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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला

डर के आगे 'एकजुटता' है, भाजपा के खिलाफ साथ आए 18 विपक्षी दल

डर के आगे 'एकजुटता' है, भाजपा के खिलाफ साथ आए 18 विपक्षी दल - 18 opposition parties came together against BJP
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द करने का दांव 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को उलटा पड़ सकता है। दरअसल, इस मुद्दे पर ज्यादातर विपक्षी दल एकजुट हो गए हैं। एक सुर में सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। जिस तरह से दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (अब पूर्व) और सत्येन्द्र जैन को जेल भेजा गया है, उससे सभी दल डरे हुए हैं। ऐसे में उनको लग रहा है कि साथ आने में ही भलाई है। क्योंकि कोई भी अकेला दल भाजपा का मुकाबला नहीं सकता। 
 
विपक्षी दलों की 'डिनर डिप्लोमेसी' में 18 विपक्षी दलों ने शिरकत की थी। इनमें शरद पवार की राकांपा, नीतीश कुमार की जदयू, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, तृणमूल कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस, डीएमके, एमडीएमके, आरएसपी, आईयूएमएल, सीपीआई, सीपीएम, वीसीके आदि दल शामिल हैं। खास बात यह रही कि मल्लिकार्जुन खरगे के निवास पर आयोजित डिनर में ममता की तृणमूल कांग्रेस पार्टी भी शामिल हुई, जिसने कि पिछले प्रदर्शन 'संसद से ईडी ऑफिस' तक मार्च के दौरान दूरी बनाकर रखी थी।
 
महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार में कांग्रेस के साथ शामिल रही ‍उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना ने इस डिनर से दूरी बनाकर रखी थी। उद्धव की नाराजी राहुल द्वारा सावरकर पर की गई टिप्पणी को लेकर थी। उद्धव महाराष्ट्र के लोगों को यह संदेश बिलकुल नहीं देना चाहते थे कि वे सावरकर विरोधियों के साथ हैं। क्योंकि महाराष्ट्र में सावरकर को पसंद करने वाला एक बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में उद्धव को व्यक्तिगत रूप से भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। लेकिन, माना जा रहा है कि देर-सवेर उद्धव भाजपा विरोध गुट में शामिल हो सकते हैं।  
 
कांग्रेस राहुल की सदस्यता रद्द होने के मामले को 'विक्टिम कार्ड' के रूप में खेलना चाहती है। उसका कहना है कि राहुल को गलत तरीके से टारगेट किया जा रहा है। दूसरी ओर, भाजपा द्वारा 'मोदी उपनाम' पर राहुल गांधी के बयान को ओबीसी विरोधी टिप्पणी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस मामले में जवाबी हमला किया है और इसे अपने पक्ष में भी भुनाने की कोशिश की।
 
अखिलेश ने कहा कि 2017 में यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्होंने (भाजपा ने) हमारे द्वारा खाली किए गए घर को गंगा जल से धुलवाया था। क्या उस समय पिछड़ों का अपमान नहीं हुआ था? दरअसल, अखिलेश यादव स्वयं ओबीसी समुदाय से आते हैं। 
 
एनसीपी प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन समेत अन्य नेताओं ने सीधे शब्दों में कहा कि विपक्षी दलों को वर्तमान हालात में एक साथ खड़ा होने की जरूरत है। पवार ने कहा कि हम सभी को अपने लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा के लिए एक साथ खड़े होने की जरूरत है।
 
आप नेता केजरीवाल ने कहा कि आज देश में जो चल रहा है बहुत खतरनाक है। विपक्ष को खत्म करके ये लोग 'वन-नेशन वन-पार्टी' का माहौल बनाना चाहते हैं। इसी को तो तानाशाही कहते हैं। तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री एमके स्टालिन ने भी राहुल का समर्थन करते हुए कहा कि राहुल गांधी के खिलाफ की गई कार्रवाई लोकतांत्रिक ताकतों पर हमला है। हमें एकजुट होकर इसका विरोध करना है।
 
हालांकि यह भी उतना ही सही है कि इस विपक्षी गठजोड़ में शामिल दल आगामी लोकसभा चुनाव एक दूसरे को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाने की स्थिति में नहीं हैं। बंगाल में चुनाव के दौरान कांग्रेस और टीएमसी की पटरी नहीं बैठक सकती, वहीं यूपी में सपा और कांग्रेस की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। अखिलेश कह भी चुके हैं कि वे भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी बनाकर रखेंगे। तेलंगाना में भी लगभग यही स्थिति है, जहां केसीआर को भाजपा के साथ कांग्रेस से भी मुकाबला करना होगा। 
 
ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि विपक्षी दलों का यह गठजोड़ आगामी लोकसभा चुनावों में कुछ 'गुल' खिला पाएगा। इन सभी दलों का साथ आना सिर्फ परिस्थितिजन्य है, जो आने वाले समय में बिखर भी सकते हैं। फिलहाल सबका साथ आने की सबसे बड़ी वजह ईडी, सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसियों का डर है। कब किस पर शिकंजा कस जाए कोई नहीं जानता। लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि यह गठजोड़ लोकसभा चुनाव में जारी रहता है तो भाजपा के लिए मुसीबत का कारण बन सकता है।
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