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संयुक्त राष्ट्र का पहला विश्व जल सम्मेलन

संयुक्त राष्ट्र का पहला विश्व जल सम्मेलन - United Nations Water Conference
हमारी पृथ्वी पर कोई तरल पदार्थ यदि अपार मात्रा में उपलब्ध है तो वह है पानी। क़रीब तीन-चौथाई पृथ्वी पानी से ढंकी हुई है। तब भी पृथ्वी के 2 अरब निवासियों के पास साफ़-सुथरे पेयजल की सुविधा नहीं है। पृथ्वी को ढंकने वाले सागरों-महासागरों का अपार पानी खारा पानी होने से स्थिति 'जल विच मीन पियासी' जैसी है।

2 अरब निवासियों को स्वच्छ पेयजल मिलने की सुविधा नहीं होने का अर्थ है, हमारी दुनिया के औसतन हर चौथे निवासी को पानी की कष्टपूर्ण जुगाड़ करनी पड़ती है। पानी की ज़रूरत केवल पीने के लिए ही नहीं पड़ती। खाना पकाने, कपड़े-लत्ते धोने, खेतों और पेड़-पौधों की सिंचाई तथा बहुत-सी औद्योगिक गतिविधियों के लिए भी पानी चाहिए। पेयजल के मुख्य स्रोत हैं झील-सरोवर, नदी-तालाब और कुएं। उन्हें अपना पानी बरसात से मिलता है।

लेकिन पृथ्वी पर तापमान के लगातार बढ़ने और उसके कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन से बरसात भी एक पहेली बनती जा रही है। बरसात या तो इतनी अधिक होती है कि प्रलय जैसी बाढ़ में सबकुछ डूबने लगे या ऐसी नदारद रहती है कि सूखा और अकाल पड़ने लगे। ठीक इस समय अफ्रीका के कुछ देशों में कुछ ही सप्ताहों के भीतर तीन-तीन बार प्रलयंकारी बाढ़ें आ चुकी हैं, तो कुछ देशों में 5-6 साल से बरसात ही नहीं हुई।

पानी भी एक मानवाधिकार है : इन्हीं विरोधाभासों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने न्यूयॉर्क में 22 से 24 मार्च तक का एक तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन आयोजित किया है। ताजिकिस्तान और नीदरलैंड की सरकारें इस सम्मेलन की सह आयोजक हैं। सम्मेलन में 6500 से अधिक लोग भाग ले रहे हैं। उनमें विभिन्न देशों के मंत्री, वैज्ञानिक, जलवायु आंदोलनकारी और निजी कंपनियों के प्रतिनिधि भी हैं। सम्मेलन का आदर्श वाक्य है- पानी भी एक मानवाधिकार है।

इस सम्मेलन में किसी समझौते पर हस्ताक्षर आदि नहीं होंगे। सम्मेलन के अंत में जगरूकता फैलाने और स्वयंसेवियों की तरह काम करने की एक ऐसी अभियान योजना बनाई जाएगी, जिस पर अमल के लिए लोग स्वेच्छा से अपने आप को प्रतिबद्ध करेंगे।

'स्वोट' जल-मापी उपग्रह : जहां तक पृथ्वी पर के पानी का प्रश्न है तो अभी यही ठीक से पता नहीं है कि पृथ्वी पर की नदियों, झीलों, तालाबों और सागरों-महासागरों में कितना पानी है। इसे ठीक-ठीक जानने के लिए अमेरिका, कैनेडा, ब्रिटेन और फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर 'स्वोट' (SWOT, Surface Water and Ocean Topography) नाम का एक जल-मापी उपग्रह बनाया है, जिसे 16 दिसंबर 2022 को अंतिरक्ष में भेजा गया।

यह उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए महासागरों के खारे पानी की मात्रा और विशेषताएं ही नहीं माप रहा है, नदियों और झीलों के पानी की मात्रा और उनकी विशेषताओं की भी पहचान करते हुए बहुत सारे आंकड़े पृथ्वी पर बैठे वैज्ञानिकों के पास भेजता है।

अपने सोलर पैनलों के साथ बोइंग 737 विमान जितना बड़ा 'स्वोट' क़रीब 2 टन भारी है और पृथ्वी से 850 किलोमीटर की दूरी पर रहकर उसकी परिक्रमा कर रहा है। अगले कम से कम 3 वर्षों तक वह हर 21वें दिन पृथ्वी पर के सभी जलस्रोतों और भंडारों की जानकारी भेजता रहेगा।

उससे जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज के समय भी हम सबसे पहले यही जानना चाहते हैं कि वहां पानी है या नहीं। हमारी पृथ्वी पर पानी की कमी नहीं है, लेकिन प्रश्न यह है कि कहां, कैसा और कितना पानी है? उसकी प्रवाह गति कितनी है? वह तरल है या बर्फ है? मीठा है या खारा है?

केवल 2 से 3 प्रतिशत पानी मीठा है : फ़िलहाल यही अनुमान लगाया जाता रहा है कि हमारी पृथ्वी पर कुल मिलाकर 10 से 20 खरब लीटर पानी है। लगभग सारा पानी खारा है, केवल 2 से 3 प्रतिशत ही मीठा पानी है। 'स्वोट' सही-सही बताएगा कि खारा पानी कितना है और मीठा पानी कितना है। कहां किस तरह के पानी का भंडार है। इन आंकड़ों से वैज्ञानिक यह भी जान सकेंगे कि सागरों-महासागरों, नदियों और झीलों पर, जलवायु पर पानी की मात्रा और किस्म का क्या प्रभाव देखने में आता है।

पानी की तलाश और पहचान के लिए 'स्वोट' एक ऐसे राडार से सुसज्जित है, जो अपनी टोही तरंगें पृथ्वी की दिशा में नीचे भेजता है। ये तरंगें पानी से और ज़मीन से परावर्तित होकर वापस आती हैं। राडार तरंगों के भेजने और परावर्तित होकर लौटने में लगे समय से वैज्ञानिक जान सकते हैं कि किस जगह पानी है या नहीं है और यदि है तो उसका स्तर कितना ऊंचा है।

नदियों की गहराई-चौड़ाई भी जानी जा सकती है : इन जानकारियों के मेल से वैज्ञानिक, उदाहरण के लिए, यह भी जान सकते हैं कि कोई नदी कहां कितनी गहरी और चौड़ी है। उसका पानी किस गति से बह रहा है। गहराई, चौड़ाई और प्रवाह गति के आधार पर हिसाब लगाया जा सकता है कि प्रति मिनट या प्रति घंटे कितने लीटर पानी बह रहा है।

पृथ्वी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा हमेशा बादलों से ढंका रहता है। हर समय आधी पृथ्वी पर रात का अंधेरा छाया होता है। लेकिन इससे राडार तरंगों पर कोई असर नहीं पड़ता। दिन हो या रात, बादल हों या न हों, 'स्वोट' अपनी राडार तरंगों द्वारा पृथ्वी की हर समय टोह ले सकता है। हमेशा यह भी बता सकता है कि कब, कहां पानी की मात्रा बढ़ी या घटी। कोई झील सूख गई या नहीं। कोई समुद्री तट बदल गया है या नहीं।

'स्वोट' उपग्रह परियोजना में शामिल देशों का कहना है कि वे अपनी जानकारियां अन्य देशों के वैज्ञानिकों के साथ भी साझा करेंगे। समझा जाता है कि इस परियोजना से दुनिया में मीठे पानी के कुछ ऐसे स्रोतों का भी पता चल सकता है, जो अब तक अज्ञात हैं।
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