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प्रवासी कहानी : ग्रैंड मां

प्रवासी कहानी : ग्रैंड मां -
- दिव्या माथुर

GN


शिव के पिता मुझसे यह कहकर स्वर्ग सिधारे थे कि मैं बेटे-बहुओं से मित्रवत व्यवहार करूं और जहां तक हो सके, उनकी बातों और कामों में दखल न दूं इसलिए मैं चुप ही रहती हूं

मेरे कुछ न बोलने की वजह से बात यहां तक आ पहुंची कि उन्होंने दीवारों पर लगे महंगे तैलचित्रों के स्थान पर आधुनिक और सस्ते चित्र टांग दिए, क्रिस्टल की क्रॉकरी कोलकी में चढ़ा दी और उसकी जगह रसोई में भारी-भरकम रंग-बिरंगे मग्स, प्लेटें और डोंगे रख सजा दिए जिन्हें उठाने-धरने में मेरे हाथ दुखते हैं। घर न हो गया, आईकिया हो गया; कुछ कहूंगी तो कलह होगी इसलिए मैं चुप ही रहती हूं।

मैं जानती हूं कि मेरा जमाना बीत चुका, विशेषत: शिव के पिता की मौत के बाद, पर किसी बात की कोई हद भी तो होती होगी? लगता है कि जैसे आशिमा तुल गई है कि मेरा किया-धरा सब उलट-पलट दे। जब तक मैं जिंदा हूं, यह घर मेरा है, पर वह इसे अपने हिसाब से चलाना चाहती है। वैसे, मुझमें अब इतनी शक्ति भी नहीं बची कि इनकी आगे से आगे करती रहूं, घर और बाग की देखभाल करूं या करवाऊं, रसोई संभालूं और इनके बच्चों की रखवाली करती फिरूं।


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मम, आपको क्या जरूरत है कुछ भी करने की? आप तो अब लाइफ एन्जॉय कीजिए, शिव कहता है। मैं अगर बैक-सीट पर बैठ जाऊं न तो एक हफ्ते में घर भिनकने लगेगा और बाग जंगल हो जाएगा। सेब और नाशपाती के पेड़ों को देखो, कैसे बेदम लग रहे हैं? समय पर खाद डाल दी जाती तो ये आज फलों से लदे होते। शिव से कहते-कहते थक गई, पर वह खाद खरीदकर नहीं लाया। अब क्या मेरे दिन बचे हैं गार्डन सेंटर से खाद ढो-ढोकर लाने के? कुछ कह दूंगी तो कलह होगी, इसलिए मैं चुप ही रहती हूं।

शिव और आशिमा दोनों तय कर चुके हैं कि मैं सठिया गई हूं। मेरे तर्कों पर विचार करना तो दूर, वे उन्हें सुनने के लिए भी तैयार नहीं। क्लेश करने का क्या फायदा? यह जानते हुए भी कि वे गलत हैं, मैं चुप रह जाती हूं।

मम, शॉपिंग तो आप हम पर छोड़ दीजिए, बेकार के सामान से ट्रॉली भर लाएंगी, पैसा फालतू हैं तो हर महीने हमारे अकाउंट में डाल दिया कीजिए। उनकी हर बात पैसे पर आकर खत्म होती है। वे मुझे अब सुपर-मार्केट्स में जाने से भी रोकते हैं कि मुझे खरीदारी की कोई समझ नहीं है।

मम, कम से कम कैलोरीज तो देख लिया कीजिए, इस डेजर्ट में कम से कम एक हजार कैलोरीज तो होंगी ही।

ओ माई गॉड! जरा इस ऑइल को देखिए, किसी को आत्महत्या करनी हो तो इसे पी ले, शिव के मुंह से वही निकलता है, जो आशिमा ने उसमें भरा होता है। यही क्या कम है कि वह मुझसे सीधे जुबान नहीं लड़ाती। वैसे, जुबान लड़ाकर वह मेरा कर भी क्या लेगी? मैं उसे जवाब दूंगी तब न; वैसे भी मैं चुप ही रहती हूं।

जीवनभर जैसे खाया-पिया, उसी हिसाब से मैं अब भी सब्जी-भाजी और नाश्ते-पानी का इंतजाम करती हूं। सिवा पूरी-कचोरी और समोसों के इंडियन खाने में ऐसा है क्या, जो नुकसानदायक हो? कभी-कभी तला हुआ भोजन करने से कोई पहाड़ तो टूट नहीं पड़ेगा। आजकल जिसे देखो, उसके हाथ-पैर दुख रहे हैं पर मुझे क्या, मैं तो चुप ही रहती हूं।


