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Written By WD

क्या लिखें और क्यों लिखें : पढ़ें श्रेष्ठ लेखन के 6 नियम

क्या लिखें और क्यों लिखें : पढ़ें श्रेष्ठ लेखन के 6 नियम - webdunia blog
- लावण्या दीपक शाह
सृजन की षडलिंग व्याख्या 
 
उपक्रमोपसंहाराव्भ्यासो पूर्वता फलम्`
अथर्वादोपपती च लिंग तात्पर्यनिर्णये
 
रचनाकार को अपने आलेख/कृति के विषय मेँ मुख्यता: 6 नियमों का पालन करना होता है। इसे षडलिंग व्याख्या कहते हैं। इन छ: आयामोँ का विधिवत निरुपण होने से 'कृति' सम्पूर्ण बनती है। 
1) उपक्रम से उपसंहार तक :  यह प्रथम चरण है जहां विषय, विवेचन संबंधी कथ्य स्पष्ट हो जाने चा‍हिए। जिससे पाठक को विषय के बारे मेँ प्रथम "सत्य" ज्ञात हो सके। आदि से कृति के अंत तक विषय संबंधी एकरूपता व समता बनी रहे। इस बात की रचनाकार को सावधानी बरतनी होती है। 
 
2) अभ्यास : रचनाकार अपनी कृति के द्वारा विषय के "अभ्यास" का निरुपण करता है। अपनी रचना/कृति मेँ, रचनाकार का क्या उद्देश्य रहा है उस सत्य से कृतिकार पाठक को परिचित करवाता है। "विषय विवरण" क़ृतिकार की विषय के प्रति समझ और विषय के अध्ययन व मनन से ही "नव रचना" प्रकाश मेँ आती है।
 
3) अपूर्वता : "नवीनता" हर रचनाकार अपनी रचना के माध्यम से कुछ नई बात कहने का प्रयास करता है।
ईश्वर ने हर प्राणी को "अपूर्वता" प्रदान की है। हर व्यक्ति विशेष है क्योंकि, हर व्यक्ति अपनी अनूठी प्रतिभा, समझबूझ, विचारोँ के द्वारा विलक्षण, लाक्षणिकता का स्वामी है। रचनाकार भले ही पुराने कथ्योँ को दोहराएं लेकिन प्रस्तुति सर्वथा नवीन होनी चाहिए। पुरानी कहानी भी हर नए कहानीकार के द्वारा नवीन स्वरुप मेँ उभर कर सामने आती है। 
 
4) परिणाम : कृति की रचना के अंत मेँ "फल" होना चाहिए। रचनाकार क्या कहना चाहता है?यह तथ्य उभरना आवश्यक है। चूंकि प्रत्येक रचनाकार एक स्वतंत्र, सशक्त व नया स्वर है। उसकी कृति समाज को क्या 'संदेसा' देना चाहती है? इस बात को, रचनाकार द्वारा समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्तव को कृति के ''परिणाम'' या "फल" द्वारा प्रतिपादित करना होता है। 
 
5) विस्तार : फल या कृति के विषय की अधिक जानकारी, कृतिकार को विस्तार से पाठक के सामने रखनी होती है। कृति के विषय-विशेष की प्रशंसा कृति मेँ निहित होनी चाहिए। तभी रचनाकार अपनी कृति के विषय में तथा विषय सामग्री के बारे में, पाठक के मन पर गहरी छाप छोड पाता है। विस्तार से किया गया वर्णन, पाठक को आकृष्ट करता है। 
 
6) समापन - कृति को समेटते हुए रचनाकार को अपनी बात को पूर्ण करना चाहिए और अनेक प्रश्न या मनोमंथन पाठक के लिए छोड़ते हुए "इति" कहते हुए अपनी बात को विराम देना भी उतना ही आवश्यक है, जितना कथानक का आरंभ करना होता है। एक कुशल रचनाकार इतनी बातों पर ध्यान देगा तब अवश्य एक सर्वथा नवीन तथा उत्कृष्ट कृति की रचना संभव होगी। 
 
और हां समापन करते हुए, हम आप सभी को इतना ही कहेंगे, जी हां लिखें और अवश्य लिखें! साहित्य के विभिन्न मठाधीशों तथा रखवालों के कोप से डरे नहीं!आप अपने मन की तरंगों को विश्व साहित्य पटल पर एक सुंदर नए पुष्प की तरह रोपित कर दीजिए। कहीं  दूर तलक इसकी हवा के झोंकों से मिलकर खुशबू बिखर जाएगी।