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Written By Author डॉ. मुनीश रायजादा

नस्लवाद से जूझता अमेरिका

नस्लवाद से जूझता अमेरिका - नस्लवाद से जूझता अमेरिका
आखिरकार 24 नवंबर को फर्गुसन गोलीकांड का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया। इससे लगभग साढ़े 3 माह पहले 9 अगस्त को फर्गुसन शहर में एक निहत्थे अफ्रीकी-अमेरिकी माइकल ब्राउन नाम के किशोर को एक श्वेत पुलिस अफसर ने गोली मार दी थी।

12 जजों की संयुक्त पीठ (ग्रांड ज्यूरी) ने आरोपी पुलिस अफसर डेरेन विल्सन को निर्दोष माना व उन पर पर किसी भी प्रकार का मुकदमा न चलाए जाने का निर्णय लिया। प्रतिक्रियास्वरूप लोगों (ज्यादातर अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय) ने व्हाइट हाउस समेत देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए।
 
फैसले से क्षुब्ध व आक्रोशित लोगों के प्रदर्शन ने फर्गुसन पुलिस मुख्यालय के सामने हिंसक रूप ले लिया। भीड़ ने पुलिस के वाहन जला दिए व पत्थरों, ईंटों, बैटरियों से पुलिस मुख्यालय पर हमला कर दिया।
 
मृतक ब्राउन के परिवार ने लोगों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील की थी। इसके अलावा राष्ट्रपति ओबामा ने भी एक आधिकारिक वक्तव्य जारी कर जनता से हिंसा रोकने का अनुरोध किया था, परंतु फिलहाल ये सारी कोशिशें बेकार नजर आ रही हैं व फर्गुसन में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। मिजुरी प्रांत में स्थित फर्गुसन सेंट लुईस शहर का उत्तरी उपनगर है।
 
21,000 की आबादी वाले इस शहर में लगभग दो-तिहाई जनसंख्या अश्वेत या अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों की है, ऐसे में इस फैसले के प्रति लोगों की तीखी प्रतिक्रिया अपेक्षित ही था। लोगों के गुस्से का सबसे बड़ा कारण यह था कि ज्यूरी ने विल्सन को मानव वध की छोटी से छोटी धारा में भी आरोपी मानने से इंकार कर दिया। ज्यूरी के अनुसार- 'ऑफिसर विल्सन के खिलाफ किसी भी प्रकार के आरोप में मुकदमा चलाने योग्य कारण उपलब्ध नहीं हैं।' 
 
जैसे-जैसे घटना से जुड़े तथ्य सामने आ रहे हैं, प्रथम दृष्टि में यह मामला नस्लभेद का नहीं लगता, परंतु देशभर में फैले दंगों ने नस्लीय रूप अवश्य ले लिया है। अमेरिका जैसे सख्त कानून वाले देश में इस प्रकार कुछ ही समय में हिंसा, आगजनी व लूटमार का फैल जाना निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।
 
 

9 अगस्त की इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद फर्गुसन में तनाव फैल गया तथा 24 नवंबर की तारीख तक वहां आए दिन प्रोटेस्ट लगा रहा और फैसले के दिन तो मानो लोगों के सब्र का बांध ही टूट गया था। घटना को लेकर जनता के बीच तरह-तरह की बातें व अफवाहें फैलीं जिसने ब्राउन परिवार के समर्थकों के गुस्से ने आग में घी डालने का कार्य किया।
 
ज्यूरी के फैसले के मुताबिक गोली मारे जाने से कुछ ही मिनटों पहले ही ब्राउन ने एक स्टोर से कुछ सिगारें चुराई थीं। हालांकि ऑफिसर विल्सन ने अपने बयान में गोलीबारी के समय चोरी के बारे में जानकारी होने से बार-बार इंकार किया था। 
 
उनके अनुसार जब वे अपनी गश्ती कार (पेट्रोलिंग कार) में बैठे थे तो उन्होंने ब्राउन व उसके एक मित्र को सड़क पर जाते हुए देखा। उन्होंने उन दोनों को रुकने व सड़क के किनारे एक तरफ आने को कहा। इस पर उत्तेजित होकर ब्राउन ने उन्हें गालियां देना शुरू कर दिया व उन्हें मुक्का मारा। इस समय तक वे कार में ही थे। 
 
इसी हाथापाई में विल्सन की सर्विस गन से कुछ गोलियां चल गईं जिनमें से एक ब्राउन की बांह में लगी। इसके बाद ब्राउन व उसका दोस्त डेरेन जॉन्सन कार से दूर भागने लगे। चूंकि दोनों लड़के अलग-अलग दिशाओं में भाग रहे थे अतः विल्सन ने सिर्फ ब्राउन का पीछा करने का निश्चय किया।
 