रोज-रोज जो तुम लोग रेस्टोरेंट्स में खाकर आते हो, वहां तो जैसे कैलोरीज का बहुत ध्यान रखा जाता है, कहीं मैं यह कह दूं तो सुनने को मिलेगा कि मुझे उन दोनों का बाहर घूमना-फिरना और खाना-पीना पसंद नहीं; इसलिए मैं चुप ही रहती हूं।

तुमने देखा था, शिव, बेसन की कलेजी में कितना तेल तैर रहा था? तभी इतने इंडियंस हार्ट-फेल से मरते हैं, शी इज सो इग्नोरेंट, रात को मैंने आशिमा को कहते हुए सुना। शिव ने कलेजी खूब मजे ले-लेकर खाई थी, तब तो उसके मुंह से एक शब्द तक नहीं फूटा था। आश‍िमा का बस चले तो वह मुझे चौके में ही न घुसने दे। कहीं बच्चे भूल ही न जाएं हमारे परिवार के खास-खास पकवान। ऐसा बेस्वाद भोजन पकाती है आशिमा कि मुझे रोना आता है, पर शिव की मजाल नहीं कि चूं भी कर जाए।

एक जमाना था कि जब घर में उनकी पसंद का यदि कुछ नहीं पकता था तो बाप-बेटे चुपचाप पिज्जा या केन्टकी-चिकन मंगाकर खा लेते थे। आज भी, जब आशिमा और शिव घर में नहीं होते, तो मैं और मेरा चटोरा पोता वारिज जब-तब यही करते हैं।


मेरे लिए भी कुछ बचा लेतीं, मम, लौटकर जब शिव खाने के खाली डिब्बे देखता है तो उसके मुंह में पानी भर आता है।

नहीं भई, तुम तो बस घास-फूस खाओ, तुम्हें हमारा ये चटपटा खाना कैसे हजम होगा? मन तो करता कि ताना मार दूं, पर मैं मन ही मन मुस्कुराकर चुप रहती हूं।

तुम दोनों को मौका मिलना चाहिए रब्बिश खाने का। इंडियन फूड इज सो अन्हैल्दी, यू नो, मुझसे आंखें चुराते हुए वारिज और शिव को गुस्से में घूरते हुए आशिमा कहती है।

इंडियन फूड खिला-पिलाकर ही मैंने बेटों को पाला-पोसा और दोनों खासे तंदुरुस्त हैं। क्या बुराई है इंडियन फूड में? रोज पास्ता, खुस्खुश और सलाद खा-खाकर बोर नहीं हो जाते ये लोग? अब जितना भी जीवन बचा है, मैं घास-फूस खाकर नहीं बिताने वाली। नहीं खाना हो तो जाओ भाड़ में, बस मुझे मत टोको। जब वे फीकी चाय पीते हैं या फिर बिना नमक-मिर्च डाले उबली हुई सब्जियां खाते हैं तो क्या मैं उन्हें कभी टोकती हूं?

आज मेरा वारिज क्या खाएगा?

दादी, आलू का परांठे, मक्खन मार के, मुझे तसल्ली है कि मेरा पोता बिलकुल अपने दादा पर गया है किंतु फैशन की मारी पोती अर्शी ने भूखा रह-रहकर अपना साइज जीरो कर लिया है; बदन में कोई चढ़ाव-उतराव नहीं; चेहरे पर कोई रौनक नहीं? कौन पसंद करेगा ऐसी रूखी-सूखी लड़की को? मां-बेटी जब देखो तब उठकर जिम चली जाती हैं और घंटों बाद लौटती हैं। बच्ची को एनोरैक्सियां-पैकसिया हो गया तो? पर इस घर में मेरी कौन सुनता है?


