मंगलवार, 17 सितम्बर 2024
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Written By ND

अभिनव : मुश्किलों से घबराता नहीं

अभिनव : मुश्किलों से घबराता नहीं -
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मैं पदक जीतने का लुत्फ उठाने की कोशिश कर रहा हूँ। हालाँकि अभी इसमें सफल नहीं रहा हूँ। सही कहूँ तो जश्न का दौर खत्म होने का इंतजार कर रहा हूँ। दरअसल, अभी इन सबके बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला है। मेरे पास कुछ सोचने का समय ही नहीं है और सोचने की ऊर्जा भी फिलहाल नहीं बची है।

गोल्डन फिंगर, गोल्डन ब्वॉय, गोल्डन गन सुनकर लगता है कि ये कुछ बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें हैं, लेकिन बात अजीब है। मैं तो पहले जैसा ही हूँ। कोई सोने का आदमी तो बन नहीं गया हूँ। मैं पिछले 12 साल से मेहनत कर रहा हूँ। और मेरा उद्देश्य कभी प्रचार, लोकप्रियता हासिल करना नहीं रहा। इन सब चीजों ने मुझे कभी आकर्षित नहीं किया। मैं हमेशा से देश के लिए कुछ करना चाहता था। मेरा लक्ष्य ओलिम्पिक में स्वर्ण पदक हासिल करना था और मैंने वही किया।

निशानेबाजी ऐसा खेल है, जिसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। हर रोज नई चुनौती होती है। हर दिन नया दिन होता है। आप एक समस्या सुलझाते हो तो दूसरी सामने खड़ी हो जाती है। दरअसल, यही वजह है कि मैं इसकी तरफ आकर्षित हुआ।

पहले तो लगता था कि मैं कर क्या रहा हूँ, लेकिन कुछ समय बाद मुझे इसमें मजा आने लगा। मैं चुनौतियों का सामना करता रहा। मुश्किलों के लिए मैं तैयार रहने लगा। ये मेरा तीसरा ओलिम्पिक था। सिडनी में पहले ओलिम्पिक में मैंने पूरा मजा लिया। मैं ओलिम्पिक दल का सदस्य बनकर ही बहुत खुश था। एथेंस में मैं जीतना चाहता था। मैं पदक जीतने के बहुत करीब था, लेकिन बदकिस्मती से चूक गया। फिर मैंने एक कोशिश और की। इस बार बड़ी-बड़ी उम्मीदें लेकर नहीं गया था। मैं वहाँ ये सोचकर नहीं गया था कि स्वर्ण पदक जीतूँगा।

मैं अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के इरादे से वहाँ गया था। मैंने वहाँ सिर्फ बीजिंग एयरपोर्ट, ओलिम्पिक विलेज और शूटिंग रेंज ही देखे। वैसे भी एथलीट का जीवन बहुत 'ग्लैमरस' लगता है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। उसकी दिनचर्या बहुत मुश्किल होती है। उसे कड़ी प्रतिस्पर्धा से जूझना होताहै। वैसे भी मैं सीधा-सादा इंसान हूँ। नाटकीयता मुझे पसंद नहीं है। मैं वैसा नहीं हूँ कि जीत मिली तो बस कूदने लगे। मुझे पता है कि जीत और हार में ज्यादा फर्क नहीं होता।

हर माँ-बाप अपने बच्चे को ये सिखाएँ कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है। अगर कोई शॉर्टकट होता तो मैं वही अपनाता। 2006 में मैंने विश्व चैंपियनशिप जीती। मेरा मानना है कि ये चैंपियनशिप ओलिम्पिक से ज्यादा मुश्किल होती है। जब आप चोटी पर होते हैं तो उसके बाद क्या है। आपको वापस लौटना ही होता है। ये ठीक वैसा ही है कि आप अगर अचानक अरबपति हो जाएँ तो आखिर कितने दिन इसका लुत्फ उठाएँगे। कुछ दिनों में बोर हो जाएँगे। मैं जब विजय मंच पर था तो मुझे भी गर्व की अनुभूति हो रही थी। ये सपने के सच होने जैसा था। मैंने इसके लिए बहुत इंतजार किया था। मैं बहुत खुश था। फिर सब सामान्य हो गया।

वो बहुत गौरवशाली क्षण था, लेकिन कुछ खास ख्याल नहीं आया। मुझे नहीं पता था कि देश में इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। मुझे खुशी है कि लोगों को गौरवान्वित करने और उन्हें खुशी देने में कुछ योगदान कर सका। बेशक हमने ओलिम्पिक में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं, लेकिन खेलों को संचालित करने वालों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। मैं ये भी मानता हूँ कि खिलाड़ियों को भी जमकर मेहनत करनी होगी, लेकिन खिलाड़ियों को सफल होने के अवसर मुहैया कराए जाने चाहिए। इसका कोई तुरंत इलाज नहीं है।

अगर हम अभी शुरू करेंगे तो शायद 10 साल बाद हमें नतीजे देखने को मिलेंगे। सबसे बड़ी बात है कि खेलों के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। मेरा मानना है कि कॉर्पोरेट को भी आगे आना चाहिए। क्रिकेट के अलावा उन्हें ओलिम्पिक खेलों को अपनाना चाहिए। खेलों का आधारभूत ढाँचा सुधारने में मदद करनी चाहिए। ऐसे कदम उठाने से ही खेलों का भला होगा।

मेरी एक बड़ी बहन है। बचपन में मैं आम बच्चों जैसा ही था। जब मैं बच्चा था तो मुझे कोई खेल पसंद नहीं था, लेकिन जब से मैंने शूटिंग शुरू की, पढ़ाई छूट गई। ये सच है कि जब तक मैंने निशानेबाजी शुरू नहीं की थी तब तक कोई खेल नहीं खेला था। मुझे परिवार के एकमित्र ने चंडीगढ़ में निशानेबाजी कोच से मिलवाया। मुझे ये खेल बहुत पसंद आया और फिर सिलसिला शुरू हो गया। ये पहली नजर में प्यार जैसा था। मैंने पिछले 12 साल में खाने, पीने, सोने और निशानेबाजी के अलावा कुछ नहीं किया है। निशानेबाजी के अलावा जीवन में बहुत-सी बातें हैं, लेकिन मैंने कुछ नहीं किया। 'आई एम ए लूजर'।

बुरे दिनों का दौर खुद को आँकने का सबसे सही समय होता था। बहुत निराशा होती थी। कुछ भी अच्छा नहीं होता था। बहुत कोशिशों के बाद भी अच्छा प्रदर्शन नहीं होता था। लेकिन कुछ समय के बाद आप इसके आदी हो जाते हैं। आप जान जाते हैं कि इनसे कैसे निकलना है। मैंने फिर जीत-हार को बहुत गंभीरता से नहीं लिया। मेरे लिए बहुत जरूरी था कि खुद को अच्छे प्रदर्शन के लिए तैयार करूँ।

मायने ये रखता है कि आप अपने प्रदर्शन से कितना संतुष्ट हैं। मैं चीजों को हल्के में लेता हूँ। मेरे लिए यही अहम है कि जीत-हार को बहुत महत्व न दूँ। मैंने अब तक निशानेबाजी के अलावा कुछ किया ही नहीं है। ये बहुत चुनौतीपूर्ण है। मुझे हर चीज शुरुआत से करनी होगी और मेरे लिए हर बात नई होगी। परंतु मैं दृढ़ मानसिकता वाला इनसान हूँ। मैं जल्दी नहीं घबराता। मुश्किलों का सामना कर सकता हूँ।