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Written By सुरेश डुग्गर
Last Updated :जम्मू , बुधवार, 30 जनवरी 2019 (17:01 IST)

जबरदस्त बर्फबारी से कहीं मौजां और खुशी, कहीं आफत और परेशानी

जबरदस्त बर्फबारी से कहीं मौजां और खुशी, कहीं आफत और परेशानी - snowfall in Kashmir
जम्मू। कश्मीर के हंडवाड़ा का फाजिली बर्फबारी के लिए हाथ उठा कर खुदा का शुक्रिया अदा करने से नहीं चूकता था। साथ ही वह यह भी दुआ कर रहा था कि अब और बर्फबारी न हो और न ही हिम सुनामी तथा एवलांच हो क्योंकि राज्यभर में जबरदस्त बर्फबारी से अगर कहीं मौजां और खुशी का माहौल था तो कहीं पर यह अब आफत और परेशानी का सबब भी बनने लगी थी।
 
कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ने वाली भयंकर सर्दी के दौर से गुजर रहे जम्मू कश्मीर के निवासियों के लिए बर्फबारी खुशी भी लाई है। खुशी का कारण सफेद चाद्दर से लिपटी वादी की ओर बढ़ते सैलानियों के कदम थे तो बर्फ के कारण इन गर्मियों में पानी और बिजली के संकट से नहीं जूझना पड़ेगा, यह सोच भी खुशी देने वाली थी।
 
बर्फबारी के नजारे लेने कश्मीर की ओर सैलानियों के बढ़ते कदमों के कारण ही पिछले साल आने वाले टूरिस्टों की संख्या ने 20 लाख के आंकड़े को पार कर लिया था और फाजिली के बकौल, अगर खुदा ने चाहा तो बर्फ से लदे पहाड़ों की गोद में बैठ बर्फ से खेलने में मस्त सैलानियों की भीड़ को देख उसे यह आस जगने लगी थी कि यह आंकड़ा इस बार 45 लाख को पार कर एक नया रिकॉर्ड बना डालेगा।
 
राज्य में बर्फबारी के कारण पहाड़ों पर हुई बर्फबारी इन गर्मियों के खुशहाल होने का संकेत भी देती थी। गर्मियों में पीने तथा कृषि के लिए पानी की कमी के साथ-साथ बिजली संकट से सामना नहीं होगा, जबरदस्त बर्फबारी ने इसे सुनिश्चित जरूर कर दिया है। दरअसल राज्य की सभी पनबिजली परियोजनाएं बर्फबारी पर ही इसलिए निर्भर हैं क्योंकि राज्य के दरियाओं में पानी बर्फ के पिघलने से ही आता है।
 
पर यह बर्फबारी आफत और परेशानी का सबब भी बन चुकी थी। पिछले साल गुलमर्ग में हिमस्खलन के दौरान बीसियों सैनिकों की मौत की घटना के अतिरिक्त वर्ष 2005 तथा वर्ष 2008 में राज्य के कई हिस्सों में आए हिम सुनामी की याद से ही आम कश्मीरी सिंहर उठता है। हिम सुनामी की चेतावनी अभी भी दी जा रही है।
 
वैसे दुर्गम स्थानों में रहने वालों के लिए यह किसी सुनामी से कम नहीं है कि बर्फबारी के कारण उनकी जिन्दगी नर्क बन चुकी है क्योंकि राज्य के कई गांव पूरी दुनिया से कट चुके हैं। बीमारों के लिए कोई राहत नहीं है। खाने-पीने की वस्तुओं की कमी भी महसूस की जाने लगी है।
 
हालांकि इन सबके बीच सरकारी दावे जारी थे जबकि इन दावों की सच्चाई यह थी कि राज्य के विभिन्न राजमार्गों और लिंक मार्गों से बर्फ हटाने का कार्य भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया था जबकि भूस्खलन कई मार्गों में जान का खतरा पैदा किए हुए था।
 
‘चिल्ले कलां’ का अंत भी बर्फबारी के साथ : कश्मीर की सर्दी के सबसे ठंडे दिन चिल्ले कलां के अंतिम दिन कश्मीर के साथ-साथ जम्मू संभाग के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी हुई है। चिल्ले कलां के 40 दिन कश्मीर की सर्दी का सबसे ठंडा मौसम माना जाता है। वहीं जम्मू में भी लोहड़ी वाले महीने को भी सबसे ठंडा महीना माना जाता है।
 
चिल्ले कलां के अंतिम दिन कश्मीर संभाग के गुलमर्ग, पहलगाम, लेह करगिल आदि क्षेत्रों में भी बर्फबारी शुरू हो गई वहीं त्रिकुटा के पहाड़ों पर भी घने बादल छाये हुए हैं। मौसम विशेषज्ञों अनुसार दोपहर बाद माता वैष्णो देवी के दरबार पर भी बर्फबारी की संभावना है।
 
जम्मू शहर को भी सुबह से ही बादलों ने अपने आगोश में रखा है। कुछ स्थानों पर बारिश शुरू हो चुकी है। जवाहर टनल के आसपास भी हल्की बर्फबारी शुरू हो गई है। दोपहर तक श्रीनगर से जम्मू के लिए गाड़ियां रवाना की गई। बादल छाये रहने के बाद और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश के चलते तापमान में भारी गिरावट आई है।

शीतलहर का प्रकोप बना हुआ है। अगर बारिश और बर्फबारी और अधिक हुई तो जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद हो सकता है। मंगलवार को भी भूस्खलन के चलते बीच में गाड़ियों की आवाजाही बंद करनी पड़ी थी। एसएसपी नेशनल हाई वे शक्ति पाठक ने बताया कि लगातार बीच-बीच में भूस्खलन हो रहा है। पहले भी लगातार सात दिन नेशनल हाई-वे बंद रहा था। अब भी बड़ी हिदायत के साथ ही गाड़ियों को छोड़ा जा रहा है।
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