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Written By WD

पारिवारिक खेल था इनके लिए हॉकी

- अरुण अर्णव

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2012 के लंदन ओलिम्पिक में भले ही भारत को पदक के दावेदार में शुमार किया जा रहा हो लेकिन यह भूलना भी बेमानी होगी कि ओलिम्पिक हॉकी के 84 साल के इतिहास 2008 का पिछला बीजिंग ओलिम्पिक भारतीय हॉकी के सीने पर एक काला दाग छोड़ गया जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकेगा।

यह पहला अवसर था जबकि 2008 के बीजिंग ओलिंम्पिक खेल में भारतीय हॉकी का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था। दरअसल किसी समय हॉकी में एकछत्र राज करने वाले भारत की हालत यह हो गई है कि उसे ओलिम्पिक के पात्रता मुकाबले खेलने पड़े और उसमें भी वह हार गया।

2008 के बीजिंग ओलिम्पिक में भले ही भारतीय हॉकी की उपस्थिति दर्ज नहीं हुई लेकिन भारत के गौरवशाली इतिहास (11 पदक) तो झुठलाया नहीं जा सकता। यहां पर लंदन ओलिम्पिक हॉकी मुकाबलों की चर्चा से बेहतर होगा कुछ दिलचस्प इतिहास को पुन: याद किया जाए।

ओलिम्पिक के अन्य खेल स्पर्धाओं की तरह हॉकी में भी खून के रिश्तों में बँधे अनेक खिलाड़ियों ने अपने खेल कौशल से दर्शकों को रोमांचित करने के साथ ही अपने परिवार को भी ओलिम्पिक खेलों की विशिष्ट बिरादरी में शामिल कराया है।

जर्मनी का केलर परिवार : जर्मनी के केलर परिवार की तीन पीढ़ियों ने ओलिम्पिक में हिस्सेदारी करके यश अर्जित किया। इस परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य इरविन केलर ने 1936 में बर्लिन ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया था तथा रजत पदक हासिल किया था।

उनके पुत्र कस्टैन ने 1972 में अपने देश के लिए पहला ओलिम्पिक स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने वाली जर्मनी टीम का प्रतिनिधित्व किया था। वे 1986 में चौथा स्थान पाने वाली जर्मन टीम के भी सदस्य थे।

इसके बाद उनके पुत्र आंद्रेज ने भी परिवार की इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाया और लगातार तीन ओलिम्पिक खेलों में शिरकत कर एक स्वर्ण (1992) व दो रजक पदक (1984 व 1988) जीते।

इस परिवार की गौरव गाथा यहीं खत्म नहीं होती। 1992 के बार्सिलोना ओलिम्पिक में आंद्रेज की पत्नी एंके वाइल्ड ने जर्मन टीम का प्रतिनिधित्व किया तथा रजत पदक हासिल किया। गत खेलों में उनकी बहन नताशा केलर ने भी शिरकत की तथा कांस्य पदक अर्जित किया।

पाकिस्तान का दर परिवार : पाकिस्तान के दर परिवार को भी ओलिम्पिक खेलों में महत्वपूर्ण कामयाबी मिली है। फुल बैक मुनीर दर ने तीन खेलों में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया तथा एक स्वर्ण (1960) व दो रजत पदक (1956 व 1968) जीते।

उनके दोनों भाई तनवीर दर 1968 में विजेता पाकिस्तान टीम के सदस्य थे। उन्होंने 1972 में रजत पदक जीतने वाली पाक टीम का भी प्रतिनिधित्व किया था। तनवीर को अपने समय का सबसे खतरनाक पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ माना जाता था।

बाद में 1984 के लॉस एंजिल्स खेलों में मुनीर के पुत्र तौकीर दर ने पाकिस्तान टीम का प्रतिनिधित्व किया तथा स्वर्णिम सफलता हासिल की। तौकीर भी अपने पिता तथा चाचा की तरह फुल बैक पोजीशन के सिद्धहस्त खिलाड़ी रहे।

उल्लेखनीय है कि उनके ससुर ख्वाजा जकाउद्दीन भी हॉकी के मंजे हुए फॉरवर्ड खिलाड़ी थे तथा उन्होंने दो ओलिम्पिक खेलों 1960 (स्वर्ण) व 1968 (रजत) में अपने हुनर का सुंदर इजहार कर वाहवाही लूटी थी।

