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Last Updated : रविवार, 12 जून 2022 (16:37 IST)

केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने बाल मजदूर रह चुके यूथ लीडर्स को किया सम्‍मानित

माइका माइन में मिले समाज में बदलाव लाने वाले ‘हीरे’

award
नई दिल्‍ली, कभी जबरन बालश्रम के अंधे कुएं में धकेले गए बच्‍चे आज समाज में बदलाव लाने वाले चेहरे बन चुके हैं। इन मासूमों को कभी रोटी के एक टुकड़े के लिए माइका माइन (अभ्रक खदान) में मजदूरी करनी पड़ी थी।
अब यही होनहार बालश्रम के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्‍व कर रहे हैं। इन्‍हीं बच्‍चों की तरह एक लड़की बाल विवाह के खिलाफ मुहिम चलाए हुए है। ऐसे ही बच्‍चों को विश्‍व बालश्रम विरोधी दिवस की पूर्व संध्‍या पर केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेन्‍द्र यादव ने सम्‍मानित किया और इनके कार्यों की सराहना की।

केंद्रीय मंत्री ने नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित और जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी द्वारा पूरी दुनिया में बच्‍चों के लिए किए जा रहे कार्यों की भी प्रशंसा की। भूपेंद्र यादव ने कहा कि वह समाज में बदलाव लाने के लिए इन बच्‍चों द्वारा किए जा रहे प्रयासों से अभिभूत हैं और सरकार की तरफ से बच्‍चों के ऐसे प्रयासों की हरसंभव मदद की जाएगी। उन्‍होंने आगे कहा कि वह हाल ही में झारखंड के दौरे पर थे और जमीनी ह‍कीकत से वाकिफ हैं। उन्‍होंने कहा कि ये आज के यूथ लीडर्स हैं और इनके प्रयास प्रशंसनीय हैं।

माइका माइन के चलते झारखंड में हजारों बच्‍चों का बचपन छिनता जा रहा है। दुनियाभर में माइका आपूर्ति में सिर्फ झारखंड और बिहार का हिस्‍सा 25 प्रतिशत है। इससे ही स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। साल 2005 से कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन उन 501 गांव में काम कर रही है जहां के बच्‍चे माइका माइन के जाल में फंसे हुए हैं।

फाउंडेशन अभी तक 1.01 लाख से ज्‍यादा बच्‍चों को इस नर्क से निकाल चुकी है। बच्‍चों को माइका माइन से बचाने के लिए फाउंडेशन ने झारखंड सरकार के साथ एक एमओयू भी साइन किया है। इसका मकसद है कि झारखंड को पूरी तरह से बालश्रम से आजादी मिल सके। साल 2016 में फाउंडेशन ने अपने ‘बाल मित्र ग्राम’ के जरिए माइका माइन वाले इलाकों में एक बड़ा अभियान चलाया था। इसके तहत बच्‍चों को माइन से निकालकर स्‍कूल में दाखिला करवाना था।

‘बाल मित्र ग्राम’ कैलाश सत्‍यार्थी का एक अभिनव प्रयोग है जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्‍चों का किसी भी तरह का शोषण न हो सके। साथ ही इसमें यह भी तय किया जाता है कि हर बच्‍चा शिक्षित, स्‍वतंत्र और सुरक्षित हो।

ऐसे ही राजस्‍थान के तीन यूथ लीडर्स तारा बंजारा, अमर लाल और राजेश जाटव की भी केंद्रीय मंत्री ने सराहना की। यह तीनों हाल ही में दक्षिण अफ्रीका की राजधानी डरबन में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन के पांचवें अधिवेशन में भाग लेकर लौटे हैं। रीबॉक फिट टू फाइट अवॉर्डी राजस्‍थान की पायल जांगिड़ और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवॉर्डी मध्‍य प्रदेश के बिदिशा जिले के सुरजीत लोधी भी केंद्रीय मंत्री की प्रशंसा के हकदार बने।

झारखंड के कोडरमा जिले के गांव ढाभ की रहने वाली निकिता भी कभी आठ साल की उम्र में माइका माइन में पत्‍थर काटने (स्‍टोन कटिंग) का काम करती थी। साल 2012 के आसपास का समय निकिता के लिए मानो एक नई जिंदगी की सुबह लेकर आया। नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी द्वारा स्‍थापित बचपन बचाओ आंदोलन(बीबीए) के कार्यकर्ताओं की मदद से निकिता को न केवल माइका माइन में काम करने से आजादी मिली बल्कि स्‍कूल में पढ़ाई  करने का मौका भी मिला। निकिता कहती है, ‘मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं थी और मुझे दो साल तक माइका माइन में काम करना पड़ा। मुझे नहीं लगता था कि मैं कभी स्‍कूल जा सकूंगी। लेकिन बीबीए के सहयोग से सब कुछ संभव हो सका और आज मैं कोशिश कर रही हूं कि मेरे जैसे किसी बच्‍चे को बाल मजदूरी न करनी पड़े।’

माइका माइन में काम करने वाले ऐसे ही बच्‍चों मे नीरज मुर्मु भी हैं। आज वह शिक्षा के जरिए बालश्रम के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। नीरज को दस साल की उम्र में ही माइका माइन में काम करना पड़ा था। मजदूरी के नाम पर उन्‍हें प्रति किलो के हिसाब से पांच रुपए मिलते थे। बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा रेस्‍क्‍यू करने और स्‍कूल में नाम लिखवाने के बाद उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल गई।

आज वह बालश्रम के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और लोगों को सरकारी स्‍कीम का लाभार्थी बना रहा है। नीरज को साल 2020 में ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड से सम्‍मानित किया जा चुका है। नीरज कहते हैं, ‘परिवार की गरीबी के चलते मुझे माइका माइन में काम करने के नारकीय जीवन से गुजरना पड़ा लेकिन अब मेरा प्रयास है कि किसी भी बच्‍चे को इन हालात का सामना न करना पड़े। हर बच्‍चे को शिक्षित करके हम बालश्रम के खिलाफ जंग जीत सकते हैं।’

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड से सम्‍मानित हो चुकीं झारखंड के गिरिडीह जिले के गांव जामदार से आने वाली चंपा कुमारी भी केंद्रीय मंत्री की प्रशंसा की पात्र बनीं। माइका माइन में कई साल काम करने वाली चंपा को 12 साल की उम्र में रेस्‍क्‍यू किया गया था। 16 साल की चंपा अब स्‍थानीय प्रशासन के साथ बालश्रम और बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। चंपा खुद अपने गांव में दो बाल विवाह रुकवा चुकी हैं और अब तक इस मुहिम में करीब नौ हजार लोगों से संपर्क कर चुकी है। चंपा कहती हैं कि किसी भी तरह के बाल शोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी।

केंद्रीय मंत्री ने कोडरमा की मधुबन पंचायत से आने वाली 16 साल की राधा पांडे को भी सराहा। राधा ने परिवार व समाज के विरुद्ध जाकर अपना बाल विवाह रुकवाया था। अब राधा बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रही हैं। उसके प्रयासों को देखते हुए झारखंड सरकार ने उस बाल विवाह के खिलाफ अपनी मुहिम में जिले का ब्रांड एम्‍बेस्‍डर बनाया है।
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