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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024 (11:16 IST)

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं छोटी दिवाली, क्या करते हैं इस दिन

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं छोटी दिवाली, क्या करते हैं इस दिन - Why is Narak Chaturdashi called Choti Diwali
Narak chaturdashi Why is Chhoti Diwali celebrated:  दीपावली के पांच दिनी उत्सव में नरक चतुर्दशी दूसरे दिन का त्योहार रहता है। इसे छोटी दिवाली और रूप चौदस भी कहते हैं। इसी दिन हनुमान जयंती भी रहती है। नरक चतुर्दशी की रात्रि की पूजा 30 अक्टूबर को होगी और उदयातिथि के अनुसार रूप चतुर्दशी का अभ्यंग स्नान 31 अक्टूबर को होगा। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, कार्तिक अमावस्या को बड़ी दिवाली और कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाते हैं। नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं छोटी दिवाली?
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01:15 बजे से।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03:52 बजे तक।
 
क्यों कहते हैं छोटी दिवाली: कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली मनाते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने के बाद 16 हजार महिलाओं को उसकी कैद से मुक्त कराकर देवलोक को भी आजाद करा दिया था। इसी की खुशी में सभी ओर दीपक जलाकर उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन श्रीकृष्‍ण, हनुमानजी और यमदेव की पूजा करते हैं। इस दिवाली पर अभ्यंग स्नान से रूप निखरने की मान्यता भी है और यम के नाम का दीपक जलाने से व्यक्ति मृत्यु के बाद नरक नहीं जाता है।
 
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध कर दिया था। इस असुर का नाम भौमासुर भी था। इसने 16 हजार महिलाओं को बंधक बना रखा था और इसने इंद्रदेव के राज्य को भी अपने कब्जे में ले रखा था। इसी के चलते श्रीकृष्‍ण को उसका वध करना पड़ा था। नरकासुर के वध के बाद देवताओं ने खुशी में इस दिन दिवाली मनाई थी और द्वारिका भी भी जीत का जश्न मना था।
 
नरक से बचने के लिए भी मनाते हैं छोटी दिवाली: तीसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था फिर भी जब मृत्यु का समय आया तो यमदूत उन्हें नरक ले जाने के लिए आ धमके। राज ने कहा कि आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि- हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है। यह सुनकर राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी चिंता लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। 
 
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
 
राजा बलि के राज्य में मनाई जाती है दिवाली: इस दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इस दिन राजा बलि (महाबली) को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से वामन पूजा की जाती है। अनुसरराज बलि बोले, हे भगवन! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करेगा, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। ऐसे वरदान दीजिए। यह प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! ऐसा ही होगा, तथास्तु। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ।
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