हॉकी जादूगर ध्यानचंद का परिवार : स्व. ध्यानचंद के परिवार ने भी ओलिम्पिक खेलों में पारिवारिक श्रेष्ठता की कहानी लिखी है। स्वयं ध्यानचंद ने तीन खेलों में भारत की ओर से खेलते हुए स्वर्ण पदक अर्जित किए।

1936 में बर्लिन ओलिम्पिक में दादा भारत की ओर से खेलते हुए स्वर्ण पदक अर्जित किए। 1936 में बर्लिन ओलिम्पिक में दादा भारतीय टीम के कप्तान थे। उनको तीन लगातार खेलों के फाइनल मुकाबलों में गोल ठोकने का नायाब गौरव हासिल है।

उन्होंने 1928 में हॉलैंड के विरुद्ध दो, 1932 में अमेरिका के खिलाफ 8 तथा 1936 में जर्मनी के विरुद्ध तीन गोल जमाए थे। उनके छोटे भाई रूपसिंह ने दो ओलिम्पिक खेलों- 1932 व 1936 में शिरकत की। 1932 में अमेरिका के विरुद्ध उनके द्वारा ठोके गए 10 गोलों का कीर्तिमान आज भी अक्षुण्ण है। इन खेलों में उनके द्वारा कुल मिलाकर 11 गोल बनाए गए।

1972 के ओलिम्पिक खेलों में ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और कांस्य पदक प्राप्त किया। उनकी पौत्री नेहा सिंह ने भी हॉकी को अपनाया- यद्यपि उन्होंने अभी तक ओलिम्पिक खेलों में शिरकत नहीं की है लेकिन ओलिम्पिक अर्हता स्पर्धा में नेहा खेल चुकी हैं।

हॉलैंड का क्रूज परिवार : हॉलैंड को अपने पेनल्टी कॉर्नर्स की सटीकता से विश्व हॉकी में प्रतिष्ठित करने वाले थीज क्रूज का परिवार भी अपनी हॉकी श्रेष्ठता के लिए जाना जाता है।

1948 में कांस्य तथा 1952 में रजत पदक जीतने वाली टीम में आर. क्रूज की भागीदारी के साथ ही इस परिवार का ओलिम्पिक सफर प्रारंभ हुआ जो थीज क्रूज के दादा थे। थीज ने तीन ओलिम्पिक खेलों -1972, 1976 तथा 1984 में भाग लिया।

उनके दो भाइयों जॉन एवं हैंस को भी ओलिम्पिक टीम में स्थान पाने का सम्मान प्राप्त है। ये तीनों भाई 1984 में लॉस एंजिल्स में एक साथ खेलने उतरे थे।

पियर्स बंधु : ऑस्ट्रेलिया की ओर से पाँच पियर्स बंधुओं को ओलिम्पिकखेलों में शिरकत करने का निराला सम्मान प्राप्त है। मध्यप्रदेश के जबलपुर से ऑस्ट्रेलिया जा बसे इस परिवार के मेल पियर्स ने सर्वप्रथम 1956 में मेलबोर्न खेलों (पाँचवाँ स्थान) में शिरकत की थी। तत्पश्चात 1960 में गॉर्डन, एरिक एवं जूलियन ने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया।

इन खेलों में ऑस्ट्रेलिया को छठा स्थान प्राप्त हुआ। 1964 में एरिक एवं जूलियन ने कांस्य पदक जीता तथा 1968 में इन दोनों के साथ ही गॉर्डन ने भी रजत पदक अर्जित किया।

उल्लेखनीय है कि गॉर्डन एवं एरिक टीम में क्रमशः लेफ्टआउट तथा लेफ्टइन पोजीशन पर खेलते थे। एरिक पियर्स की पुत्री कॉलिन पियर्स ने 1984 के खेलों में भाग लिया तथा रजत पदक हासिल किया।

तीन भाई, तीनों ओलिंपियन : तीन भाइयों द्वारा ओलिम्पिक में शिरकत करने के भी कुछ दृष्टांत मौजूद हैं। स्पेन के तीन सांतोस डि'लामेड्रिड भाइयों- एडुआर्डो, रैफेल और एग्नेसियो ने 1960 के रोम ओलिम्पिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया तथा तीसरा स्थान प्राप्त किया।

