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Last Updated : गुरुवार, 7 अप्रैल 2022 (16:12 IST)

मुश्किल बन सकती हैं मुफ्त की योजनाएं, क्या श्रीलंका से सबक लेगी सरकार?

मुश्किल बन सकती हैं मुफ्त की योजनाएं, क्या श्रीलंका से सबक लेगी सरकार? - Free schemes can cause trouble for India's economy
श्रीलंका इन दिनों बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा है। वहां या तो लोगों को खाने के लाले पड़े हुए हैं या फिर चीजें इतनी महंगी हो गई हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई हैं। मीडिया रिपोर्ट्‍स के मुताबिक श्रीलंका में 1 किलो सेब की कीमत 1000 रुपए हो चुकी है, जबकि गेहूं 220 रुपए किलो के स्तर पर पहुंच चुका है। दूसरी ओर, भारत में भी महंगाई एक बार फिर 'आग' उगल रही है। पेट्रोल 120 रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच गया है ।पड़ोसी श्रीलंका की स्थिति का खौफ भारत में भी नजर आने लगा है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई बैठक में नौकरशाहों ने आशंका जताई है कि यदि मुफ्तखोरी (मुफ्त राशन एवं अन्य मुफ्त घोषणाओं) पर लगाम नहीं लगाई गई तो भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। इसका अनुमान एक रिपोर्ट से रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों पर 80 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज चढ़ चुका है।
 
रिपोर्ट्‍स के मुताबिक आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों की स्थिति तो बहुत ज्यादा ही खराब है। दूसरे शब्दों में कहें तो वहां श्रीलंका जैसी ही स्थिति है, लेकिन ये राज्य भारत संघ का हिस्सा हैं, इसलिए इस स्थिति से बचे हुए हैं। अन्यथा ये सभी राज्य कंगाल हो जाते। इस स्थिति के पीछे मुफ्त की योजनाएं ही हैं। कहीं मुफ्त राशन बांटा जा रहा है, कहीं मुफ्त बिजली और गैस सिलेंडर बांटे जा रहे हैं, कहीं मुफ्त की कोई और योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं का भार सीधे कोष पर पड़ रहा है। इसके चलते स्थितियां धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही हैं।
विपक्षी पार्टी के नेताओं ने तो आर्थिक हालात को लेकर सरकार पर निशाना भी साधना शुरू कर दिया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि श्रीलंका की परिस्थिति बहुत चिंताजनक है। भारत भी उसी मोड़ पर है। हमें इस परिस्थिति को संभालना होगा नहीं तो श्रीलंका से भी ज्यादा खराब स्थिति हमारी हो सकती है। श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर के कर्ज का बोझ है। चीन का ही श्रीलंका पर 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज है।
 
मीडिया रिपोर्ट्‍स के मुताबिक भारत के कई राज्य कर्ज में आकंठ डूबे हुए हैं। तमिलनाडु पर 6 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है, जबकि महाराष्ट्र पर 6 लाख 8 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज है। उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ का कर्ज है, वहीं पश्चिम बंगाल पर 5 लाख 62 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। गुजरात, आंध्रप्रदेश और बिहार की भी स्थिति ठीक नहीं है। 
 
पंजाब सरकार पर वादे निभाने का बोझ : पंजाब पर 2 लाख 80 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है। आने वाले समय में इसके और बढ़ने की संभावना है क्योंकि आम आदमी पार्टी ने राज्य की 18 साल से ऊपर की महिलाओं को हर माह 1000 रुपए की आर्थिक मदद देने का वादा किया था। साथ ही 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का भी वादा किया था। इसके लिए मुख्‍यमंत्री भगवंत मान ने ने केन्द्र सरकार से एक लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की मांग की है। राजस्थान पर भी 4 लाख 70 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। इसके बावजूद राजस्थान में पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा की गई है। इसका राजकोष पर अतिरिक्त भार पड़ने वाला है और निकट भविष्य में कर्ज और बढ़ सकता है। 
 
क्यों बढ़ रहा है कर्ज : दरअसल, विभिन्न राज्यों में चल रहीं 'मुफ्त' का सीधा असर राजकोष पर पड़ता है। राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए कई मुफ्त घोषणाओं का ऐलान करते हैं। ऐसे में जब वे चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें अपने वादे पूरे करने होते हैं। चाहे वह मुफ्त बिजली देने की बात हो या फिर मुफ्त का राशन या ऐसी ही मुफ्त की कई अन्य योजनाएं। 
 
क्यों कर्ज में डूबा श्रीलंका : श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बड़ी हद तक पर्यटन पर निर्भर है, लेकिन कोरोना काल में पर्यटकों की कमी का असर सीधे अर्थव्यवस्था पर हुआ। रासायनिक उर्वरक पर पाबंदी के चलते उत्पादन गिर गया। अनाज अनाज उत्पादन घटने से महंगाई और बढ़ गई। गेहूं के दाम श्रीलंका में 200 रुपए के पार हो गए हैं, जबकि चावल 190 रुपए किलो मिल रहा है। इसके साथ भ्रष्टाचार ने भी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। चीन से कड़ी शर्तों पर लिए गए कर्ज ने भी श्रीलंका की हालत और बिगाड़ दी।