ग्रैंड मां, डोंट वेट फॉर अस; मैं और मम्मी जिम से सूप और सैलेड खाकर आएंगे, हफ्ते में दो या तीन बार अर्शी मुझे फोन पर बताती है। मेरी तो यह समझ में नहीं आता कि इन मां-बेटी का पेट घास-फूस से भर कैसे जाता है? जब तक एक रोटी न खा लूं, मुझे तो नींद ही नहीं आती। उनकी गैर-हाजिरी में वारिज, शिव और मैं खूब मजे से खाना खाते हैं। वारिज डेजर्ट लेता है तो शिव और मैं बेलीज डालकर कॉफी पीते हुए पांव फैलाकर टीवी देखते हैं।

जैसे ही आशिमा और अर्शी लौटकर आती हैं, बिना किसी वोट ऑफ थैंक्स के हमारी बैठक बर्खास्त हो जाती है। वारिज और शिव दोनों उठकर अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं और मैं पैर समेट सोफे पर तमीज से बैठ जाती हूं।

वार‍िज और मम्मी दोनों के लिए ही इतना टीवी देखना अच्छा नहीं है, शिव को घूरते हुए आशिमा कहती हैं।

आशिमा इज राइम, मम, शिव भी कहता है, जैसे उन्हें मेरी आंखों की बहुत परवाह हो। असल में वे दोनों चाहते हैं कि मैं नेशनल हेल्थ सर्विस के किसी अस्पताल में जाकर अपनी आंखों का ऑपरेशन करवा लूं। क्या मेरी मति मारी गई है? क्या मैं जानती नहीं ‍कि सरकारी अस्पतालों में इन्फेक्शन से कितने लोगों की जानें जाती हैं? मैं तो दिल्ली जाकर ऑपरेशन करवाऊंगी। बड़ा बेटा हरि और बहू आरती दोनों आंखों के डॉक्टर हैं, वे किस दिन काम आएंगे?

मम, भैया-भाभी को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है, वे क्या कर पाएंगे आपकी देखभाल में? वैसे भी इंडिया में डॉक्टरों ने लूट मचा रखी है, शिव मुझे समझाता रहता है।

रिचा दीदी को एक छोटी-सी प्रॉब्लम थी। दिल्ली में वह एक डॉक्टर से दूसरे, दूसरे से तीसरे डॉक्टर्स के बीच चक्कर लगाती रही, लाखों के टेस्ट्स हुए। आखिर में रामदेवजी के एक चूर्ण से ही ठीक हो गई, आशिमा बोली।


आशिमा का बस चले तो मेरी आंख का ऑपरेशन भी बाबा रामदेव से करवा लें।

मम, इंडिया में डॉक्टरों ने रैकेट्स बना रखे हैं, एक मरीज आया नहीं उनके चंगुल में... शिव शुरू हो गया, न जाने क्यों वह डॉक्टर्स के इतना खिलाफ रहता है? उसके पापा भी डॉक्टर थे। शायद इसी बात से कुंठित हो कि पिता और भाई की तरह वह अधिक पढ़-लिख नहीं पाया।

मम यू डोंट अंडरस्टैंड, जब कभी मैंने उसकी इस उलझन के बारे में बात करनी चाही है, वह मुझे यही कहकर चुप कर देता है कि दुनिया में सभी तो डॉक्टर्स और इंजीनियर्स नहीं बन जाते? वह क्या कम कमा रहा है?

एनीवे, केटारेक्ट एक छोटा-सा ऑपरेशन है, मन, इसमें भैया-भाभी को परेशान करने की क्या जरूरत है?

शिव, मुझे कोई जल्दी नहीं है। वैसे भी मोतिया पक जाने पर ही ऑपरेशन करवाना चाहिए।

क्या मम? आप भी कैसी दकियानूसी बातें करती हैं? यह ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी है, केटारेक्ट का ऑपरेशन कभी भी करवाया जा सकता है।

अभी मेरा काम चल रहा है, इसके पहले कि वे दोनों मेरा दिमाग कुछ और चाटते, मैं वहां से उठ गई। असल बात तो यह है कि वे दोनों नहीं चाहते कि मैं दिल्ली जाऊं। यह ठीक है कि हर‍ि और आरती बहुत व्यस्त रहते हैं, किंतु मेरा भी मन करता है कि मैं उनके और पोता-पोती‍ विदु और वेदा के साथ भी कुछ समय गुजारूं।

हम तो इनके दुश्मन ठहरे, देख लेना वह जाएंगी भैया-भाभी के पास, शयन कक्ष में से आशिमा की आवाज सुनाई दी।

तो जाने दो न, अच्‍छा ही है, पैसे बचेंगे।

पैसे क्या बचेंगे, लेकर जाएंगी पूरी ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट भैया-भाभी और उनके बच्चों के लिए।