स्पेन के ही तीन एस्कूट बंधुओं - जेवियर, जेम व एग्नेसियो ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, जब तीनों ही भाइयों ने एक साथ स्टिक संभालते हुए 1992 में घरेलू दर्शकों के समक्ष अपने खेल का समाँ बाँधा।

दो भाइयों के साथ-साथ अथवा पृथक-पृथक ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं। भारत की तरफ से ही ऐसे दृष्टांत अनेक बार देखने को मिले हैं। मशहूर ध्यानचंद-रूपसिंह की जोड़ी के अतिरिक्त बलवरसिंह-गुरुबख्शसिंह, वीजे पीटर-बीजे फिलिप्स, हरमीकसिंह-अजीतसिंह, हरविंदर सिंह-हरजिंदर सिंह तथा हरजिंदरसिंह तथा चरणजीत कुमार-गुणदीकुमार की जोड़ियाँ प्रमुख हैं।

पाकिस्तान की ओर से भी अनेक जोड़ियों ने अपने नाम का डंका बजाया है। मुनीर दर-तनवीर दर की जोड़ी के पश्चात समीउल्ला-कलीमुल्ला की जोड़ी ने अपने यश के झंडे गाड़े। मंजूर उल हसन-रशीद-उल हसन, अब्दुल हमीद हमीदी-अब्दुल रशीद, मुश्ताक अहमद-फरहत, शाहरुख-खुर्रम, महमूद उल हसन-अयजा महमूद तथा खुर्शीद आलम-अख्तर उल इस्लाम की गणना भी करिश्माई जोड़ियों में होती है।

अन्य जोड़ियाँ : अन्य देशों की ओर से खेलने उतरी जोड़ियों में न्यूजीलैंड की बैरी व सेल्विन मेस्टर (1976 स्वर्ण), जर्मनी की जॉन पीटर एवं स्टीफन ट्वेस (1992 स्वर्ण) तथा थॉमस एवं डर्क ब्रिंकमेन (1988 रजत), स्पेन की जुआन व जैम अर्वोस (1980 रजत ) और रूस की ब्लादीमिर एवं सर्गेई प्लेशकोव (1980 कांस्य) जोड़ियों ने काफी नाम कमाया।

हॉलैंड के लिए फ्रेंज व निको स्पिट्ज (1972 चौथा स्थान) तथा ऑस्ट्रेलिया के डेरन व जेसन डफ (1996 कांस्य दे भी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।

पिता के बाद पुत्र भी : अनेक पुत्रों ने अपने पिता के चरण चिन्हों का अनुसरण करते हुए ओलिम्पिक खेलों में शानदार प्रदर्शन किया है। ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार का जिक्र तो ऊपर हो चुका है। उन्हीं के साथी रहे अहमद शेर खान (1936 स्वर्ण) के पुत्र असलम शेर खान ने 1972 में तीसरा स्थान पाने वाली भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था।

इसके अतिरिक्त 1932 एवं 1936 के ओलिम्पिक खेले सैयद मोहम्मद जफर ने 1988 (पाँचवाँ स्थान) में पाकिस्तान की जर्सी धारण की थी। स्पेन के जुआन अमात (1980 रजत) की उपलब्धि को उनके पुत्र पाब्लो अमात ने 1996 में अटलांटा (रजत) में दोहराया। ज्ञातव्य है कि जुआन अमात ने 1980 के फाइनल में भारत के विरुद्ध तिकड़ी जमाकर मैच को रोमांचित बना दिया था। मुनीर दर और तौकीर दर (पाकिस्तान) की चर्चा ऊपर हो चुकी है।

और दो बहनें : 1980 में पहली बार जब महिला हॉकी ओलिम्पिक में शामिल किया गया था तब स्वर्ण पदक जीतने वाली जिम्बॉब्वे की टीम में दो बहनों सांद्रा चिक व सोनिया रॉबर्टसन ने करामाती खेल दिखाया था। 1988 में स्वर्णिम पताका फहराने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम में मिशेल केप्स तथा ली केप्स नाम की बहनें थीं।

उल्लेखनीय है कि मिशेल केप्स का विवाह ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी मॉर्क हेगर से हुआ है। अटलांटा में भी ऑस्ट्रेलिया की स्वर्ण पदक विजेता टीम में लिसा व केटरीना पॉवेल शामिल थी तो सिडनी खेलों में तीसरे स्थान पर रही डच टीम में मेनिके स्मेबर्स व हेनेके स्वर्मबर्स सम्मिलित थीं।