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बच्चों को बेचैन करता सोशल मीडिया का अतिरेक

impact of social media on children । बच्चों को बेचैन करता सोशल मीडिया का अतिरेक - Social media
# माय हैशटैग
 
सोशल मीडिया के बहुत ज्यादा उपयोग करने के मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ते हैं। यह प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हैं। बच्चों पर सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा उपयोग करने का असर क्या पड़ रहा है, इस पर अनेक अध्ययन हो रहे हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन में निष्कर्ष निकला है कि जो बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग बहुत ज्यादा करते है, उनके मन में जीवन के प्रति असंतुष्टि का भाव ज्यादा रहता है। सोशल मीडिया पर लोगों को देख-देख कर बच्चों की आदत हो जाती है कि वे अपने अभिभावकों से अवांछित वस्तु की मांग भी करने लगते हैं। मेरे एक मित्र के बेटे को अपने पिता से इस बात की शिकायत थी कि उसे उसके पिता आईफोन-7 नहीं दिला रहे हैं, जबकि मेरे मित्र और उसके पिता का कहना था कि वे पहले ही उसे महंगा आईफोन-6 दिला चुके हैं। हर बार जब कोई नया फोन आए, तो उससे पुराने स्मार्टफोन को रिप्लेस करना संभव नहीं है।
लगातार किए जा रहे अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि सोशल मीडिया के उपयोग की अधिकता बच्चों के मन में नाखुशी भर देती है। पहले ऐसा लगता था कि बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं और वे अपनी इस दुनिया में खुश होंगे। ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकॉनामिक्स द्वारा ‘सोशल मीडिया यूज एंड चिल्ड्रन्स वेलबीइंग’ अध्ययन के दौरान 10 से 15 साल की उम्र के 4000 बच्चों से बातचीत की गई। इस अध्ययन में बच्चों से उनके जीवन के तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई। यह पूछा गया कि वे अपने घर-परिवार, स्कूल, दोस्त और जीवन से कितने संतुष्ट हैं। बच्चे सोशल मीडिया का कितना उपयोग करते हैं, इसका अध्ययन भी एक एप की मदद से किया गया। 
 
जो निष्कर्ष निकला, वह यह था कि बच्चे सोशल मीडिया पर जितना समय बिताते हैं, वे उसी अनुपात में अपने घर-परिवार, स्कूल और जीवन के प्रति असंतुष्ट हैं। जो बच्चे सोशल मीडिया पर कम समय खपाते हैं, वे जीवन के दूसरे पहलुओं के प्रति ज्यादा संतुष्ट नजर आए। सोशल मीडिया पर कम समय व्यतीत करने वालों को अपना स्कूल और माता-पिता ज्यादा पसंद थे। जो बच्चे सोशल मीडिया पर ही ज्यादा समय लगे रहते थे, उन्हें लगता था कि उनका जीवन ज्यादा अर्थपूर्ण नहीं है। 
 
इस अध्ययन में एक और दिलचस्प बात सामने आई, वह यह कि सोशल मीडिया का उपयोग करने का असर लड़कों की तुलना में लड़कियों पर ज्यादा है। इसका कारण शायद यह है कि लड़कियां ज्यादा भावुक होती हैं। अध्ययन में यह भी पता चला है कि साइबर बुलीइंग छात्राओं के साथ अधिक मात्रा में होता है। 
 
भारत में इस तरह के सिलसिलेवार अध्ययन बहुत ही कम हुए हैं। जो हुए हैं, उनकी रिपोर्ट भी सामने नहीं आई है, लेकिन अगर इस तरह के सर्वे और अध्ययन भारत में हों, तो यहां के नतीजे भी कोई बहुत अलग नहीं आने वाले। भारत में नेट कनेक्टीविटी और स्मार्ट फोन की चाह ही बच्चों में हीनता की ग्रंथि पैदा कर देती है। जो बच्चे संसाधनहीन हैं। उनके मन में एक अलग तरह की ग्रंथि आ रही है। वह यह कि उन्हें लगता है कि वे जीवन के कई आधारभूत संसाधनों से वंचित हैं।
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