतम उदाहरण है उनकी संपूर्ण कार्यशैली। प्रत्येक युग की यह चाह रही है कि 'रामराज्य' स्थापित हो। महात्मा गाँधी ने भी हमारे देश में रामराज्य स्थापित करने की कल्पना इसीलिए की थी कि श्रीराम 'न्याय', 'समानता' और 'बंधुत्व' क भावना के कारण 'रामराज्य' के दाता हैं। गाँधीजी भी चाहते थे कि हमारे देश के नागरिक 'नैतिक', 'ईमानदार' और 'न्यायप्रिय' बनें। जिस देश के नागरिकों में ये गुण होंगे, वहाँ रामराज्य स्थापित होगा ही।
 

 
हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बेटे में श्रीराम के सब गुण हों। हर पत्नी चाहती है कि उसका पति श्रीराम की तरह 'आदर्शवान' और 'एक पत्नीधारी' ही हो। यही कारण है कि युग बीत जाने के बाद भी श्रीराम के आदर्शों को आज भी याद किया जाता है। सच तो यह है हम भारतीय लोगों के लिए श्रीराम के आदर्श कभी खत्म न होने वाली संपत्ति है। श्रीराम की कार्यप्रणाली कलयुग में भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि आज विश्वभर में 'आतंकी' शक्तियाँ सिर उठा रही हैं। बढ़ती अराजकता और आतंकी शक्तियों का नाश करने के सच्चे सामर्थ्य का नाम है-श्रीराम। श्रीराम ने आसुरी शक्तियों का नाश करके धर्म की रक्षा की थी। 
 
एक समय ऐसा भी था जब कोई आदमी रास्ते में मिलता तो वह दूसरे आदमी को 'राम-राम' बोलते हुए आगे बढ़ जाता था और आज भी कोई आदमी इस दुनिया से 'अंतिम विदाई' लेता है तो 'राम...राम' बोलकर ही। अपनी 'माँ' और 'मातृभूमि' के लिए जिसने 'सोने की लंका' जीतने के बाद एक क्षण में त्याग दी ऐसे श्रीराम का जीवन हम मानवों को प्रेरणा देता है कि-'लालच' और 'पराई संपत्ति' हमें कभी भी सुख नहीं देती। आम आदमी को झूठे मोह-माया के जाल में उलझने से रोकने में श्रीराम के 'आदर्श' और 'कार्यप्रणाली' आज भी हमारी सच्ची पथप्रदर्शक है।