प्राइवेट ऑपरेशन करवाने से तो सस्ते ही में छूटेंगे।
उनकी अंटी बस हमारे लिए ही ढीली नहीं
होती, आशिमा के मुंह से निकल ही गई उसके मन की बात। मुझे बहुत गुस्सा आया, कितना खर्च करती हूं मैं इन दोनों और वारिज-अर्शी पर।


डायना की सिक्सटीन्‍थ बर्थडे पर उसकी ग्रैंड-मां ने उसे फरारी दिलाई है, शिव और आशिमा दोनों मुझे दिन-रात अमीर पड़ोसियों के उदाहरण देते रहते हैं। उन्हीं के भड़काने पर मैंने न चाहते हुए भी वारिज को उसके अठारहवें जन्मदिन पर एक नई टोयोटा-यारिस खरीदकर दे दी, पर तब से मैं चैन की नींद नहीं सोई।

कार दुर्घटनाओं में नौजवानों की मौतें रोज सुनने में आती हैं, पर फिर भी मां-बाप एहतियात बरतने को तैयार नहीं। चुप रहने के सिवा मेरे पास चारा ही क्या है?

थैंक यू, दादी, फरारी के मुकाबले उन्हें टोयोटा एक थर्ड-क्लास कार लग रही थी। मुश्किल से एक मर्गिल्ला-सा थैंक मिला था मुझे दस हजार पौंड के बदले में। खैर, वारिज बुद्धिमान है, डॉक्टर बनेगा। बड़े-बूढ़ों को और क्या चाहिए, सिवा इसके कि उनकी पीढ़ी उनका नाम रोशन करे।

वारिज को कार देने के बाद अर्शी की फरमाइशें आसमान छूने लगीं। मैंने उसे यह कहकर टाल दिया कि मैं उसकी शादी के लिए पैसा इकट्ठा कर रही हूं। इस साल वारिज पढ़ने के लिए लीड जा रहा है और हॉस्टल खर्च इतना ज्यादा है कि उसमें एक स्टूडियो फ्लैट की मॉर्गेज दी जा सकती है।

पीटर की ग्रैंड-मां ने लीड में एक फ्लैट खरीदने के लिए उसे पूरी की पूरी डाउन-पेमेंट दे दी। हॉस्टल का खर्च बचा और पीटर अभी से एक फ्लैट का मालिक बन गया, आशिमा मुझे सुनाने के लिए शिव को बता रही थी। हर महीने मॉर्गेज भी शायद उसकी दादी ही भरेगी, मैंने सोचा।


आजकल के बच्चे दादा-दादी और नाना-नानी से क्या-क्या अपेक्षाएं रखते हैं! बदले में वे उन्हें बूढ़ा-घर छोड़ आते हैं और कभी आकर उनका हाल तक नहीं पूछते। मैं ऐसी भी बेवकूफ नहीं हूं। बीमार हो गई तो तो कोई काम नहीं आएगा, समय ही किसको धरा है? मैं तो इंडिया चली जाऊंगी, एक फुल-टाइम नर्स रख लूंगी; अंटी में बस पैसा होना चाहिए।

दादी, जल्दी से फेसबुक पर देखिए मैंने आपकी भेजी हुई ड्रेस पहन रखी है, सुबह-सुबह वेदा का फोन आया तो दिल खुश हो गया; बहुत ही प्यारी बच्ची है, भगवान उसे लंबी उम्र दे।

तू उठ गया वारिज? जल्दी से फेसबुक खोल, वेदा ने अपनी बर्थडे फोटोज लगाई हैं।

वन मिनट, ग्रैंड मां, एक मिनट, एक मिनट कहते हुए वारिज को पूरा एक घंटा हो चुका था।

दादी, फेसबुक को रहने दीजिए, मैंने फोटोज आपको टेक्स्ट कर दी हैं, अपने मोबाइल फोन पर देख लीजिए, वेदा ने कहा।

अरे मुझे कहां आता है ये सब?

दादी, इसमें न आने की क्या बात है? बहुत सिंपल है, टेक्स्ट-बॉक्स में जाकर मैसेज सलेक्ट कीजिए, बस।

अरे वाह, वेदा, तू तो बिलकुल मेम लग रही है, मेरी उम्र तुझे लग जाए, एक तो टेक्स्ट-बॉक्स खोलने की खुशी और उस पर वेदा को नई ड्रेस में देखने का मौका, मैं बच्चों की तरह उछल पड़ी।

क्या दादी, मुझे नहीं चाहिए आपकी उमर-वुमर। आप तो हमें यह बताइए कि आप कब आ रही हैं दिल्ली?