यहां से आगे की कहानी के दोनों पक्ष अपने-अपने संस्करण प्रस्तुत कर रहे हैं। पुलिस अधिकारी विल्सन के अनुसार ब्राउन उनकी ओर मुड़ा व उन्हें घूरते हुए उसने अपना हाथ अपनी कमीज के नीचे डाला, जैसे कि वह कोई हथियार निकालने का प्रयत्न कर रहा हो।
 
ऐसे में उन्हें लगा कि ब्राउन उन पर अब प्राणघातक हमला करने वाला है, तो उन्होंने आत्मरक्षा में ब्राउन पर एक के बाद एक कई गोलियां दाग दीं। हालांकि कई प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया है कि विल्सन द्वारा गोली मारे जाने के समय ब्राउन के हाथ हवा में ऊपर थे और वह आत्मसमर्पण का प्रयास कर रहा था।
 
भारत में आरक्षण के मुद्दे की तरह ही नस्लीय संबंध अमेरिका में हमेशा संवेदनशील विषय रहे हैं। एमर्सन कॉलेज पोलिंग सोसायटी की इस साल जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में रह रहे 61% अफ्रीकी-अमेरिकी यह मानते हैं कि देश में दोनों नस्लों के बीच संबंध निरंतर खराब होते जा रहे हैं।
 
मार्टिन लूथर किंग जुनियर तथा रोजा पार्कस जैसे क्रांतिकारी नेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद आज भी अमेरिका में अश्वेत समुदाय आर्थिक व समाजिक समानता प्राप्त करने के लिए तरस रहा है। 
यह सत्य है कि यहां जातीय भेदभाव व जातीय पूर्वाग्रह का अस्तित्व है। इस समुदाय के लोग गरीबी व बेरोजगारी से जूझते हैं। इनमें शिक्षा का स्तर अपेक्षाकृत निम्न है व रोजगार पाने के लिए इन्हें श्वेतों की अपेक्षा अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
 
जातीय पृथक्करण आधुनिक अमेरिका की एक कड़वी हकीकत है, चाहे न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहर हों या इलिनोइस के स्प्रिंगफील्ड जैसे मझौले शहर, हर जगह श्वेत व अश्वेत लोग अलग-अलग आबादियों में रहते हैं। शिकागो अमेरिका में जातीय पृथक्करण का एक जीवंत उदाहरण है।
 
अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय शहर के दक्षिणी हिस्से में रहता है तथा इस इलाके में दूसरी नस्ल के लोग नहीं रहते। इसके अलावा अन्य रंग व नस्लों के लोग भी अमेरिका में नस्लीय भेदभाव से अछूते नहीं हैं। अश्वेतों में अपराध, नशीले पदार्थों के सेवन व बंदूकों के प्रयोग की दर श्वेतों से कहीं ज्यादा है।
 
अश्वेत अमेरिकी जनसंख्या का मात्र 15% हिस्सा बनाते हैं, परंतु जेलों मे 45% कैदी इस समुदाय के हैं। जब बराक ओबामा ने अमेरिका के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया था तो ऐसा लगा था, जैसे एक नए अमेरिका का उदय हुआ हो- जातीय भेदभाव व पूर्वाग्रह से मुक्त अमेरिका।
 
परंतु आज 6 वर्षों बाद भी जमीनी हकीकत वहीं की वहीं है। गौर-ए-तलब है कि अमेरिका में जातीय भेदभाव औपनिवेशिक काल व दास काल से मौजूद है। तब से आज तक इससे निपटने के लिए बहुत से आंदोलन हुए, अभियान चले, कानून बने, परंतु कोई भी उपाय इस समस्या का पूर्ण निराकरण नहीं कर सका।
 
इस प्रकार की घटनाएं अमेरिका में अश्वेत व श्वेत लोगों के बीच नस्लीय भेदभाव की खाई को और अधिक गहरा कर देती हैं। इस प्रकार की घटनाओं के समय भावनाएं अपने चरम पर होती हैं व अक्सर कानून-व्यवस्था पर हावी हो जाती हैं। 
 
इस महान राष्ट्र के नागरिकों को अब्राहम लिंकन की दासता के खिलाफ लिखी पुस्तक से प्रेरणा लेनी होगी व एक समानतायुक्त व न्यायसंगत समाज के विकास के लिए कार्य करना होगा।
 
लेखक शिकागो (अमेरिका) में नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ तथा सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।