शनिवार, 27 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. एनआरआई
  4. »
  5. एनआरआई साहित्य
Written By WD

लघुकथा : नजरिया

- श्रीमती आशा मोर

लघुकथा : नजरिया -
GN


मां आपकी कॉफी ठंडी हो गई, दोबारा गरम कर दूं। मैंने मां के पास रखे भरे हुए मग की ओर इशारा करते हुए कहा।

नहीं बेटा, मेरा मन नहीं है।

मैंने सोचा, मां पहली बार हिन्दुस्तान से बाहर आई हैं इसलिए शायद जेटलैग के कारण मन नहीं होगा। शाम को मैंने उन्हें फिर कॉफी बनाकर दी तो उन्होंने फिर से मना कर दिया। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था, क्योंकि मुझे पता है मां को कॉफी बहुत पसंद है।


FILE


क्या हुआ, आपकी तबीयत ठीक नहीं है या डॉक्टर ने मना किया है। मैंने पूछा।

नहीं कोई बात नहीं बेटा, बस मन नहीं है।
लेकिन उनकी भाव-भंगिमा देखकर लग रहा था कि कोई बात अवश्य है। मैंने कहा, यदि आपको चाय का मन हो तो चाय बना दूं। पर मां ने चाय के लिए भी मना कर दिया।

थोड़ी देर बाद मां ने सोचा होगा तीन महीने रहना है बिना बताए कैसे काम चलेगा तो स्वयं ही मुझे पास बुलाकर बोलीं।

सच बताऊं तो बात यह है बेटा कि सुबह मैंने देखा था तुमने इन्हीं मगों में से किसी एक मग में अपनी कामवाली को चाय दी थी। मैं तो हिन्दुस्तान में अपनी कामवाली का चाय का कप अलग रखती हूं।

मुझ मन ही मन हंसी भी आ रही थी और झुंझलाहट भी। लेकिन मां के साथ तर्क-वितर्क करने की अपेक्षा मैंने बाजार से नए मग लाना ज्यादा उचित समझा। शाम को ही मैं बाजार जाकर अलग-अलग रंग के एक जैसे मग खरीदकर लाई। जिससे कामवाली को अलग रंग का मग दिया जा सके और उसे किसी भेदभाव का एहसास भी न हो।