कल विदु भी यही पूछ रहा था, थोड़ी गर्मी कम हो जाए..., मुझसे दिल्ली की गर्मी सहन नहीं होती, ऐसी अनौरियां निकलती हैं बदन पर के।

विदु ने पापा की नाक में दम कर रखा था कि हमारे कमरे में खस की टटि्टयां लगवा दें, आज ही लगी हैं...'

ऐसी अच्छी खुशबू आ रही है, दादी, अब आपको अनौरियां नहीं निकलेंगी, विंदु की आवाज सुनाई दी। मन हुआ कि बस उड़कर वहां पहुंच जाऊं। तभी ऊपर से आशिमा के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी।

ग्रैंड-मां कब से कह रही हैं, रैज्जी, कि उनके लिए फेसबुक खोल दे, पर नहीं लाट साहब को गेम्स खेलने से फुर्सत मिले तब न।

वाट्स योर प्रॉब्लम? जवाब में वारिज गुर्राया।

कोई बात नहीं, आशिमा, वेदा ने मुझे टेक्स्ट खोलना सिखा दिया है, अब मैं तुम लोगों को परेशान नहीं करूंगी, इसके पहले कि घर में कोहराम मचता, मैंने कह दिया लेकिन मेरी यह बात भी आशिमा को नागवार गुजरी।

आप ही ने रैज्जी को बिगाड़ रखा है, हमारी तो ये एक नहीं सुनता।

तो यह मम की ही कौन सी सुनता है? आशिमा को गुस्साते देख शिव भी वहां दौड़ा चला आया। उन दोनों की बातें सुनकर मैं बिलकुल भी हैरान नहीं हुई। जब कभी वेदा या विदु मुझसे घुल-मिलकर बातें करते हैं, कुछ न कुछ ऐसा ही होता है।

कम डाउन वारिज, आज तू मुझे फेसबुक खोलना सिखा दे, मैंने वारिज को आवाज दी तो उसने अपनी खैर इसी में समझी कि वह उसी वक्त नीचे चला आता।

पोता-पोती से संपर्क बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि मैं ये 'टेक्निकल स्टफ' जल्दी से जल्दी सीख लूं। वारिज भी जब नहीं सुनता तो नहीं सुनता। किंतु जब वह मूड में होता है तो वह घंटों बैठा मुझे समझाता रहता है।

ओके दादी, फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट, लैट अस बाई यू ए लैपटॉप।

क्या? कितने ‍दिन रह गए हैं मेरे जीने के, जो मैं एक लैपटॉप अपनी जान को और खरीद लूं।


ग्रैंड मां, आई प्रॉमिस यू, यौर लाइफ विल इम्प्रूव वन हंड्रेड परसेंट।

हाऊ एबाउट आई गेट इट फ्री, एक आंख दबाते हुए वारिज ने पूछा तो मेरी लार टपकने लगी। फ्री में कोई चीज मिल जाए तो क्या बुरा है, अगर टूट-फूट भी गया तो मुझे बुरा नहीं लगेगा।

कुछ ही देर में आशिमा की आवाज सुनाई दी; वारिज ने उसे न जाने क्या पट्टी पढ़ाई थी।

शिव हनी, यू मस्ट बाई रैज्जी ए न्यू लैपटॉप।

वाट? अभी एक साल भी तो नहीं हुआ, जब मैंने उसे सोनी खरीदी..., शिव भुनभुनाया।

इट्स औब्सोलीट, डॉर्लिंग, उसे ऐपल दिला दो। मेडिसिन करना क्या आसान है? बाकी के स्टूडेंट्स से पिछड़ जाएगा तो क्या अच्छा लगेगा?

... और अगली ही शाम को वारिज का सोनी लैप-टॉप पूरे साजो-सामान के साथ मेरी मेज पर सजा था। लैपटॉप्स मिलने का जश्न हम दोनों ने सोफा मैं लैबनीज भोजन खाकर मनाया।

होस्टल जाने में टेन डेज हैं, ग्रैंड मां, पे अटेंशन, कंसन्ट्रेट, वारिज ने मुझे कम्प्यूटर-साक्षर बनाने के लिए अपनी जान लड़ा दी, किंतु दस दिनों के क्रेश-कोर्स के बाद भी मैं लड़खड़ा रही थी हालांकि अपनी डायरी में मैंने हर बात बड़ी तफसील के साथ लिख ली थी। लीड जाने से पहले उसने वेदा और विदु को मेरे पीछे लगा दिया था; वे मुझे धड़ाधड़ ई-मेल्स भेजने लगे।

दादी, आपने मेरा ई-मेल देखा? विदु ने पूछा।

क्या लिखा है मेरे प्यारे विदु ने?

ओ हो, हम स्कूल से भी वापस आ गए और आपने अभी तक मेरी ई-मेल भी नहीं खोली, कुट्टी दादी, और फोन खटाक से बंद।

दादी, मैंने तो रात के बारह बजे मम्मी-पापा से छिपाकर आपको पिकनिक की फोटोज भेजी थीं और आपने...

वेदा, मैं बस खोलने ही वाली थी... फोन काट दिया गया।

गिरते-पड़ते डायरी खोली, लैपटॉप पर से मेजपोश हटाया, प्लग को सॉकेट में घुसाया, राम का नाम लेते हुए मैंने वारिज के निर्देशानुसार और बिना किसी बाहरी सहायता के डरते-डरते स्विच ऑन कर दिया। मुझे पूरी उम्मीद थी कि लैपटॉप से चिंगारियां निकलेंगी इसलिए अपनी आंखें बंद करते हुए मैंने कानों पर हाथ रख लिए थे। वारिज ने कहा भी था मुझे प्लग निकालने अथवा लैपटॉप को ढंकने-ढंकाने की जरूरत नहीं है, पर बच्चों को इतनी महंगी चीजों की कद्र कहां?

इसी समय मोबाइल बजा, मैं उछल गई, दो-दो गैजेट्स संभालना क्या कोई खेल था?

दादी, इज इट ऑन? विंदु ने गंभीर आवाज में पूछा।

स्क्रीन पर कुछ तो हो रहा है, मैंने घबराते हुए बताया।

दादी, क्या हो रहा है...

...वो वो... पासवर्ड मांग रहा है...

पासवर्ड तो याद है न आपको, दादी?

वीआईडीयू के बाद...

ओफो दादी, अपना पासवर्ड किसी को नहीं बताइएगा; टाइप ‍कीजिए।

ओह, हां, फोन को कान पर लगाए मैंने एक उंगली से पासवर्ड टाइप किया और 'ओह माई गॉड!'

इनबॉक्स में तीन ई-मेल्स थीं, वारिज, वेदा और विदु की। मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे, मैं अवाक्-सी स्क्रीन को घूर रही थी।

कैन यू सी अवर मेल्स, दादी?

येस्स, आई कैन, मेरे क्लिक करते ही फोटोज़ डाउनलोड होने लगी, 'मंगल भवन अमंगल हारी', आदतन मेरे मुंह से निकल गया और तभी उन दोनों की फोटोज स्क्रीन पर उभर आई।

रिप्लाई सिलेक्ट कीजिए और हमें अभी जवाब दी‍जिए, खुशी में भरकर विदु और वेदा चिल्लाए। उसी वक्त घर का फोन घनघनाया।

हैव यू सीन माई ई-मेल? कुड यू ओपन द लैपटॉप, ग्रैंड मां? दूसरे हाथ से मैंने लैंडलाइन का चोगा उठाया तो वारिज की आवाज सुनाई दी। मेरे दोनों हाथों में फोन थे और सामने स्क्रीन; मैं उत्तेजना में खड़ी हो गई; अब मुझे क्या करना चाहिए।

दादी, नाऊ टेक योर पॉइंटर ऑन रिप्लाई आइकन एंड क्लिक, दूसरे कान में वेदा और विदु की आवाज सुनाई दी।

एक-एक कर के बोलो, मुझे कन्फ्यूज मत करो, मैं भी चिल्लाई।

वाट्स हैप्पनिंग हियर? आशिमा और शिव दरवाजे में खड़े हैरानी और परेशानी से मुझे देख रहे थे। मेरे दोनों कानों पर फोन थे और सामने स्क्रीन पर चहकते हुए तीन चेहरे।

सौजन्य से - गर्भनाल